उलूक टाइम्स: पालिश
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रविवार, 24 अगस्त 2014

आईने के पीछे भी होता है बहुत कुछ सामने वाले जिसे नहीं देख पाते हैं

कहा जाता
रहा है

आज
से नहीं
कई सदियों से

सोच
उतर आती है
शक्ल में

दिल की बातें
तैरने लगती हैं
आँखों के पानी में

हाव भाव
चलने बोलने से
पता चल जाता है

किसी
के भी ठिकाने
का अता पता

बशर्ते
जो बोला या
कहा जा रहा हो
वो स्वत: स्फूर्त हो

बस
यहीं पर
वहम होना
शुरु हो जाता है

दिखने
लगता है
पटेल गाँधी सुभाष
भगत राजगुरु
और
कोई ऐसी ही
शख्सियत

उसी तरह
जैसे बैठा हो कोई
किसी सनीमा हॉल में

और
चल रही हो
पर्दे पर कोई फिल्म

हो रही हो
विजय सच की
झूठ के ऊपर

वहम
वहम बने रहे
तब तक सब कुछ
ठीक चलता है

जैसे
रेल चल रही
होती है पटरी पर

लेकिन
वहम टूटना
शुरु होते ही हैं

आईने
की पालिश
हमेशा काँच से
चिपकी नहीं
रह पाती है

और
जिस दिन से
काँच के आर पार
दिखना शुरु
होने लगता है

काँच
का टुकड़ा
आईना ही
नहीं रहता है

काँच
का टुकड़ा
एक सच होता है

जो
आईना कभी भी
नहीं हो सकता है

उसे
एक सच
बनाया जाता है

एक
काँच पर
पालिश चढ़ा कर

बहुत
कम होते हैं
लेकिन होते हैं
कुछ बेवकूफ लोग

जो
कभी भी
कुछ नहीं
सीख पाते हैं

जहाँ
समय के साथ
लगभग सभी लोग
थोड़ा या ज्यादा
आईना हो ही जाते हैं

उनके
पार देखने की
कितनी भी कोशिश
कर ली जाये

वो
वही दिखाते हैं
जो वो होते ही नहीं है

और
ऐसे सारे आईने
एक दूसरे को
समझते बूझते हैं

कभी
एक दूसरे के
आमने सामने
नहीं आते हैं

जहाँ
भी देखिये
एक साथ

एक
दूसरे के लिये
कंधे से कंधा
मिलाये
पाये जाते हैं ।