फूल होकर
डाल से उतरा
पक पका गया
एक फल
हो चुकी है आज
कैसे
फिर से वही
बीज हो जाये
जिस से
पैदा हुयी थी
कभी जनाब
कैसे बदलें
अब इस
पुरानी सोच को
सोच भी
नहीं पा रहे हैं
अपने आप
आप यूँ ही
कह देते
हैं हम से
अपनी
सोच को अब बदल
लीजिये जनाब
मित्र
पढ़ते हैं
कुछ लिखा
लिखाया हमारा
तुरन्त राय
देते हैं
जरूर एक दाग
बहुत साल
गधे रह लिये हैं
अब
घोड़े ही कुछ
सोच में
देख लीजिये जनाब
बेचैनी
शुरु होती है
क्या करें
जब देख लेते हैं
कुछ धुँआ
कहीं पर बिना आग
आग की बात कर
धुँआ दिखा कर ही
रोटियाँ सेक रहे हैं
सबसे बड़े साहब
अब आज ही
दिखे थे कुछ
दलाल घूमते हुऐ
अपने घर मोहल्ले
शहर के आस पास
कोई बिकेगा
कोई खरीदेगा
जल्दी ही कुछ
बड़ी कुर्सी पर
किसी के कहीं
जाकर बैठने
का जैसा
हो रहा है आभास
उम्र हो गयी
‘उलूक’ की
सीखते सीखते
सब गलत सलत सारा
ये होगा आपका हिसाब
कुछ नहीं
हो सकता है
माटी के पक चुके
इस घड़े का
जिसपर
अपनी सोच की
कलाकारी नक्काशी
उकेर देने वाले
अब नहीं भी कहीं
बस
उनके मीठे
अहसास बचे हैं
उसके पास
उसकी रूह के
बहुत पासपास
डाल से उतरा
पक पका गया
एक फल
हो चुकी है आज
कैसे
फिर से वही
बीज हो जाये
जिस से
पैदा हुयी थी
कभी जनाब
कैसे बदलें
अब इस
पुरानी सोच को
सोच भी
नहीं पा रहे हैं
अपने आप
आप यूँ ही
कह देते
हैं हम से
अपनी
सोच को अब बदल
लीजिये जनाब
मित्र
पढ़ते हैं
कुछ लिखा
लिखाया हमारा
तुरन्त राय
देते हैं
जरूर एक दाग
बहुत साल
गधे रह लिये हैं
अब
घोड़े ही कुछ
सोच में
देख लीजिये जनाब
बेचैनी
शुरु होती है
क्या करें
जब देख लेते हैं
कुछ धुँआ
कहीं पर बिना आग
आग की बात कर
धुँआ दिखा कर ही
रोटियाँ सेक रहे हैं
सबसे बड़े साहब
अब आज ही
दिखे थे कुछ
दलाल घूमते हुऐ
अपने घर मोहल्ले
शहर के आस पास
कोई बिकेगा
कोई खरीदेगा
जल्दी ही कुछ
बड़ी कुर्सी पर
किसी के कहीं
जाकर बैठने
का जैसा
हो रहा है आभास
उम्र हो गयी
‘उलूक’ की
सीखते सीखते
सब गलत सलत सारा
ये होगा आपका हिसाब
कुछ नहीं
हो सकता है
माटी के पक चुके
इस घड़े का
जिसपर
अपनी सोच की
कलाकारी नक्काशी
उकेर देने वाले
अब नहीं भी कहीं
बस
उनके मीठे
अहसास बचे हैं
उसके पास
उसकी रूह के
बहुत पासपास