लगातार
एक लम्बे समय तक
एक जैसी ही बकवास
करते चले जाने के अनुभव
के प्रयोग
किसी प्रयोगशाला में
परखनली के अन्दर से
निकलते फूटते बुलबुले नहीं हो पाते हैं
ना ही कहीं
कोई रंग बदलता हुआ
नजर आता है
स्याही का पन्ने से लिपटते समय
कागजों के अनुभवों के
हिसाब से
कागज और कलम हैं कहीं
सोये हुऐ भी अगर
सपने
उतर कर चले आते हैं
उनके भी अब
यहीं स्क्रीन पर
सामने से टिमटिमाते से
उभरते शब्दों के साथ
टंकण के लिये
उंगलियों को भी आदत हो गयी हो
जिस मैदान पर नाचने की
यूँ ही बेमतलब
जहाँ
निरंतरता बनाये रखने के
जुगाड़ पर लगे हुऐ
लिखने वाले लेखकों कवियों से इतर
कुछ कथित
खुद को स्थापित करने में लगे हुऐ
रात के अंधेरे के सिपाही जाने जाने वाले
ठूँठ पर
समय बिता बिता कर
समय की भी ऐसी की तैसी
करने में लगे हुऐ
पक्षियों को
बदनाम
करने में लगे हुओं को
किस ने
क्या कहना है
और
कौन सा
उन के कहे लिखे से
सुबह होनी है
लिखने लिखाने की
बहुत जरूरी है
जिंदा रहना बकवास का
ताकि असल जिंदा रहे
कहीं
और किसी पन्ने में
पता तो चले लिखना इतना आसान नहीं है
कुछ भी कभी भी कहीं भी
लिख लिखा कर
दो चार दिन की छुट्टी कर लेने वाले को भी
सब पता होता है
रोज स्कूल खोलने
और कभी कभी खोल देने में
बहुत ज्यादा अन्तर नहीं होता है
कौन सा कर्ता पढ़ा करता है कुछ
कहीं अपने किये कराये के ऊपर लिखे को
और
कौन सा लिखे लिखाये से होता है
कहीं उजाला
लिखने वाला सोच ले
वो दिया है
उसी दिन से
हितैशी शुरु कर देंगे
दिखाना उसके नीचे की जमीन
अंधेरे वाली
समाज को बता कर
उसे चीनी माओ का रिश्तेदार
माओवादी मिआउँ मिआउँ
रहने दीजिये
धन्यवाद आपको आपने पूरा पढ़ा
फिर से धन्यवाद
उनको
जिनको समझ में आ पाया
बाकी
कुछ लिखना जरूरी है
जिंदा रहने के लिये
और
जिंदा रखने के लिये एक पन्ना
नहीं तो कई आये हैं
कई आ कर चले गये
ज्ञान देकर
चिट्ठाकारी के ऊपर
टिप्पणी
मत दीजिये
टिप्पणी गुनाह है
टिप्पणी का प्रचार नहीं।
चित्र साभार: https://www.thebookdesigner.com/2013/08/3-blogging-mistakes/