उलूक टाइम्स: शुभ
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सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

शुभ हो मंगलमय हो प्रकाश मय हो बाहर भीतर ऊपर नीचे नौ दिशाएं जमीन आसमान


सभी के पास होते हैं
मिट्टी के दिए रुई की बाती
तेल और दियासलाई
जलाने के लिए कुछ भी कहीं भी कभी भी
सभी को जरूरत होती है
रोशनी की
सभी चाहते है फैलाना भी
प्रकाश को
इधर उधर सभी जगह कहीं भी कभी भी
रोशनी कहें प्रकाश कहें उजाला कहें
या ऐसा ही कुछ कहें
जिस से आभास हो सके
कुछ ऐसा दिखाई देने का सामने से
जो घुस सके दिमाग में
और कुलबुला सके
सुसुप्त पड़े जीवन कणों को
एक पुराने हो चुके मकान की
जीर्ण शीर्ण खिड़कियों के
हलकी हवा में भी हिलते
पल्लों के बीच की झिररियां भी
जीवंत हो उठती हैं कुछ देर के लिए ही सही
रोशनी बेचने से लेकर
रोशनी खरीदने के बीच की
दूरियां कहें या खाई कहें
बहुत प्यार से भरती चली जाती हैं स्वत: ही
गरीब की रोशनी और अमीर की रोशनी
सब साई के
"सबका मालिक एक" के मानिंद
आत्मसात कर लेती हैं एक दूसरे को
रोशनी का मजहब कह लिया जाए
या धर्म का प्रकाश कहें
दोनों एक ही बात
सोचिए कितनी इफ़रात रोशनी ही रोशनी
रोशनी ही इबादत रोशनी ही सौगात
बस एक ही
कुछ उलझन से भरा जीव ‘उलूक’
आंखें झपकाता ऊंघता हुआ अपने कोटर में
रात में हो चुके दिन से हैरान
जपता रोशनी की कामना ही है सबसे महान
शुभ हो मंगलमय हो प्रकाश मय हो
बाहर भीतर ऊपर नीचे
नौ दिशाएं जमीन आसमान |

चित्र साभार: https://pngtree.com/

रविवार, 15 नवंबर 2020

शुभ हो दीप पर्व उमंगों के सपने बने रहें भ्रम में ही सही

 


हर्षोल्लास
चकाचौँध रोशनी
पठाकों के शोर
और बहुत सारे
आभासी सत्यों की भीड़

 बीच से
गुजरते हुऐ
कोशिश करना
पंक्तियों से नजरें चुराते हुऐ
लग जाना
बीच के निर्वात को
परिभाषित करने में

कई सारे भ्रमों से झूझते हुऐ
 व्यँग खोजना
उलझन भरी सोच में

और लिख देना कुछ नहीं

इस कुछ नहीं लिखने
और कहीं
अन्दर के किसी कोने में बैठे
थोड़े से अंधेरे को
चकाचौँध से घेर कर
कत्ल कर देने की
सोच की रस्सियाँ बुनना

इंगित करता हुआ
महसूस कराता लगता है
समुद्र मंथन इसी तरह हुआ होगा 
 निकल कर आई होंगी
लक्ष्मी भी शायद

आँखें बंद कर लेने के बाद
दिख रहे प्रकाश को
दीपावली कहा गया होगा

लिख देना
और फिर लिखे के अर्थ को
खुद ही खुद में खोजना
बहुत आसान नहीं

फिर भी
इशारों इशारों में
हर किसी का लिखा
इतना तो बता देता है
लिखा हुआ
सीधे सीधे
सब कुछ बता जायेगा
सोचना ठीक नहीं

अंधेरा है तो प्रकाश है
फिर किसलिये
छोटे से अँधेरे को घेर कर
लाखों दियों से मुठभेड़

यही दीपावली है
यही पर्व है दीपों का

कुछ देर के लिये
अंधेरे से मुँह मोड़ कर बैठ लेने
और खुश हो लेना
कौन सा बुरा है ‘उलूक’

कुछ समझना
कुछ समझाना
बाकी सब
बेमतलब का गाना

फिर भी
बनी रहे लय
कुछ नहीं
और कुछ के
बीच की
जद्दोजहद के साथ

शुभ हो दीप पर्व
उमंगों के सपने बने रहें
भ्रम में ही सही।


चित्र साभार:
https://medium.com/the-mission/a-practical-hack-to-combat-negative-thoughts-in-2-minutes-or-less-cc3d1bddb3af