उलूक टाइम्स: वैज्ञानिक
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बुधवार, 27 नवंबर 2013

उलूक का शोध ऊपर वाले को एक वैज्ञानिक बताता है

ऊपर वाला
जरूर किसी
अन्जान
ग्रह का
प्राणी वैज्ञानिक

और मनुष्य
उसके किसी
प्रयोग की
दुर्घटना
से उत्पन्न

श्रंखलाबद्ध
रासायनिक
क्रिया का
एक ऐसा
उत्पाद
रहा होगा

जो
परखनली
से निकलने
के बाद
कभी भी
खुद सर्व
शक्तिमान
के काबू में
नहीं रहा होगा

और
अपने और
अपने ग्रह को
बचाने के लिये

वो उस
पूरी की पूरी
प्रयोगशाला को

उठा के दूर
यहाँ पृथ्वी
बना कर
ले आया होगा

वापस
लौट के
ना आ जाये
फिर से कहीं
उसके पास

इसीलिये
अपने होने
या ना होने
के भ्रम में
उसने
आदमी को
उलझाया होगा

कुछ
ऐसा ही
आज शायद
उलूक की
सोच में
हो सकता है
ये देख कर
आया होगा

कि मनुष्य
कोशिश
कर रहा है आज

खुद से
परेशान
होने के बाद
किसी दूसरे ग्रह
में जाकर बसने
का विचार
ताकि बचा सके
अपने कुछ अवशेष

अपनी सभ्यता
के मिटने के
देख देख
कर आसार

क्योंकि मनुष्य
आज कुछ भी
ऐसा करता हुआ
नहीं नजर आता है

जिससे
महसूस हो सके
कि कहीं ऐसा कोई
ऊपर वाला भी
पाया जाता है

जैसे ऊपर वाले की
बातें और कल्पनाऐं
वो खुद ही यहाँ पर
ला ला कर फैलाता है

अपना जो भी
मन में आये
कैसा भी चाहे
कर ले जाता है

सामने वाले को
ऊपर वाले की
फोटो और बातों
से डराता है

कहीं भी ऐसा
थोड़ा सा 

भी महसूस
नहीं होता है

शक्तिशाली
ऊपर वाला
कहीं कुछ
भी अपनी
चला पाता है

उसी तरह
जिस तरह आज
मनुष्य खुद
अपने
विनाशकारी
आविष्कारों को
नियंत्रित करने में
अपने को
असफल पाता है

इस सब से
ऊपर वाले का
एक अनाड़ी
वैज्ञानिक होना
आसानी से क्या
सिद्ध नहीं
हो जाता है ।

शनिवार, 25 मई 2013

कमल बनना है तो कीचड़ पहले बना !

पढे़ लिखे लोग
यूं ही बुद्धिजीवी
नहीं कहलाते हैं
कभी देखा
कुछ हो भी जाये
उनके आस पास
बहुत सारे होते हैं
उसपर भी
कहने को कोई
कुछ नहीं आते हैं
कहते भी हैं तो
कान में कहते हैं
अखबार में नहीं
वो जो भी
छपवाते हैं
आई एस बी एन
होने पर ही
छपवाते हैं
माना कि तू भी
गलती से कुछ
पढ़ लिख ले गया
पर किस ने
कह दिया तुझसे
कि तू भी उसी
कैटेगरी का हो गया
हर बात पर
कुछ ना कुछ
कहने को चला
यहां आता है
गन्दी बातें बस
दिमाग में रखता है
गन्दगी यहाँ फैलाता है
देखा कभी कोई
पौसिटिव सोच वाला
तेरे से बात भी करना
कुछ चाहता है
निगेटिव देखता है
निगेटिव सोचता है
निगेटिव ही
बस फैलाता है
अब किसी कीचड़
फैलाने वाले को
यूँ ही फालतू में नहीं
गलियाना चाहिये
ये भी देखना चाहिये
अखबार में वो
कमल की तरह
दिख रहा है
इतना तो समझ
ही जाना चाहिये
कीचड़ अगर
नहीं फैलाया जायेगा
तो कमल कैसे
एक उगाया जायेगा
समझा कर
ये बात शायद
तेरे पिताजी ने तुझे
नहीं बतायी होगी
कमल बनाने के लिये
कीचड़ बनाने की विधि
तुझे नहीं समझाई होगी
देखता नहीं
तेरे आसपास के
सारे सफेदपोश
पैजामा उठा
कर चलते हैं
कीचड़ के छीटे
उछलते हैं तो
बस उछलते हैं
किसी को
उस कीचड़ से
कोई परेशानी
नहीं होती है
सरकार को
पता होता है
वो तो कमल की
दीवानी होती है
इसलिये
अब भी समय है
कुछ तो सुधर जा
पब्लिक को बेवकूफ
मत समझा कर
अपना भी समय
ऎसे वैसे में ना गंवा
कुछ काम धाम
करने की सोच बना
समान सोच के लोग
जो फैला रहे हैं कीचड़
उनकी शरण में जा
कमल ना भी बन पाया
तो कोई बात नहीं
कमल बनाने की
तकनीक सीख कर
वैज्ञानिक सोच ही
पैदा कर ले जा
कुछ प्रोजेक्ट ही ले आ
कुछ कर रहा है
वो ही चल दे दिखा ।