अलग अलग जगहें
अलग अलग आदमी
कई किताबों में
कई जगह लिखी
हुई कुछ इबारतें
समय के साथ
बदलते हुऐ उनके मायने
मरती हुई एक लड़की
कोख में सड़क में
ससुराल में घर में
कभी एक औरत
कभी अर्धांगिनी
कभी बेटी कभी बहन
कहीं दुपट्टे से लटकी हुई
कहीं कटी हुई टुकड़ों में
कहीं जलती हुई खेत में
कहीं बीच सड़क पर
टी वी के एक प्रोग्राम
के बहस का मुद्दा
एक लाश एक फोटो
एक अखबार के लिये
बस एक खबर
सड़क पर एक भीड़
हर मौत पर एक गुस्सा
पता नहीं किस पर
मौत भी ऐसी जो
दे दी जाती है
बिना किसी
सजा के सुनाये
समय के साथ
इबारत नहीं बदली
ना ही आदमी बदला
मौत की सजा जारी है
अपनी जगह बादस्तूर
दे दी जाती है
बहस भी होती है
हमेशा की तरह पर
सजाऐ मौत के बाद
आदमी के पास
कानून नहीं है
पता नहीं क्यों
नहीं है अभी तक
पता चलती है ये बात
अगर देखेने लगे कोई
कितनी लड़कियों को
मारा गया सजाये
मौत देने के बाद ।
मार्मिक-
जवाब देंहटाएंयथार्थ को प्रकट करती लेखनी-
आभार-
हटाएंनारि-सुरक्षा पर खड़े, यक्ष प्रश्न नहिं स्वच्छ |
सजा मीडिया कक्ष पर, मचता रहा अकच्छ |
मचता रहा अकच्छ, बचा नाबालिग मुजरिम |
लचर व्यवस्था नीति, सजा की गति भी मद्धिम |
आजादी की चाह, राह पर कड़ी परीक्षा |
कर लें स्वयं सलाह, तभी हो नारि-सुरक्षा ||
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥
जवाब देंहटाएंकटु सत्य .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक
नमस्कार आपकी यह रचना कल रविवार (22--09-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (22-09-2013) “अनुवाद-DEATH IS A FISHERMAN” - चर्चामंच -1376 में "मयंक का कोना" पर भी है!
हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जवाब देंहटाएंफोकस में रहे सुरक्षा नारी की ,
न की नेता टेक्टर सम भारी की।
जवाब देंहटाएंसजाये मौत पहले बहस मौत के बाद !
अलग अलग जगहें
अलग अलग आदमी
कई किताबों में कई जगह लिखी हुई कुछ इबारतें
समय के साथ बदलते हुऐ उनके मायने
मरती हुई एक लड़की
कोख में सड़क में ससुराल में ...
उल्लूक टाईम्स पर Sushil Kumar Joshi
प्रासंगिक प्रस्तुति :
फोकस में रहे सुरक्षा नारी की ,
न की नेता टेक्टर सम भारी की।