ऊपर वाला
जरूर किसी
अन्जान
ग्रह का
प्राणी वैज्ञानिक
और मनुष्य
उसके किसी
प्रयोग की
दुर्घटना
से उत्पन्न
श्रंखलाबद्ध
रासायनिक
क्रिया का
एक ऐसा
उत्पाद
रहा होगा
जो
परखनली
से निकलने
के बाद
कभी भी
खुद सर्व
शक्तिमान
के काबू में
नहीं रहा होगा
और
अपने और
अपने ग्रह को
बचाने के लिये
वो उस
पूरी की पूरी
प्रयोगशाला को
उठा के दूर
यहाँ पृथ्वी
बना कर
ले आया होगा
वापस
लौट के
ना आ जाये
फिर से कहीं
उसके पास
इसीलिये
अपने होने
या ना होने
के भ्रम में
उसने
आदमी को
उलझाया होगा
कुछ
ऐसा ही
आज शायद
उलूक की
सोच में
हो सकता है
ये देख कर
आया होगा
कि मनुष्य
कोशिश
कर रहा है आज
खुद से
परेशान
होने के बाद
किसी दूसरे ग्रह
में जाकर बसने
का विचार
ताकि बचा सके
अपने कुछ अवशेष
अपनी सभ्यता
के मिटने के
देख देख
कर आसार
क्योंकि मनुष्य
आज कुछ भी
ऐसा करता हुआ
नहीं नजर आता है
जिससे
महसूस हो सके
कि कहीं ऐसा कोई
ऊपर वाला भी
पाया जाता है
जैसे ऊपर वाले की
बातें और कल्पनाऐं
वो खुद ही यहाँ पर
ला ला कर फैलाता है
अपना जो भी
मन में आये
कैसा भी चाहे
कर ले जाता है
सामने वाले को
ऊपर वाले की
फोटो और बातों
से डराता है
कहीं भी ऐसा
थोड़ा सा
जरूर किसी
अन्जान
ग्रह का
प्राणी वैज्ञानिक
और मनुष्य
उसके किसी
प्रयोग की
दुर्घटना
से उत्पन्न
श्रंखलाबद्ध
रासायनिक
क्रिया का
एक ऐसा
उत्पाद
रहा होगा
जो
परखनली
से निकलने
के बाद
कभी भी
खुद सर्व
शक्तिमान
के काबू में
नहीं रहा होगा
और
अपने और
अपने ग्रह को
बचाने के लिये
वो उस
पूरी की पूरी
प्रयोगशाला को
उठा के दूर
यहाँ पृथ्वी
बना कर
ले आया होगा
वापस
लौट के
ना आ जाये
फिर से कहीं
उसके पास
इसीलिये
अपने होने
या ना होने
के भ्रम में
उसने
आदमी को
उलझाया होगा
कुछ
ऐसा ही
आज शायद
उलूक की
सोच में
हो सकता है
ये देख कर
आया होगा
कि मनुष्य
कोशिश
कर रहा है आज
खुद से
परेशान
होने के बाद
किसी दूसरे ग्रह
में जाकर बसने
का विचार
ताकि बचा सके
अपने कुछ अवशेष
अपनी सभ्यता
के मिटने के
देख देख
कर आसार
क्योंकि मनुष्य
आज कुछ भी
ऐसा करता हुआ
नहीं नजर आता है
जिससे
महसूस हो सके
कि कहीं ऐसा कोई
ऊपर वाला भी
पाया जाता है
जैसे ऊपर वाले की
बातें और कल्पनाऐं
वो खुद ही यहाँ पर
ला ला कर फैलाता है
अपना जो भी
मन में आये
कैसा भी चाहे
कर ले जाता है
सामने वाले को
ऊपर वाले की
फोटो और बातों
से डराता है
कहीं भी ऐसा
थोड़ा सा
भी महसूस
नहीं होता है
शक्तिशाली
ऊपर वाला
कहीं कुछ
भी अपनी
चला पाता है
उसी तरह
जिस तरह आज
मनुष्य खुद
अपने
विनाशकारी
आविष्कारों को
नियंत्रित करने में
अपने को
असफल पाता है
इस सब से
ऊपर वाले का
एक अनाड़ी
वैज्ञानिक होना
आसानी से क्या
सिद्ध नहीं
हो जाता है ।
नहीं होता है
शक्तिशाली
ऊपर वाला
कहीं कुछ
भी अपनी
चला पाता है
उसी तरह
जिस तरह आज
मनुष्य खुद
अपने
विनाशकारी
आविष्कारों को
नियंत्रित करने में
अपने को
असफल पाता है
इस सब से
ऊपर वाले का
एक अनाड़ी
वैज्ञानिक होना
आसानी से क्या
सिद्ध नहीं
हो जाता है ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-11-2013 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
सुन्दर पंक्तियाँ।। लेकिन मेरे अनुसार ऊपर वाला कोई और नहीं बल्कि एक दूसरे ग्रह के परग्रहवासी (आम बोलचाल की भाषा में "एलियंस") हैं।
जवाब देंहटाएंनई चिट्ठियाँ : ओम जय जगदीश हरे…… के रचयिता थे पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी
नया ब्लॉग - संगणक
कमाल !!!:)
जवाब देंहटाएंशुभ प्रात:काल ! एक रोचक गवेषणा है !!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 25 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह!!सर ,बहुत उम्दा ।मनुष्य खुद अपने विनाशकारी अविष्कारों को नियंत्रित अरने में खुद को असफल पाता है ...क्या बात कही है ...।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार सोच है, आत्म प्रवंचना में फसा मानव सदा से ही दूसरे को डराने के लिए भगवान नामक यंत्र का प्रयोग करता रहा है, और सच अगर भगवान ने ही मानव बनाया है तो ये उनकी प्रयोगशाला का सबसे बिगड़ा (विध्वंसक ) हुवा प्रयोग है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
अद्भुत, मानव भगवान की प्रयोगशाला का बिगड़ा हुआ उत्पाद!!!!
जवाब देंहटाएंकमाल की परिकल्पना
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!