कूँऐं के
अंदर से चिल्लाने वाले मेढक की
आवाज से परेशान क्यों होता है
उसको
आदत होती है शोर मचाने की
आदत होती है शोर मचाने की
उसकी तरह का
कोई दूसरा मेंढक
कोई दूसरा मेंढक
हो सकता है वहाँ नहीं हो
जो समझा सके उसको
दुनिया गोल है
और बहुत विस्तार है उसका
यहाँ से शुरु होती है और
पता नहीं कहाँ कहाँ तक फैली हुई है
हो सकता है
वो नहीं जानता हो कि किसी को
सब कुछ भी पता हो सकता है
भूत भविष्य और वर्तमान भी
बहुत से मेंढक
कूँऐं से कूद कर
बाहर भी निकल जाते हैं
जानते हैं कूदना बहुत ऊँचाई तक
ऐसे सारे मेंढक
कूँऐं के बाहर निकलने के बाद
मेंढक नहीं कहलाते हैं
एक मेंढक होना
कूँऐं के अंदर तक ही ठीक होता है
बाहर
निकलने के बाद भी मेंढक रह गया
तो फिर
बाहर आने का क्या मतलब रह जाता है
वैसे
किसी को ज्यादा फर्क भी नहीं
पड़ना चाहिये
अगर
कोई मेंढक अपने हिसाब से कहीं टर्राता है
किसी के
चुप चुप कहने से बाज ही नहीं आता है
होते हैं बहुत से मेंढक
जरा सी आवाज से चुप हो जाते हैं
और 'उलूक'
कुछ सच में
बहुत बेशरम और ढीट होते हैं
जिंदगी भर बस टर्राते ही रह जाते हैं ।