उलूक टाइम्स: भय
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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

परेशान ना हो देख समय अभी आगे और क्या क्या दिखाता है

भय
मुक्त समाज

शेर
और
बकरी के

एक साथ
पानी पीने
वाली बात

ना
जाने
कब

कौन
सुना पढ़ा गया

किसी
जमाने से
दिमाग में जैसे
मार रही हों
कितनी ही लात

पता नहीं
कब से

अचानक
ऐसे
एक नाटक
का पर्दा
सामने से
उठा हुआ सा
नजर आता है

भय
निर्भय होकर
खुले आम
गली मौहल्ले में
चक्कर लगाता है
और समझाता है

बस
हिम्मत
होनी चाहिये

कुछ भी
किसी तरह भी
कभी भी कहीं भी
कर ले जाने की

डरना
क्यों और
किससे है

जब ऐसा
महसूस होता है

जैसे
सभी का ध्यान
बस भगवान की 

तरफ चला जाता है

हर कोई
मोह माया
के बंधन से
बहुत दूर जा कर
खुद की आत्मा के
बहुत पास चला आता है

और
वैसे भी डर
उस समय क्यों

जब
कुछ ही देर में
आने वाला अवतार

खुद आकर
पर्दा गिराता है

और
जब
सब के मन के
हिसाब से होता है
हैड या टेल

यहां तक
किसी का मन
ना भी होने
की स्थिति में

उसके लिये
सिक्का
टेड़े मेड़े
रास्ते पर
खुद ही जा कर
खड़ा हो जाता है

कहावत
है भी
होनहार
बिरवान के
होत चीकने पात

जब
दिखनी
शुरु हो जायें
बिल्लियाँ खुद
अपनी घंटियाँ
हाथ में लिये अपने

और
खूँखार कुत्ता
निकल कर

उनके
बगल से ही

उनको
सलाम ठोकते हुऐ
मुस्कुरा कर
चला जाता है

ऐसे
मौके पर
कोई फिर
क्यों चकराता है

और फिर
समझ में तेरे
ये क्यों नहीं आता है

क्या
गलत है
जब कुछ भी
ऐसा वैसा नहीं
कर पाने वाला

उसकी
ईमानदारी
कर्तव्यनिष्ठा
और
सच्चाई के लिये

सरे आम

किसी
चौराहे पर टाँक
दिया जाता है ।