फिर
एक साल निकल लिया
संकेत
होनी के होने के
नजर आना शुरु हुए
अपनी ही सोच में
खुद की सोच का ही
कुछ गीला हिस्सा
शायद फिर से
आग पकड़ लिया
धुआँ नहीं दिखा
बस जलने की खुश्बू आती हुयी
जैसा कुछ महसूस हुआ
निकल लिया उसी ओर को
सोचता हुआ देखने के लिये
अगर हुआ है कुछ तो क्या हुआ
लेकिन इस सब के बीच
बस इतना सा संतोष हुआ
कि खुश्बू सोच लिया
अच्छा किया
सकारात्मकता की रेखा को छूता रहा
सोच को अपना पैर
बाहर को नहीं रखने दिया
इससे पहले बदबू की सोचती
सोच
टाँग पकड़ कर
अन्दर का
अन्दर को ही खींंच लिया
समझाकर दिमाग को खुद के
अपनी ही मुट्ठी बनाकर
अपने ही हाथ की
जोर से ठोक लिया
हौले से हो रहे जोर के शोर से
कुछ हिलने का
जैसा अनुभव किया
फिर झिझक कर याद किया
जमाने पहले
गुरुजी का पढ़ाया शिष्टाचार का पाठ
और वही अपने आप
बड़बड़ाते हुऐ
खुद ही खुद के लिये बोल लिया
अभी सोच में आया ही था
कि
सभी तो लिख दिया
और अभी अभी फिर से
लिखने लिखाने को
कोने से
कलम दबा कर खिसक लिया
एक पुरानी किताब को
फिर बेमन से खोल लिया
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रहने दे
मत खाया कर कसम ‘उलूक’
नहीं लिखने की
लिख भी देगा तब भी
साल इसी तरह गुजरते चले जायेंगे
करने वालों की ताकत और सक्रियता में
वृद्धि चक्रवृद्धि होती रही है
लिखने लिखाने की कलमें घिसेंगी
घिसती चली जायेंगी
अखबार रोज का रोज
सबेरे दरवाजे पर टंका मिलेगा
खबरें छपवाने वालों की ही छपेंगी
साल भर की समीक्षा की किताब के हर पन्ने पर
वही चिपकी हुई नजर आयेंगी
हर साल इसी तरह
दिसम्बर की विदाई की जायेगी ।।
चित्र साभार: http://clipart-library.com/