उलूक टाइम्स: दिसम्बर
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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

दिसम्बर ने दौड़ना शुरु कर दिया तेजी से बस जल्दी ही साल की बरसी मनायी जायेगी



फिर 
एक साल निकल लिया 

संकेत 
होनी के होने के 
नजर आना शुरु हुए 

अपनी ही सोच में 
खुद की सोच का ही 
कुछ गीला हिस्सा 
शायद फिर से 
आग पकड़ लिया 

धुआँ नहीं दिखा 
बस जलने की खुश्बू आती हुयी 
जैसा कुछ महसूस हुआ 

निकल लिया उसी ओर को 
सोचता हुआ देखने के लिये 
अगर हुआ है कुछ तो क्या हुआ 

लेकिन इस सब के बीच 
बस इतना सा संतोष हुआ 

कि खुश्बू सोच लिया 
अच्छा किया 
सकारात्मकता की रेखा को छूता रहा 
सोच को अपना पैर 
बाहर को नहीं रखने दिया 

इससे पहले बदबू की सोचती 
सोच 
टाँग पकड़ कर 
अन्दर का 
अन्दर को ही खींंच लिया 
समझाकर दिमाग को खुद के 

अपनी ही मुट्ठी बनाकर 
अपने ही हाथ की 
जोर से ठोक लिया 

हौले से हो रहे जोर के शोर से 
कुछ हिलने का 
जैसा अनुभव किया 

फिर झिझक कर याद किया 
जमाने पहले 
गुरुजी का पढ़ाया शिष्टाचार का पाठ 

और वही अपने आप 
बड़बड़ाते हुऐ 
खुद ही खुद के लिये बोल लिया

अभी सोच में आया ही था 
कि 
सभी तो लिख दिया 

और अभी अभी फिर से 
लिखने लिखाने को 
कोने से 
कलम दबा कर खिसक लिया 

एक पुरानी किताब को 
फिर बेमन से खोल लिया

***********

रहने दे 
मत खाया कर कसम ‘उलूक’ 
नहीं लिखने की 
लिख भी देगा तब भी 
साल इसी तरह गुजरते चले जायेंगे 

करने वालों की ताकत और सक्रियता में 
वृद्धि चक्रवृद्धि होती रही है 

लिखने लिखाने की कलमें घिसेंगी 
घिसती चली जायेंगी 

अखबार रोज का रोज 
सबेरे दरवाजे पर टंका मिलेगा 
खबरें छपवाने वालों की ही छपेंगी 

साल भर की समीक्षा की किताब के हर पन्ने पर 
वही चिपकी हुई नजर आयेंगी

हर साल इसी तरह 
दिसम्बर की विदाई की जायेगी ।। 

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

एक और साल अपना दिसम्बर लिये सामने से नजर आता है

कितना
कुछ
यूँ ही छूट
जाता है

समय पर
लिखा ही
नहीं जाता है

चलते चलते
सड़क पर
अचानक
कुछ पक
पका जाता है

कहाँ रखो
सम्भाल कर

कलम कापी
रखने का
जमाना
याद आता है

लकीरें खींचना
आने ना आने
का सवाल
कहाँ उठता है

लकीरें खींचने
वाला शिद्दत
के साथ
हर पेड़ की
छाल पर
उसी की
शक्ल खोद
जाता है

किसी के
यहाँ भी होने
और उसी के
वहाँ भी होने
से ही जिसके
होने का मुरीद
जमाना हुआ
जाता है

जानते बूझते
हुऐ उसे
पूजा जाता है
किसी को वो
कहीं भी नजर
नहीं आता है

किसी का यहाँ
भी नहीं होना
और उसी का
वहाँ भी नहीं होना
उसके पूज्य होने
का प्रमाण
हो जाता है

दुर्भाग्य होता
है उसका जो
यहाँ का यहाँ
और
उसका भी
जो वहाँ का वहाँ
रहने की सोच से
बाहर  ही नहीं
निकल पाता है

दुनियाँ ऐसे
आने जाने
वालों के
पद चिन्हों
को ढूँढती है
जिन पर
चल देने वाला
बहुत दूर तक
कहीं पहुँचा
दिया जाता है

इधर से जाने
उधर से आने
उधर से जाने
इधर से आने
वालों को

खड़े खड़े
दूर से
आते जाते हुऐ

देखते रहने
वाले ‘उलूक’
की बक बक
चलती चली
जाती है

फिर से एक
और साल
इसी तरह
इसी सब में
निकलने के लिये
दिसम्बर का
महीना सामने
लिये खड़ा
हो जाता है ।

चित्र साभार: Can Stock Photo

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

इक्तीस दिसम्बर इस साल नहीं आ पाये सरकार के इस फरमान का मान रखें


ख्याल रखें
नया साल इस साल  मनाने की सोच कर
अपने लिये पैदा नहीं करें कोई बबाल
तुगलक और उसके फरमानों की फेहरिस्त
लिख लिखा कर
कहीं पैंट की जेब में सँभाल रखें

इक्तीस दिसम्बर को पूजा करें
हनुमान जी का ध्यान धरें
राम नामी माला ओढ़ कर
तुलसी माला के 108 दाने
दूध में धो कर धूप में सुखाकर
जनता को कुछ नया कर दिखाने का
मन ही मन ठान रखें

बीमार नहीं होना है छुट्टी नहीं लेनी है
पीने पिलाने का कार्यक्रम करें कोई रोक नहीं है
परदा लगा कर एक मोटा
इक्तीस को छोड़ कर किसी और दिन 
अपने घर से कहीं दूर किसी और की गली में करते समय 
ध्यान से अपने चेहरे पर एक रुमाल रखें

जनता के लिये जनता के द्वारा 
जनता के बीच जनता के साथ
तुगलक के नये वर्ष की तुगलकी एक जनवरी 
साल के किसी तीसरे या चौथे महीने से शुरु करते हुऐ
उम्मीदों को खरीदने बेचने की एक
नई दुकान की नई पहल के नये फरमान का
कुछ तो मान रखें ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com