उलूक टाइम्स: मशरूम
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शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है

ना कहीं खेत होता है 
ना ही कहीं रेत होती है 

ना किसी तरह की खाद की 
ना ही पानी की कभी कहीं जरूरत होती है 

फिर भी कुछ ना कुछ 
उगता रहता है 

हर किसी के पास 
हर क्षण हर पल 
अलग अलग तरह से कहीं सब्जी तो कहीं फल 

किसी को काटनी 
आती है फसल 
किसी को आती है पसंद बस घास उगानी 
काम फसल भी आती है और उतना ही घास भी 

शब्दों को बोना हर किसी के 
बस का नहीं होता है 
 बावजूद इसके कुछ ना कुछ उगता चला जाता है 
काटना आता है जिसे काट ले जाता है 
नहीं काट पाये कोई तब भी कुछ नहीं होता है 
अब कैसे कहा जाये 
हर तरह का पागलपन हर किसे के बस का नहीं होता है

कुकुरमुत्ते भी तो 
उगाये नहीं जाते हैं 
अपने आप ही उग आते हैं  
कब कहाँ उग जायें किसी को भी पता नहीं होता है 

कुछ कुकुरमुत्ते 
मशरूम हो जाते हैं 
सोच समझ कर अगर कहीं कोई बो लेता है 

रेगिस्तान हो सकता है 
कैक्टस दिख सकता है 

कोई लम्हा कहा जा सके 
कहीं एक बंजर होता है 
बस शायद ऐसा ही कहीं नहीं होता है ।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सारे कुकुरमुत्ते मशरूम नहीं हो पाते हैं

जंगल
में उगते हैं

कुकुरमुत्ते

कोई
भाव नहीं
देता है

उगते
चले
जाते हैं


बिना
खाद
पानी के

शहर
में सब्जी
की दुकान पर

मशरूम
के नाम पर

बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते

अच्छे
भाव के साथ

चाव से
खाते हैं लोग

बिना
किसी डर के

गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना

या फिर

कुकुरमुत्ता
हो जाना

होते
नहीं हैं
एक जैसे

बहुत से
गिरगिट

रंग बदलते
चले जाते हैं

इंद्रधनुष
बनने की
चाह में

पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है

कि
वो

कब
कुकुरमुत्ते
हो गये

कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे

मशरूम
भी नहीं
हो पाये।