ना कहीं खेत होता है
ना ही कहीं रेत होती है
ना किसी तरह की खाद की
ना ही पानी की कभी कहीं जरूरत होती है
फिर भी कुछ ना कुछ उगता रहता है
हर किसी के पास हर क्षण हर पल
अलग अलग तरह से कहीं सब्जी तो कहीं फल
किसी को काटनी आती है फसल
किसी को आती है पसंद बस घास उगानी
काम फसल भी आती है और उतना ही घास भी
शब्दों को बोना हर किसी के बस का नहीं होता है
बावजूद इसके कुछ ना कुछ उगता चला जाता है
काटना आता है जिसे काट ले जाता है
नहीं काट पाये कोई तब भी कुछ नहीं होता है
अब कैसे कहा जाये
हर तरह का पागलपन हर किसे के बस का नहीं होता है
कुकुरमुत्ते भी तो उगाये नहीं जाते हैं
अपने आप ही उग आते हैं
कब कहाँ उग जायें किसी को भी पता नहीं होता है
कुछ कुकुरमुत्ते मशरूम हो जाते हैं
सोच समझ कर अगर कहीं कोई बो लेता है
रेगिस्तान हो सकता है कैक्टस दिख सकता है
कोई लम्हा कहा जा सके कहीं एक बंजर होता है
बस शायद ऐसा ही कहीं नहीं होता है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छा बिम्ब है
जवाब देंहटाएंकुकुरमुत्ते भी तो
उगाये नहीं जाते हैं
उग आते हैं अपने आप
कब कहाँ उग जायें
किसी को भी
पता नहीं होता है
पर कुछ कुकुरमुत्ते
मशरूम हो जाते हैं
शब्दों की फसल काटते हैं कुछ लोग
और संसद में घुसके देश के लिए खतरा बन जाते हैं।
बोये बिन उगते रहे, घास-पात लत झाड़ |
जवाब देंहटाएंशब्द झाड़-झंकाड़ भी, उगे कलेजा फाड़ |
उगे कलेजा फाड़, दहाड़े सिंह सरीखा |
यह टाइम्स उल्लूक, उजाले में ही चीखा |
साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये |
हँसे भाव नितराम, बीज मस्ती के बोये ||
आभार !
हटाएंरविकर की पड़े टिप्पणी
तो कविता पूरी होये !
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंअर्थ पूर्ण भाव ...
जवाब देंहटाएंशब्दों का ताना बाना ... लाजवाब ...