ना कहीं खेत होता है
ना ही कहीं रेत होती है
ना किसी तरह की खाद की
ना ही पानी की कभी कहीं जरूरत होती है
फिर भी कुछ ना कुछ उगता रहता है
हर किसी के पास हर क्षण हर पल
अलग अलग तरह से कहीं सब्जी तो कहीं फल
किसी को काटनी आती है फसल
किसी को आती है पसंद बस घास उगानी
काम फसल भी आती है और उतना ही घास भी
शब्दों को बोना हर किसी के बस का नहीं होता है
बावजूद इसके कुछ ना कुछ उगता चला जाता है
काटना आता है जिसे काट ले जाता है
नहीं काट पाये कोई तब भी कुछ नहीं होता है
अब कैसे कहा जाये
हर तरह का पागलपन हर किसे के बस का नहीं होता है
कुकुरमुत्ते भी तो उगाये नहीं जाते हैं
अपने आप ही उग आते हैं
कब कहाँ उग जायें किसी को भी पता नहीं होता है
कुछ कुकुरमुत्ते मशरूम हो जाते हैं
सोच समझ कर अगर कहीं कोई बो लेता है
रेगिस्तान हो सकता है कैक्टस दिख सकता है
कोई लम्हा कहा जा सके कहीं एक बंजर होता है
बस शायद ऐसा ही कहीं नहीं होता है ।