कृष्ण
जन्माष्टमी
हर वर्ष
की तरह
इस बार
भी आई है
आप
सबको
इस पर्व
पर बहुत
बहुत
बधाई है
बचपन से
बहुत बार
गीता के
बारे में
सुनता
आया था
आज फिर
से वही
याद लौट
के आई है
कोशिश की
कई बार
पढ़ना शुरू
करने की
इस ग्रन्थ को
पर कभी
पढ़ ही
नहीं पाया
संस्कृत में
हाथ तंग था
हिन्दी भावार्थ
भी भेजे में
नहीं घुस पाया
आज
फिर सोचा
एक बार
यही कोशिश
फिर से
क्यों नहीं
की जाये
दिन
अच्छा है
अच्छी
शुरुआत
कुछ आज
ही कर
ली जाये
जो
समझ
में आये
आत्मसात
भी कर
लिया जाये
कुछ
अपना और
कुछ अपने
लोगों का
भला कर
लिया जाये
गीता थी
घर में एक
देखी कहीं
पुत्र से पूछा
पुस्तकालय
के कोने से
वो एक
पुरानी पुस्तक
उठा के
ले आया
कपडे़ से
झाड़ कर
उसमें
जमी हुई
धूल को
उड़ाया
पन्नो के
भीतर
दिख रहे थे
कागज
खाने वाले
कुछ कीडे़
उनको
झाड़ कर
भगाया
फिर
सुखाने को
किताब को
धूप में
जाकर के
रख आया
किस्मत
ठीक नहीं थी
बादलों ने सूरज
पर घेरा लगाया
कल को
सुखा लूंगा
बाकी
ये सोच
कर वापस
घर के अंदर
उठा कर
ले आया
इतनी
शुरुआत
भी क्या
कम है
महसूस
हो रहा है
अभी भी
इच्छा शक्ति
में कुछ दम है
पर आज
तो मजबूरी है
धूप किताब
को दिखाना
भी बहुत
जरूरी है
आप के
मन में
उठ रही
शंका का
समाधान
होना भी
उतना ही
जरूरी है
जिस
गीता को
आधी जिंदगी
नहीं कोई
पढ़ पाया हो
उसके लिये
गीता को
पढ़ना इतना
कौन सा
जरूरी हो
आया हो
असल में
ये सब
आजकल
के सफल
लोगों को
देख कर
महसूस
होने लगा है
जरूर इन
लोगों ने
गीता को
समझा है
और बहुत
बार पढ़ा है
सुना है
कर्म और
कर्मफल
की बात
गीता में ही
समझायी
गयी है
और
यही सब
सफलता
की कुंजी
बनाकर
लोगों के
द्वारा
काम में
लायी गयी है
मैं जहाँ
किसी
दिये गये
काम को
करना चाहिये
या नहीं
सोचने में
समय
लगाता हूँ
तब तक
बहुत से लोगों
के द्वारा
उसी काम को
कर लिया
गया है की
खबर अखबार
में पाता हूँ
वो सब
कर्म करते हैं
सोचा नहीं
करते हैं
इसीलिये
फल भी
काम करने
से पहले ही
संरक्षित
रखते हैं
मेरे जैसे
गीता ज्ञान
से मरहूम
काम गलत
है या सही
सोचने में ही
रह जाते हैं
काम होता
नहीं है
तो फल
हाथ में
आना
तो दूर
दूर से
भी नहीं
दिख पाते हैं
गीता को
इसीलिये
आज बाहर
निकलवा
कर ला
रहा हूँ
कल से
करूँगा
पढ़ना शुरू
आज तो
धूप में
बस सुखा
रहा हूँ ।
जन्माष्टमी
हर वर्ष
की तरह
इस बार
भी आई है
आप
सबको
इस पर्व
पर बहुत
बहुत
बधाई है
बचपन से
बहुत बार
गीता के
बारे में
सुनता
आया था
आज फिर
से वही
याद लौट
के आई है
कोशिश की
कई बार
पढ़ना शुरू
करने की
इस ग्रन्थ को
पर कभी
पढ़ ही
नहीं पाया
संस्कृत में
हाथ तंग था
हिन्दी भावार्थ
भी भेजे में
नहीं घुस पाया
आज
फिर सोचा
एक बार
यही कोशिश
फिर से
क्यों नहीं
की जाये
दिन
अच्छा है
अच्छी
शुरुआत
कुछ आज
ही कर
ली जाये
जो
समझ
में आये
आत्मसात
भी कर
लिया जाये
कुछ
अपना और
कुछ अपने
लोगों का
भला कर
लिया जाये
गीता थी
घर में एक
देखी कहीं
पुत्र से पूछा
पुस्तकालय
के कोने से
वो एक
पुरानी पुस्तक
उठा के
ले आया
कपडे़ से
झाड़ कर
उसमें
जमी हुई
धूल को
उड़ाया
पन्नो के
भीतर
दिख रहे थे
कागज
खाने वाले
कुछ कीडे़
उनको
झाड़ कर
भगाया
फिर
सुखाने को
किताब को
धूप में
जाकर के
रख आया
किस्मत
ठीक नहीं थी
बादलों ने सूरज
पर घेरा लगाया
कल को
सुखा लूंगा
बाकी
ये सोच
कर वापस
घर के अंदर
उठा कर
ले आया
इतनी
शुरुआत
भी क्या
कम है
महसूस
हो रहा है
अभी भी
इच्छा शक्ति
में कुछ दम है
पर आज
तो मजबूरी है
धूप किताब
को दिखाना
भी बहुत
जरूरी है
आप के
मन में
उठ रही
शंका का
समाधान
होना भी
उतना ही
जरूरी है
जिस
गीता को
आधी जिंदगी
नहीं कोई
पढ़ पाया हो
उसके लिये
गीता को
पढ़ना इतना
कौन सा
जरूरी हो
आया हो
असल में
ये सब
आजकल
के सफल
लोगों को
देख कर
महसूस
होने लगा है
जरूर इन
लोगों ने
गीता को
समझा है
और बहुत
बार पढ़ा है
सुना है
कर्म और
कर्मफल
की बात
गीता में ही
समझायी
गयी है
और
यही सब
सफलता
की कुंजी
बनाकर
लोगों के
द्वारा
काम में
लायी गयी है
मैं जहाँ
किसी
दिये गये
काम को
करना चाहिये
या नहीं
सोचने में
समय
लगाता हूँ
तब तक
बहुत से लोगों
के द्वारा
उसी काम को
कर लिया
गया है की
खबर अखबार
में पाता हूँ
वो सब
कर्म करते हैं
सोचा नहीं
करते हैं
इसीलिये
फल भी
काम करने
से पहले ही
संरक्षित
रखते हैं
मेरे जैसे
गीता ज्ञान
से मरहूम
काम गलत
है या सही
सोचने में ही
रह जाते हैं
काम होता
नहीं है
तो फल
हाथ में
आना
तो दूर
दूर से
भी नहीं
दिख पाते हैं
गीता को
इसीलिये
आज बाहर
निकलवा
कर ला
रहा हूँ
कल से
करूँगा
पढ़ना शुरू
आज तो
धूप में
बस सुखा
रहा हूँ ।