उलूक टाइम्स: नैनीताल समाचार
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सोमवार, 13 जनवरी 2014

आज की बड़ बड़ “नैनीताल समाचार” वालों के लिये

बड़े बड़े अखबार
रोज सुबह घर के
दरवाजे पर हॉकर
आकर फेंक जाता है
मजबूरी होती है
उठाना ही होता है
आदमी या उसका
कोई आदमी जाकर
उठा ही लाता है
अखबार के हिसाब से
बाजार के हिसाब से
छोटी छोटी ज्यादा
बड़ी खबर कुछ कम
या खबर की कबर
की खबरें ढूँढने में
बहुत ज्यादा कुछ
मजा सा नहीं आता है
गड्ढे में घुसी हुई
कुछ गाड़ियाँ कुछ लाशें
कुछ घायल कुछ मुआवजा
कुछ अस्पताल में
मौत की सजा
सुनाये गये जच्चा बच्चा
अपने देश अपने प्रदेश
की जवानी के राज
खोल के जाता है
इंतजार रहता है
मगर कुछ छोटे
अखबारों का
जो रोज रोज नहीं
आ पाता है
कभी कभार अब
दिखने वाला डाकिये
के पास अब यही काम
ज्यादा पाया जाता है
खबरें ऐसी की पढ़कर
मजा आ जाता है
अब आप कहोगे
ऐसी कौन कौन सी
खबर होती हैं जिसे
पढ़ने में मजा
भी आता जाता है
मुख्य पृष्ठ पर एक कविता
“उदास बखत के रमोलिया”
एक जिंदा कवि
कुछ कोशिश करके
जैसे लाशों को जगाता है
चौथे पन्ने पर
थपलियाल जी का लेख
"चरित्रहीन शिक्षक कैसे
गढ़ सकेगा अच्छा समाज"
जैसे मुँह चिढ़ाता है
प्रवीण तोमर के
लेख का शीर्षक
“अध्यापक राजनीतिबाज
शिक्षा तवायफ और
समाज तमाशाबीन

पढ़कर ही दिल
गद्गद हो जाता है
जगमोहन रौतेला का लेख
“केंद्र के अधीन करने से
 कैसे सुधरेंगे विश्वविद्यालय”
सबका ध्यान कूड़े दान
हो रहे प्रदेश के
विश्वविध्यालयों की तरफ
आकर्षित कर ले जाता है
अब ये बात अलग है
एक छोटा सा अखबार
अपनी बड़ी बड़ी
खबरों के साथ
जिन पाठकों के
हाथ में जाता है
उन लोगोँ के पास
सड़ी मानसिकता
वाली बातों की खबरों को
निडरता से कह देने
वालो के लिये बस "वाह"
कह देने से ही
मामला यहीं पर
खत्म हो जाता है
जो कुछ नहीं
कर सकता कहीं
अखबार और
अखबार वालों को
“जी रया” का आशीर्वाद
खुश हो कर देते हुऐ
अपनी भड़ास
थोड़ी सी ही सही
मिटा ले जाता है ! 

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

राज काज


़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
नैनीताल समाचार में छपी थी मेरी कुछ लाइने कुछ वर्ष पूर्व।
वहाँ त्रिवार्षिक कार्यकाल वालों के लिये था।
यहां त्रिवार्षिक बदल कर पंचवर्षीय कर दे रहा हूँ।
शेष लाइने वही हैं ।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़
कुत्तों की सभा का पंचवर्षीय चुनाव
गीदड़ ने पहना ताज 
ऎल्सेशियन से बुलडौग लडा़या
पौमेरियन एप्सो को छोटा बतलाया
ये था इसका राज 
ये था इसका राज गीदड़ अब रेवड़ी बांटे
कुत्ता अब कुत्ते को काटे कोई ना रहा अपवाद
कोई ना रहा अपवाद
ढटुओं को अब रोना आया 
रोते रोते अलख जगाया गये शेर की मांद
शेर गुर्राया
डर डर कर कुत्तों ने फरमाया
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामें गुलिस्ताँ क्या होगा 
सुन शेर को गुस्सा आया पी0 ए0 को आदेश लिखाया
क्यों शाख पर उल्लू बैठाया
तुरंत जाओ कुत्ता देश
तुरंत जाओ कुत्ता देश शाख को काट के लाओ
उल्लू को आकाश उड़ाओ 
हुवा पालन आदेश उल्लू अब गीदड़ पर बैठे 
कुत्ता राज गीदड़ राजा
ना रहे उल्लू ना रही अब शाखा ।

[ढटुआ = Street Dog]

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/