उलूक टाइम्स: बाहर
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शनिवार, 29 नवंबर 2014

अंधेरा बाहर का कभी भी अंदर का नहीं होता है

अचानक
किसी क्षण
आभास
होता है
और याद
आना शुरु
होता
है अंधेरा
जिसे बहुत
आसान है
देखना और
टटोलना
अपने ही अंदर
बस आँखें
बंद करिये
और शुरु
हो जाईये
बाहर उजाले
में फैले हुऐ
अंधेरे के
आक्टोपस की
भुजाओं से
घिरे घिरे
आखिर कब
तक इंतजार
किया जा
सकता है
घुटन होने
के लिये
जरूरी नहीं
है एक
बंद कमरा
धूल और धुऐं
से भरा हुआ
साँस बंद
होती हुई
सी महसूस
होना शुरु
होने लगती है
कभी किसी
साफ सुथरे
माहौल में भी
ऐसे ही समय
पर बहुत
काम आता है
अपने अंदर
का अंधेरा
जो दे सकता
है सुकून
बस जरूरत
होती है उसे
टटोलने की
हाथों की
उँगलियों से नहीं
आखों की बंद
पुतलियों से ही
बस शर्त है
आँख बंद होते ही
देखना शुरु
नहीं करना है
कोई एक सपना
अंधेरे में फैले हुऐ
सपने कभी
किसी के
अपने नहीं होते हैं
अपने ही अंदर
का अंधेरा जितना
अपना होता है
उतना बाहर
का उजाला
नहीं होता है
बस टटोलना
आना जरूरी
होता है
जिसे सीख
लेने के लिये
जरूरी होता है
कभी कुछ
देर आँखे
बंद करना
और इस
बंद करने
का मतलब
बंद करना
ही होता है ।

चित्र साभार: tessbalexander.wordpress.com

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

आज ही के दिन क्रोध दिवस मनाया जाता है

अपनी कायरता
के सारे सच
हर किसी को
पता होते हैं

जरूरत नहीं
पड़ती है जिसकी
कभी किसी
सामने वाले को
समझाने की

सामने वाला भी
कहाँ चाहता है
खोलना अपनी
राज की पर्तों को

कौन हमेशा शांति
में डूबा रह पाता है

अच्छा रहता है
ढका रहे जब तक
चल सके सब कुछ
अपना अपना
अपने अपने
अंदर ही अंदर

पर हर कोई जरूर
एक सिकंदर
होना चाहता है

डर से मरने
से अच्छा
क्रोध बना या
दिखा कर
उसकी ढाल से
अपने को
बचाना चाहता है

सच में कहा गया है
और सच ही
कहा गया है
क्रोध वाकई में
कपटवेश में
एक डर है

अपने ही अंदर
का एक डर
जो डर के ही
वश में होकर
बाहर आकर
लड़ नहीं पाता है

वैसे भी कमजोर
कहाँ लड़ते हैं
वो तो रोज मरते हैं
रोज एक नई मौत

मरना कोई भी
नहीं चाहता है

केवल मौत के
नाम पर
डर डर कर
डर को भगाना
चाहता है

इसी कशमकश में
किसी ना किसी
तरह का एक क्रोध
बना कर उसे
अपना नेता
बना ले जाता है

वो और उसके
अंदर का देश
देश की तरह
आजाद हो जाता है

अंदर होता है
बहुत कुछ
जो बस उसके
डर को पता होता है

और बाहर बस
क्रोध ही आ पाता है
जो अपने झूठ को
छिपाने का एक
बहुत सस्ता सा
हथियार हो जाता है

बहुत सी जगह
बहुत साफ
नजर आता है

बहुत सी काली
चीजों को बहुत बार
झक सफेद चीजों से
ढक दिया जाता है ।

चित्र गूगल से साभार ।

बुधवार, 31 जुलाई 2013

बाहर के लिये अलग बनाते है अंदर की बात खा जाते हैं !

मुड़ा तुड़ा कागज का एक टुकड़ा
मेज के नीचे कोने में पड़ा मुस्कुराता है

लिखी होती है कोई कहानी अधूरी उसमें
जिसको कह लेना
वाकई आसान नहीं हो पाता है

ऎसे ही पता नहीं कितने कागज के पन्ने
हथेली के बीच में निचुड़ते ही चले जाते हैं

कागज की एक बौल होकर
मेज के नीचे लुढ़कते ही चले जाते हैं

ऎसी ही कई बौलों की ढेरी के बीच में बैठे हुऎ लोग
कहानियाँ बनाने में माहिर हो जाते हैं

एक कहानी शुरु जरूर करते हैं
राम राज्य का सपना भी दिखाते हैं
राजा बनाने के लिये किसी को भी
कहीं से ले भी आते हैं

कब खिसक लेते हैं बीच में ही और कहाँ को
ये लेकिन किसी को नहीं बताते हैं

अंदर की बात को कहना
इतना आसान कहाँ होता है
कागजों को निचोड़ना नहीं छोड़ पाते हैं

कुछ दिन बनाते हैं कुछ और कागज की बौलें
लोग राम और राज्य दोनो को भूल जाते हैं

ऎसे ही में कहानीकार और कलाकार
नई कहानी का एक प्लॉट ले
हाजिर हो जाते हैं ।

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

बाहर कर लिया /अब अंदर जायेंगे

खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे
अन्दर जा कर होगा क्या
ये अन्दर से ही बतायेंगे
अन्दर वाले उसके बाद
क्या बाहर फेंके जायेंगे
या बाहर से अन्दर घुसने
से वो रोके जायेंगे
सारी की सारी बातें
हम तुमको आज
अभी नहीं बतायेंगे
अन्दर भेजे तो जायेंगे
पर धक्के कौन लगायेंगे
सफेद टोपियों को अब
रंगने का कारोबार चलायेंगे
एक भाई से गेरूआ रंग
उसमें करवायेंगे
दूसरे भाई से हरा रंग
भरने का काम करायेंगे
चाचा जी से सफेद टोपी
पर तिरंगा बनवायेंगे
इनको अंदर जाने देंगे
हम उद्योग लगायेंगे
अपने अपने घर को
सब बाहर  वाले जायेंगे
घर में जाकर घरवालों
का ही तो हाथ बटायेंगे
कुछ फिर से अपनी
साईकिल चलायेंगे
कुछ जाकर हाथी की
पीठ पर चढ़ जायेंगे
फूल वाले फूल का
गुलदस्ता बनायेंगे
हाथ हिलाने वाले लोग
अब भी हाथ हिलायेंगे
खबर आई है आज
सब टेंट हटाये जायेंगे
टेंट वाले जो जो हैं
अन्दर पहुँचाये जायेंगे ।

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कुछ कुछ पति

अंदर का सबकुछ
बाहर नहीं लाया
जा रहा था
थोड़ा कुछ
छांट छांट कर
दिखाया जा रहा था
बीबी बच्चों के बारे में
हर कोई कुछ
बता रहा था
अपनी ओर से
कुछ कुछ
समझाये जा रहा था
तभी एक ने कहा
दुनियाँ करती पता
नहीं क्या क्या है
लेकिन पब्लिक में
तो यही कहती है
अपने बच्चे
सबसे प्यारे
दूसरे की बीबी
खूबसूरत होती है
बीबी सामने बैठी हो
तो कोई क्या कह पाये
अगल बगल झांके
सोच में पड़ जाये
भैया बीबी तो
बीबी होती है
इधर की होती है
चाहे
उधर की होती है
एक आदमी जब
बीबी वाला
हो जाता है
फिर सोचना
देखना रह ही
कहाँ जाता है
जो देखती है बीबी
ही देखती है
दूसरे की बीबी को
देखने की कोई
कैसे सोच पाता है
हाँ कुछ होते हैं
मजबूत लोग
इधर भी देख लेते हैं
उधर भी देख लेते है
ऎसे लोगो को
ऎसी जगह बैठा
दिया जाता है
जहां से हर कोई
नजर में आ जाता है
पत्नी का एक पति
कुछ और पति
भी हो जाता है
इधर उधर देखने
का फायदा
उठा ले जाता है।