उलूक टाइम्स: संजीदा
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सोमवार, 2 सितंबर 2019

मुखौटों के ऊपर मुखौटा कुछ ठीक से बैठता नहीं ‘उलूक’ चेहरा मत लिख बैठना कभी अपना शब्दों पर




एक
भीड़
लिख रही है 

लिख रही है
चेहरे
खुद के 

संजीदा
कुछ
पढ़ लेने वाले

अलग
कर लेते हैं

सहेजने
के लिये 

खूबसूरती
किसी भी
कोण से 

बना लेते हैं
त्रिभुज
या
वर्ग 

या
फिर
कोई भी
आकृति

सीखने में
समय
लगता है 
सीखने वाले को

पढ़ने वाले 
के
पढ़ने के
क्रम

जहाँ
क्रम होना
उतना 
जरूरी नहीं होता 

जितना
जरूरी होता है 

होना
चेहरा
एक अ‍दद 

जो
ओढ़ सके
सोच 

चेहरे के
ऊपर से 

पढ़ने
वाले की
आँखों की 

आँख से
सोचने वालों
को

जरूरत
नहीं होती
दिल
और
दिमाग की 

‘उलूक’
कभाड़
और
कबाड़ में 

कौन
शब्द सही है
कौन गलत 

कोई
फर्क
नहीं पड़ता है 

लगा रह
समेटने में 
लिख लिखा कर
एक पन्ना

संजीदगी
से
संजीदा
सोच का 

बस
चेहरा
मत दे देना
अपना

कभी
किसी
लिखे के ऊपर 

मुखौटों के ऊपर
मुखौटा
कुछ
ठीक से
बैठता नहीं।
चित्र साभार: https://www.dreamstime.com

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

जब भी कुछ संजीदा लिखने का मन होता है कोई राकेट उड़ गया की खबर दे देता है

राकेट
बना के
उड़ा देना
एक बात है

राकेट
की खबर
बना के
उड़ाना
कुछ
अलग
बात है

धरातल पर
जो कभी नहीं
होने दिया जाता है

वो सब
कहीं ना कहीं
को भिजवा
दिया गया एक
राकेट हो जाता है

अब
उड़ चुका
राकेट होता है

किसी को
नजर भी
कहीं नहीं
आ पाता है

हर तरफ
होती है खबर
राकेट के
कहीं होने की

अखबार
वाला भी
खबर लेने
राकेट के
उड़ने के
बाद ही
पहुंच पाता है

राकेट
बनाने वाला
राकेट
के बारे में
बताते हुऐ
जगह जगह
पर नजर
आ जाता है

जहाँ
खुद नहीं
पहुँच पाता है
राकेट
बनाने वाली
टीम के
सदस्य को
भिजवा
दिया जाता है

जिसे राकेट
के बारे में
पता नहीं
होता है
उसे
कुछ नहीं
आता है
कह कर
बदनाम कर
दिया जाता है

अब
राकेट
तो राकेट
होता है
धरातल में
कहीं भी
नहीं होता है

बस
खबर उड़
रही होती है
राकेट का कहीं
भी अता पता
नहीं होता है

समझने
की थोड़ी
सी कोशिश
तो करिये जनाब
कितना
अजब और
कितना
गजब होता है

राकेट
बनाने वाला
बहुत चालाक
भी होता है

राकेट के
लौट के
आने का
कहीं
इंतजाम
नहीं होता है

कितने कितने
राकेट उड़ते
चले जाते हैं

बातें होती
ही रहती हैं
वो कभी भी
कहीं भी
लौट के
नहीं आते हैं ।