उलूक टाइम्स: गुस्सा
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शुक्रवार, 29 मई 2015

कुछ नहीं कहना है कह कर क्या कुछ होना है पढ़ लेना बस मानकर इतना कि ये रोज का ही इसका रोना है

किसी दिन बहुत
हो जाता है जमा
कहने के लिये यहाँ
क्या कहा जाये
क्या नहीं
आग लिखी जाये
या लिखी जाये चिंगारी
या बस कुछ धुऐं में से
थोड़ा सा कुछ धुआँ
अरे गुस्सा थूक
क्यों नहीं देता है
खोद लेता है क्यों नहीं
कहीं भी एक नया कुआँ
उसकी तरह कभी
नहीं था तू
ना कभी हो पायेगा
उसको खेलना आता है
बहुत अच्छी तरह
रोज एक नया जुआँ
झूठ की पोटली है
बहुत मजबूत है
ओढ़ना आता है उसे
सच और दिखाना
सच्चाई और झौंकना
आँखों में धूल मिलाकर
अपनी मक्कारी का धुआँ
सब पहचानते हैं उसे
रहते हैं साथ उसके
पूछो कभी कुछ उसके
बारे में यूँ ही तो
कहते कुछ नहीं
उठा के पूँछ कर
देते हैं बस हुआँ हुआँ ।



चित्र साभार: imgkid.com

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

अलबर्ट पिंटो को गुस्सा आज भी आता है


अल्बर्ट पिंटो और उसका गुस्सा 
बहुत पुराना है किस्सा 

क्या है क्यों है किसको पता है 
किसको नहीं पता है 

लेकिन गुस्सा आता है 
सबको आता है 
किसी को कम किसी को ज्यादा 
कोई बताता है कोई नहीं बताता है 

कोई खुश होता है 
गुस्सा खाता है और पचाता है 

अलग अलग तरह के गुस्से 
दिखते भी हैं 

चलने के तरीके में टहलने के तरीके में 
बोलने के तरीके में तोलने के तरीके में 

कम उम्र में हो सकता है 
नहीं आ पाता है 

पर देखते समझते 
घर से लेकर बाजार तक परखते 
सीख लिया जाता है 

गुस्सा नजर आना 
शुरु हो जाता है 

लिखे हुऐ में नहीं लिखे हुऐ में 
कहे हुऐ में चुप रहे हुऐ में 

अच्छा होता है अगर दिखता रहे 
कहीं भी सही 

पकता रहे उबलता रहे 
खौलता रहे चूल्हे में चढ़े 
एक प्रेशर कूकर की तरह बोलता रहे 

नहीं तो कहीं किसी गली में 
समझ ले अच्छी तरह उलूक
अपने ही सिर के बाल नोचता हुआ 
खींसें निपोरता हुआ
एक अलबर्ट पिंटो हो जाता है 

और किसी को पता नहीं होता है 
उसको गुस्सा क्यों आता है ।

बुधवार, 4 जून 2014

पूँछ नहीं हिला रहा है नाराज नजर आ रहा है

मेरे
पालतू कुत्ते ने

मुझ से
कुछ कहा तो नहीं

कहेगा भी कैसे

कुत्ते कहाँ
कुछ कहते हैं

मुझे लग रहा है

बस यूं ही

कि शायद वो
बहुत नाराज है

वैसे
उसने कहीं
कुछ लिखा
भी नहीं है
इस बारे में

लिखेगा भी कैसे

कुत्तों का
फेसबुक एकाउंट
या ब्लाग
नहीं होते हैं

कुत्ते भौंकते
जरूर हैं

उसके
भौँकने में
वैसे कोई फर्क
तो नहीं है

पर मुझे
लग रहा है

कुछ अलग
तरीके से
भौँक रहा है

ये सब
मैं सोच रहा हूँ

कुत्ता नहीं
सोच रहा है

कुत्ते
सोचते भी हैं
या नहीं

ये मुझे पक्का
कहाँ पता है

ऐसा शायद

इस कारण
हो रहा है

पड़ोसी ने
कुत्ते से शायद
कुछ कहा है

जिस पर मैंने
ध्यान नहीं
दिया है

बस मुझे ही
लग रहा है

मालिक अपने
वफादार के लिये
कुछ नहीं
कर पा रहा है

अपने
दुश्मनो से
अपने को
बचाने के लिये

कुत्ते को
सामने मगर
ले आ रहा है

इसीलिये
कुत्ते को
शायद गुस्सा
आ जा रहा है

पर वो
ये सब भी
कहाँ 
बता रहा है ।

शनिवार, 21 सितंबर 2013

सजाये मौत पहले बहस मौत के बाद !


अलग अलग जगहें
अलग अलग आदमी
कई किताबों में
कई जगह लिखी
हुई कुछ इबारतें
समय के साथ
बदलते हुऐ उनके मायने
मरती हुई एक लड़की
कोख में सड़क में
ससुराल में घर में
कभी एक औरत
कभी अर्धांगिनी
कभी बेटी कभी बहन
कहीं दुपट्टे से लटकी हुई
कहीं कटी हुई टुकड़ों में
कहीं जलती हुई खेत में
कहीं बीच सड़क पर
टी वी के एक प्रोग्राम
के बहस का मुद्दा
एक लाश एक फोटो
एक अखबार के लिये
बस एक खबर
सड़क पर एक भीड़
हर मौत पर एक गुस्सा
पता नहीं किस पर
मौत भी ऐसी जो
दे दी जाती है
बिना किसी
सजा के सुनाये
समय के साथ
इबारत नहीं बदली
ना ही आदमी बदला
मौत की सजा जारी है
अपनी जगह बादस्तूर
दे दी जाती है
बहस भी होती है
हमेशा की तरह पर
सजाऐ मौत के बाद
आदमी के पास
कानून नहीं है
पता नहीं क्यों
नहीं है अभी तक
पता चलती है ये बात
अगर देखेने लगे कोई
कितनी लड़कियों को
मारा गया सजाये
मौत देने के बाद ।

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

बक बक संख्या तीन सौ

ये भी क्या बात है
उसको देख कर ही
खौरा तू जाता है

सोचता भी नहीं
क्यों जमाने के साथ
नहीं चल पाता है

अब इसमें उसकी
क्या गलती है
अगर वो रोज तेरे
को दिख जाता है
जिसे तू जरा सा भी
नहीं देखना चाहता है

तुझे पता है उसे देख
लेना दिन में एक बार
मुसीबत कम कर जाता है
भागने की कोशिश जिस
दिन भी की है तूने कभी
वो रात को तेरे सपने में
ही चला आता है

जानता है वो तुझे बस
लिखना ही आता है
इसलिये वो कुछ ऎसा
जरूर कर ले जाता है
जिसपर तू कुछ ना कुछ
लिखना शुरू हो जाता है

वैसे तेरी परेशानी का
एक ही इलाज अपनी
छोटी समझ में आता है

ऊपर वाले को ही देख
उसे उसके किसी काम पर
गुस्सा नहीं आता है

सब कुछ छोड़ कर तू
उसको ही खुदा अपना
क्यों नहीं बनाता है

खुदा का तुझे पता है
दिन में दिखना छोड़
वो किसी के सपने में
भी कभी कहाँ आता है ।

शुक्रवार, 29 जून 2012

सरकारी राय

शहर का
एक इलाका
सड़क में पड़ी
पचास मीटर
लम्बी दरार
लपेट में आये
कुछ लोगों
के घर चार

जिलाधिकारी आया
साथ में
सत्ता पक्ष के
विधायक को लाया

मौका मुआयना हुआ
नीचे खुदा हुआ बहुत
बड़ा एक पहाड़
सबको सामने दिखा

कुछ दिन पहले सुना
बड़ी बड़ी मशीने
रात को आई
रात भर आवाजेंं कर
सुबह को पता नहीं
किसने कहाँ पहुँचाई

किसने खोदा
सबके मुँह
तक नाम
आ रहा था
गले तक आकर
पीछे को
चला जा रहा था

इसी लिये कोई
कुछ भी बताने
में इच्छुक नजर
बिल्कुल भी
नहीं आ रहा था

जिलाधिकारी
अपने
मातहतों के उपर
गुस्सा बरसा रहा था

अखबार में
अखबार वाला भी
खबर छपवा रहा था

नाम
पर किसी का
नहीं कहीं भी कोई
आ रहा था

हर कोई
कोई है
करके सबको
बता रहा था

सरकारी अमला
घरवालों के घरों
को तुरंत खाली
करवा रहा था

साथ में मुफ्त में
समझाये भी
जा रहा था

जब देख रहे थे
पहाड़ नीचे को
जा रहा था

तो किस बेवकूफ
के कहने पर तू यहाँ
घर बना रहा था

खोदने वाले को
कुछ नहीं
कोई कर पायेगा

भलाई तेरी
इसी में
दिख रही है
अगर
तू बिना
कुछ कहे
कहीं को
भाग जायेगा

इसके बाद
भूल कर भी
जिंदगी में
कहींं पर
घर बनाने
की गलती
दुबारा नहीं
दोहरायेगा।