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रविवार, 5 जून 2016

विश्व पर्यावरण दिवस चाँद पर मनाने जाने को दिल मचल रहा है

कल रात चाँद
सपने में आया
बहुत साफ दिखा
जैसे कोई दूल्हा
बारात चलने
से पहले रगड़
कर हो नहाया
लगा जैसे
किसी ने कहा
आओ चलें
 चाँद पर जाकर
लगा कर आयें
कुछ चित्र
कुछ पोस्टर
कुछ साफ पानी के
कुछ स्वच्छ हवा के
कुछ हरे पेड़ों के
शोर ना करें
हल्ला ना मचायें
बस फुसफुसा
कर आ जायें
कुछ गीत
कुछ कवितायें
फोड़ कर आयें
हौले से हल्के
फुल्के कुछ भाषण
जरूरी भी है
जमाना भी यहाँ का
बहुत संभल
कर चल रहा है
अकेले अब कुछ
नहीं किया जाता है
हर समझदार
किसी ना किसी
गिरोह के साथ
मिल बांट कर
जमाने की हवा
को बदल रहा है
घर से निकलता है
जो भी अंधेरे में
काला एक चश्मा
लगा कर
निकल रहा है
सूक्ष्मदर्शियों की
दुकाने बंद
हो गई हैंं
उनके धंधों
का दिवाला
निकल रहा है
दूरदर्शियों की
जयजयकार
हो रही है
लंका में सोना
दिख गया है
की खबर रेडियो
में सुना देने भर से
शेयर बाजार में
उछालम उछाला
चल रहा है
यहाँ धरती पर
हो चुका बहुत कुछ
से लेकर सब कुछ
कुछ दिनों में ही इधर
चल चलते हैं ‘उलूक’
मनाने पर्यावरण दिवस
चाँद पर जाकर
इस बार से
यहाँ भी तो
बहुत दूर के
सुहाने ढोल नगाड़े
बेवकूफों को
दिखाने और
समझाने का
बबाला चल रहा है ।

चित्र साभार: islamicevents.sg

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

किसी को भी नहीं दे देना कुछ भी सभी कुछ उसी को दे आ

उसके कहने
पर चला जा
इसको दे आ
इसकी मान ले
बात और
उसको दे आ
चाँद तारों को देख
रोशनी के ख्वाब बना
अपनी गली के
अंधेरों को सपनों
में ही भगा
खुद कुछ मत सोच
इसकी या उसकी
कही बात को नोच
कपड़े पहन कर
संगम में नहा
थोड़ी घंटी थोड़ा
शंख भी बजा
झंडा रखना
जरूरी है
डंडा चाहे पीठ
के पीछे छुपा
तेजी से बदल रही
दुनियाँ के नियम
कानूनो को समझने
में दिमाग मत लगा
जहाँ को जाती
दिखे भीड़
कहीं से भी घुस
कर सामने से आजाने
का जुगाड़ लगा
जिस घर में घुसे
अपना ही घर बता
जिस घर से चले
उस में आग लगाने
के लिये एक पलीता
पहले से छोड़ जा
हारना सच को ही है
पता है सबको
झूठ के हजार पोस्टर
हजार जगहों पर चिपका
बहुत कुछ देख लेता है
‘उलूक’ रात के अंधेरे में
उसके रात को निकलने
पर सरकारी पाबंदी लगवा
दिमाग से कुछ कुछ देकर
आधा अधूरा मत बना
बिना सोचे समझे
सब कुछ देकर
पूरा बनाने का
गणित लगा
मरना तो है ही
एक ना एक दिन
सभी को कुछ तो
समझदारी दिखा
दो गज जमीन
खोद कर
पहले से कहीं ना
कहीं रख कर जा ।

चित्र साभार: eci.nic.in

शनिवार, 13 सितंबर 2014

मित्र “अविनाश विद्रोही” आपके आदेश पर इतना ही कुछ मुझ से आज कहा जायेगा

मित्र आपने
आदेश दिया है

उस पर
और उसके
चित्र के पाँव
सड़क पर
दिखा दिखा कर
धो कर पीने
वालों पर
कुछ लिखने
को कहा है

आपके
आदेश का
पालन करने
जा रहा हूँ

मैं आपके
उस सबसे
बड़े महान
के ऊपर
आज कुछ
लिखने ही
जा रहा हूँ

नाम
इसलिये नहीं
ले पा रहा हूँ

कहीं
इस बदनामी
का फायदा भी वो
उठा ले जायेगा

बहुत दिन
पोस्टरों में
रहा है गली गली
इस देश की

आने वाले
समय के
मंदिरों की
मूर्ति हो जायेगा

आज
साईं बाबा
को बाहर
फेंका जा रहा है

कल
हर उस
खाली जगह
पर वो
खुद ही जाकर
अपना बैठ जायेगा

उसके
चमचों की
बात कर के क्यों
अपना दिमाग
खराब करते हो

अभी
बहुत सालों तक
हर गली हर पेड़ पर
वो ही लटका हुआ
नजर आयेगा

इस देश
की किस्मत
अच्छी कही जाये
या बुरी

तेरी मेरी
किस्मत में
फुल स्टोप
उसके चमचे
का कोई चमचा
ही लगायेगा

सोच कर
आया था
‘उलूक’

पाँच साल
पूरे हो चुके
ब्लाग पर

अब शायद
गली की
बातों को छोड़
घर की रोशनी पर
कुछ लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
फेस बुक के
संदेश बक्से में

तेरा संदेश
उस पर
और
उसके चमचों पर
कुछ ना कुछ
लिख ले जाने
को उकसायेगा

उसके
पाँच सालों पर है
तेरी काली नजर

पर
अगले पाँच साल भी
उसका कोई ना कोई

चमचा
तुझे जरूर
कहीं ना कहीं रुलायेगा

क्या पता

उसकी
हजार फीट
की प्रतिमा
बनाने के
नाम पर
कुछ लोहा
माँगने ही
तेरे घर ही
आ जायेगा ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

जब तक सोच में कुछ आये इधर उधर हो जाता है

अपने सपने का
सनीमा बना कर
बाजार में
खुले आम
पोस्टर लगा
देने वाले के
बस में नहीं
होती हैं
उँचाईयाँ  

टूटी हुई सीढ़ियों
से गुजरना
और नीचे
देख देख कर
उनसे उलझने
की उसकी मजबूरी
उसकी आदत में
शामिल होती है
झुंड में शामिल
नहीं होने का
फायदा उठाते हैं
कुछ काले सफेद
सपनों को बोकर
रँगीन सपने बनाकर
दिखाने वाले लोग
जिनके लिये बहुत
जरूरी होती हैं
खाइयाँ और कुछ
टूटी हुई सीढ़ियाँ भी
क्योंकि उन सब को
पीछे देखने की
आदत नहीं होती है
और ना ही सीढ़ियों
की टूट फूट ही
रोक पाती है
उनके कदमों को
वो देखते हैं बस
पैर रखने भर
की जगह और
चढ़ते हुऐ झुंड
का एक कंधा
जिनके हाथ
और पैर देखने
में लगी हुई
आँखों को नजर
ही नहीं आ
पाती हैं उनकी
आँखे और
इशारे इशारे में
काम हो जाता है
क्योंकि इशारे
का अधिकार
सूचना के अधिकार
में नहीं आता है
और झुँड में से
कोई एक ऊपर
चला जाता है
बीच में रह जाती है
टूटी हुई सीढ़ियाँ
जिसके आस पास
  

खिसियाया हुआ
सा “उलूक”
एक कागज और
एक कलम लिया हुआ
अपना सिर खुजाता
हुआ नजर आता है । 

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश



इधर
कुछ 
पढ़े लिखे कुछ अनपढ़
एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुऐ

एक सरकारी 
कागज हाथ में
कुछ जवान कुछ बूढ़े
किसी को कुछ पता नहीं
किसी से कोई कुछ पूछता नहीं

भीड़
जैसे भेड़ 
और बकरियों का एक रेहड़
कुछ लैप टौप तेज रोशनी फोटोग्राफी
अंगुलियों और अंगूठे के निशान
सरकार बनाने वालों को मिलती एक खुद की पहचान
एक कागज का टुकड़ा 'आधार' का अभियान

उसी भीड़ का अभिन्न 
हिस्सा 'उलूक'
गोते लगाती हुई उसकी अपनी पहचान
डूबने से अपने को बचाती हुई

दूसरी तरफ
शहर की सड़कों पर बजते ढोल और नगाड़े
हरे पीले गेरुए रंग में बटा हुआ देश का भविष्य

थम्स अप लिमका 
औरेंज जूस 
प्लास्टिक की खाली बोतलें 
सड़क पर बिखरे
खाली 
यूज एण्ड थ्रो गिलास 
हजारों पैंप्लेट्स

नाच और नारे
परफ्यूम से ढकी सी आती एल्कोहोल की महक
लड़के और लड़कियां
कहीं खिसियाता हुआ
लिंगदोह

फिर कहीं 'उलूक'
बचते बचाते अपनी पहचान को
निकलता हुआ दूसरी भीड़ के बीच से

और
तीसरी तरफ 
प्रेस में छपते हुए
एक आदमी के पोस्टर

जो कल 
सारी देश की दीवार पर होंगे

और
यही भीड़ पढ़ रही होगी
दीवार पर लिखे हुऐ
देश के भविष्य को
जिसे इसे ही तय करना है ।

चित्र साभार: https://www.pikpng.com/

गुरुवार, 18 जुलाई 2013

देश बड़ा है घर की बनाते हैं

देश की सरकार
तक फिर कभी
पहुँच ही लेगें
चल आज अपने
घर की सरकार
बना ले जाते हैं
अंदर की बात
अंदर ही रहने
देते हैं किसी को
भी क्यों बताते हैं
ना अन्ना की टोपी
की जरूरत होती है
ना ही मोदी का कोई
पोस्टर कहीं लगाते हैं
मनमोहन को चाहने
वाले को भी अपने
साथ में मिलाते हैं
चल घर में घर की ही
एक सरकार बनाते हैं
मिड डे मील से हो
रही मौतों से कुछ तो
सबक सीख ले जाते हैं
जहर को जहर ही
काटता है चल
मीठा जहर ही
कुछ कहीं फैलाते हैं
घर के अंदर लाल
हरे भगवे में तिरंगे
रंगो को मिलाते हैं
कुछ पाने के लिये
कुछ खोने का
एहसास घर के
सदस्यों को दिलाते हैं
चाचा को समझा
कुछ देते हैं और
भतीजे को इस
बार कुछ बनाते हैं
घर की ही तो है
अपनी ही है
सरकार हर बार
की तरह इस
बार भी बनाते हैं
किसी को भी इस
से फरक नहीं
पड़ने वाला है कहीं
कल को घर से
बाहर शहर की
गलियों में अगर
हम अपने अपने
झंडों को लेकर
अलग अलग
रास्तों से निकल
देश के लिये एक
सरकार बनाने
के लिये जाते हैं ।

शनिवार, 14 जुलाई 2012

बहुत कम होते हैं

अपने ही बनाये
पोस्टर का
दीवाना हो जाना
बिना रंग भरे भी
क्योंकि पोस्टर अपना
कूची अपनी रंग अपने
और सोच भी अपनी
कभी भी उतारे
जा सकते हैं
अपनी इच्छा के सांचे में
जिस तरह चाहो
बस मूड अच्छा
होना चाहिये
उसके चश्में की
जरूरत होती है
उसके कैनवास पर
आड़ी तिरछी रेखाओं
से बने हुऎ चित्र को
देखने के लिये
हर कोई रख देता है
अपना कैनवास
समझने के लिये
किसी के भी सामने
पर उसे देखने के लिये
अपना चश्मा देने वाले
बहुत ही कम
लोग होते हैं
और ऎसे लोगों के
कैनवास भी
उनकी सोच ही के
बराबर उतने ही
बडे़ भी होते हैं

लेकिन ऎसे भी
कुछ लोग होते हैं।

गुरुवार, 24 मई 2012

अंडा बिक गया

अंडे
एक टोकरी के
अपने को बस
चरित्रवान दिखाते हैं

दूसरी
टोकरी की
मालकिन को
चरित्रहीन बताते हैं

कल
दूसरी टोकरी
के अंडों ने

पहली के
एक अंडे को
फुसला लिया

चरित्रवान अंडा

चरित्रहीन
कहलाये
जाने वाले
अंडों मेंं
मिला लिया

इधर का
एक अंडा
उधर के
एक अंडे का  

रिश्तेदार भी
बताया जाता है

पहली बार
उसने चुराया था

इस बार ये वाला
बदला ले जाता है

आमलेट
बनाने वाले भी
दो तरह के
पाये जाते है

एक
माँसाहारी

दूसरे
माँस के पुजारी
बताये जाते हैं

अंडा
फोड़ों का
हर बार

इन्ही
बातों पर
झग
ड़ा
हो जाता है

ये
झगड़ा करते
रह जाते हैं

इस बीच

इनका
अपना अंडा
इनको ही
धोखा
दे जाता है

अब
पहली
टोकरी में

अंडा
जगह खाली
करके आया है

दूसरी
टोकरी का अंडा

ये बात
मुर्गी रानी को
पहुंचाके आया है

छ:
महीने के भीतर

एक
नया अंडा
मुर्गी लेकर आयेगी

अंडे
से अंडा
लड़वाया जायेगा

जो
जीत जायेगा
उसे टोकरी
का राजा
बनवाया जायेगा

आमलेट
बनाने वाले
फिर
लंगोट पहन
कर आयेंगे

चरित्र दिखा
कर लाइन के
इधर उधर जायेंगे

कब्बडी
एक बार
फिर से
मैदान में
खेली जायेगी

मैदान
के बाहर
अंडे की बोली
लगायी जायेगी

अंडों
के पोस्टर भी
बड़े बड़े
छपवाये जायेंगे

अंडे
उछलते रहेंगे
टोकरी वालों को
गंजा कर चले जायेंगे

अंडे
इस टोकरी से

उस
टोकरी में जायेंगे

टोकरी वाले

अपनी
धोती को
खिसकते हुवे

फिर से
पकड़ 
कर
खिसियायेंगे।