कंकड़
पत्थर
की ढेरी के
एक कंकड़
जैसे हो जाते हैं
रिश्ते
साथ रहते हुऐ भी
अलग हो जाते हैं
जब
इच्छा होती है
इस ढेरी से
उस ढेरी में
डाल दिये जाते हैं
पता
चल जाता है
आकार प्रकार
और रंग से
अभी
तक कहीं
और थे
अभी
अभी कहीं
और
पाये जाते हैं
रस्सी
नहीं होते हैं
गांठो में नहीं
बांधे जाते है
खोलने
बांधने के
मौके जबकि
बहुत बार
सामने से आते हैं
मिलने जुलने
से लेकर
बिछोह
होने तक
रिश्ते गरम
से होते हुऐ
कब ठंडे
हो जाते हैं
रिश्ते
आसमान से
गिरते जल की
ऐसी बूँदे भी
हो सकते हैं
गिरते गिरते ही
एक दूसरे में
जो आत्मसात
हो जाते हैं
पानी में से
पानी को
अलग कर पाना
अभी तक यहाँ
कहीं भी नहीं
सिखाते हैं
अपनी अपनी
की धुन में
नाचती अपनी
जिंदगी में
कब
बूँद बन कर
आसमान
से नीचे की ओर
गिरते हुऐ आते हैं
किसी
दूसरी बूंद में
मिलने से पहले ही
कब पत्थर हो जाते हैं
जानते हैं
समझते हैं
पर समझना ही
कहाँ चाहते हैं
एक ढेरी के
कंकड़ो
में गिरकर
इधर से उधर
लुढ़कते लुढ़कते
किसी दूसरी ढेरी
में पहुँच जाते है
रिश्ते
पानी की बूँदें
नहीं हो पाते हैं ।