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शनिवार, 21 सितंबर 2013

सजाये मौत पहले बहस मौत के बाद !


अलग अलग जगहें
अलग अलग आदमी
कई किताबों में
कई जगह लिखी
हुई कुछ इबारतें
समय के साथ
बदलते हुऐ उनके मायने
मरती हुई एक लड़की
कोख में सड़क में
ससुराल में घर में
कभी एक औरत
कभी अर्धांगिनी
कभी बेटी कभी बहन
कहीं दुपट्टे से लटकी हुई
कहीं कटी हुई टुकड़ों में
कहीं जलती हुई खेत में
कहीं बीच सड़क पर
टी वी के एक प्रोग्राम
के बहस का मुद्दा
एक लाश एक फोटो
एक अखबार के लिये
बस एक खबर
सड़क पर एक भीड़
हर मौत पर एक गुस्सा
पता नहीं किस पर
मौत भी ऐसी जो
दे दी जाती है
बिना किसी
सजा के सुनाये
समय के साथ
इबारत नहीं बदली
ना ही आदमी बदला
मौत की सजा जारी है
अपनी जगह बादस्तूर
दे दी जाती है
बहस भी होती है
हमेशा की तरह पर
सजाऐ मौत के बाद
आदमी के पास
कानून नहीं है
पता नहीं क्यों
नहीं है अभी तक
पता चलती है ये बात
अगर देखेने लगे कोई
कितनी लड़कियों को
मारा गया सजाये
मौत देने के बाद ।