उलूक टाइम्स: बन्द
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सोमवार, 20 अप्रैल 2020

पढ़ता कोई नहीं अपनी आँखों से सब पढ़ कर कोई और सुनाता है



बकवास करने में
कौन सा क्या कुछ चला जाता है 
फिर आजकल
कुछ कहने सुनने क्यों नहीं आता है 

सूरज रोज सुबह
और चाँद शाम को ही जब आता है 
अभी का अभी लिख दे
सोचने में दिन निकल जाता है 

खबरें बीमार हैं माना सभी
अखबार बीमार नजर आता है
नुस्खा बकवास भी नहीं होती
 बक देने में क्या जाता है 

ताला लगा है घर में
दिमाग बन्द हुआ जाता है 
खुले दिमाग वालों को
भाव कम दिया जाता है 

थाली में सब है
गिलास में भी कुछ नजर आता है 
भूख से नहीं मरता है कोई
मरने वालों में कब गिना जाता है 

सब कुछ लिखा होता है चेहरे पर
चेहरा किताब हो जाता है 
पढ़ना किस लिये अपनी आँखों से
सब पढ़ कर कोई और सुनाता है 

बकवास हो गया खुद एक ‘उलूक’
बकवास करना चाहता है 
खींचते ही लकीरों में चेहरा कविता का
मुँह चिढ़ाना शुरु हो जाता है।
चित्र साभार: https://favpng.com/

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

इतनी जल्दी भी क्या है सब्र कर खुदा बने हुऐ ही उसे हुऐ कुछ महीने चंद हैं


शब्दों
के
जोड़
जन्तर
जुगाड़ हैं

कुछ के
कुछ भी
कह लेने के

तरीके
बुलन्द हैं 

सच के
झूठ के
फटे में

किसने
देखना होता है

लगे हुऐ
कई
रंगीन पैबन्द हैं 

लिखना लिखाना
पढ़ना पढ़ाना

पढ़े लिखों
का
कहते हैं

परम
आनन्द है

अनपढ़
हाँकता
चल रहा है

पढ़े लिखों
की
एक भीड़
का

आदि है
ना
अन्त है 

लिखा
जा रहा है

एक नया
इतिहास है

गुणी
इतिहासकारों
के
किले

चाक चौबन्द हैं 

अवगुणों
से
लबालब हैं
सोचने
फिर
बोलने
वाले
कुछ

सभी
होशियार हैं
जिनके मुँह
शुरु से ही
बन्द हैं 

लिख रहा है
‘उलूक’
कुछ ऐसा
मुद्दों को
छोड़कर

जो

ना
गजल है
ना शेर है
ना छन्द है

रट रहा है
जमाना
उस
शायर का
कलाम
आज

जिसका
एक शब्द
एक पूरा
निबन्ध है 

समझ
लेता है
इशारा
समझने वाला

कौन
शायर है
कैसा
कलाम है

बचा
जमाना है
नासमझ है

जब
हो चुका
खुद ही
शौक से
नजरबन्द है ।
चित्र साभार: https://making-the-web.com