भय
मुक्त समाज
शेर
और
बकरी के
एक साथ
पानी पीने
वाली बात
ना
जाने
कब
कौन
सुना पढ़ा गया
किसी
जमाने से
दिमाग में जैसे
मार रही हों
कितनी ही लात
पता नहीं
कब से
अचानक
ऐसे
एक नाटक
का पर्दा
सामने से
उठा हुआ सा
नजर आता है
भय
निर्भय होकर
खुले आम
गली मौहल्ले में
चक्कर लगाता है
और समझाता है
बस
हिम्मत
होनी चाहिये
कुछ भी
किसी तरह भी
कभी भी कहीं भी
कर ले जाने की
डरना
क्यों और
किससे है
जब ऐसा
महसूस होता है
जैसे
सभी का ध्यान
बस भगवान की
मुक्त समाज
शेर
और
बकरी के
एक साथ
पानी पीने
वाली बात
ना
जाने
कब
कौन
सुना पढ़ा गया
किसी
जमाने से
दिमाग में जैसे
मार रही हों
कितनी ही लात
पता नहीं
कब से
अचानक
ऐसे
एक नाटक
का पर्दा
सामने से
उठा हुआ सा
नजर आता है
भय
निर्भय होकर
खुले आम
गली मौहल्ले में
चक्कर लगाता है
और समझाता है
बस
हिम्मत
होनी चाहिये
कुछ भी
किसी तरह भी
कभी भी कहीं भी
कर ले जाने की
डरना
क्यों और
किससे है
जब ऐसा
महसूस होता है
जैसे
सभी का ध्यान
बस भगवान की
तरफ चला जाता है
हर कोई
मोह माया
के बंधन से
बहुत दूर जा कर
खुद की आत्मा के
बहुत पास चला आता है
और
वैसे भी डर
उस समय क्यों
जब
कुछ ही देर में
आने वाला अवतार
खुद आकर
पर्दा गिराता है
और
जब
सब के मन के
हिसाब से होता है
हैड या टेल
यहां तक
किसी का मन
ना भी होने
की स्थिति में
उसके लिये
सिक्का
टेड़े मेड़े
रास्ते पर
खुद ही जा कर
खड़ा हो जाता है
कहावत
है भी
होनहार
बिरवान के
होत चीकने पात
जब
दिखनी
शुरु हो जायें
बिल्लियाँ खुद
अपनी घंटियाँ
हाथ में लिये अपने
और
खूँखार कुत्ता
निकल कर
उनके
बगल से ही
उनको
सलाम ठोकते हुऐ
मुस्कुरा कर
चला जाता है
ऐसे
मौके पर
कोई फिर
क्यों चकराता है
और फिर
समझ में तेरे
ये क्यों नहीं आता है
क्या
गलत है
जब कुछ भी
ऐसा वैसा नहीं
कर पाने वाला
उसकी
ईमानदारी
कर्तव्यनिष्ठा
और
सच्चाई के लिये
सरे आम
किसी
चौराहे पर टाँक
दिया जाता है ।
हर कोई
मोह माया
के बंधन से
बहुत दूर जा कर
खुद की आत्मा के
बहुत पास चला आता है
और
वैसे भी डर
उस समय क्यों
जब
कुछ ही देर में
आने वाला अवतार
खुद आकर
पर्दा गिराता है
और
जब
सब के मन के
हिसाब से होता है
हैड या टेल
यहां तक
किसी का मन
ना भी होने
की स्थिति में
उसके लिये
सिक्का
टेड़े मेड़े
रास्ते पर
खुद ही जा कर
खड़ा हो जाता है
कहावत
है भी
होनहार
बिरवान के
होत चीकने पात
जब
दिखनी
शुरु हो जायें
बिल्लियाँ खुद
अपनी घंटियाँ
हाथ में लिये अपने
और
खूँखार कुत्ता
निकल कर
उनके
बगल से ही
उनको
सलाम ठोकते हुऐ
मुस्कुरा कर
चला जाता है
ऐसे
मौके पर
कोई फिर
क्यों चकराता है
और फिर
समझ में तेरे
ये क्यों नहीं आता है
क्या
गलत है
जब कुछ भी
ऐसा वैसा नहीं
कर पाने वाला
उसकी
ईमानदारी
कर्तव्यनिष्ठा
और
सच्चाई के लिये
सरे आम
किसी
चौराहे पर टाँक
दिया जाता है ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-12-2013 को चर्चा मंच पर टेस्ट - दिल्ली और जोहांसबर्ग का ( चर्चा - 1466 ) में दिया गया है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
आभार
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : मृत्यु के बाद ?
सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति १
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य (भाग १)
बहुत बढ़िया..सही कहा है..
जवाब देंहटाएं