सभी के पास होते हैं
मिट्टी के दिए रुई की बाती
तेल और दियासलाई
जलाने के लिए कुछ भी कहीं भी कभी भी
सभी को जरूरत होती है
रोशनी की
सभी चाहते है फैलाना भी
प्रकाश को
इधर उधर सभी जगह कहीं भी कभी भी
रोशनी कहें प्रकाश कहें उजाला कहें
या ऐसा ही कुछ कहें
जिस से आभास हो सके
कुछ ऐसा दिखाई देने का सामने से
जो घुस सके दिमाग में
और कुलबुला सके
सुसुप्त पड़े जीवन कणों को
एक पुराने हो चुके मकान की
जीर्ण शीर्ण खिड़कियों के
हलकी हवा में भी हिलते
पल्लों के बीच की झिररियां भी
जीवंत हो उठती हैं कुछ देर के लिए ही सही
रोशनी बेचने से लेकर
रोशनी खरीदने के बीच की
दूरियां कहें या खाई कहें
बहुत प्यार से भरती चली जाती हैं स्वत: ही
गरीब की रोशनी और अमीर की रोशनी
सब साई के
"सबका मालिक एक" के मानिंद
आत्मसात कर लेती हैं एक दूसरे को
रोशनी का मजहब कह लिया जाए
या धर्म का प्रकाश कहें
दोनों एक ही बात
सोचिए कितनी इफ़रात रोशनी ही रोशनी
रोशनी ही इबादत रोशनी ही सौगात
बस एक ही
कुछ उलझन से भरा जीव ‘उलूक’
आंखें झपकाता ऊंघता हुआ अपने कोटर में
रात में हो चुके दिन से हैरान
जपता रोशनी की कामना ही है सबसे महान
शुभ हो मंगलमय हो प्रकाश मय हो
बाहर भीतर ऊपर नीचे
नौ दिशाएं जमीन आसमान |
चित्र साभार: https://pngtree.com/