सुपुर्द-ए-खाक
हो गये हों
या
जल कर
राख हो गये हों
ढूँढ कर
निकाल कर
लाये जायेंगे
हो गये हों
या
जल कर
राख हो गये हों
ढूँढ कर
निकाल कर
लाये जायेंगे
राख और मिट्टी
हो गये कुछ खास
फिर से
जमीन से खोद कर
धुलवाये जायेंगे
विज्ञान के
सारे ज्ञान का तेल
निकाल कर
पेल ले जायेंगे
पर छोड़ेंगे नहीं
मरे हुऐ भी
फिर से
जिन्दा
करवाये जायेंगे
अभी
बस
भूतों के
पीछे पड़े हैं
पाँच साल
रुकिये
भविष्य तय
कर करा कर
फंदे के
अंदर घसीट
लटका कर
ही जायेंगे
बाकि
काम तो
चलता ही रहता है
सत्तर साल
मिले हैं
आगे के
बराबरी
करने के लिये
अभी तो
सारा वही कुछ
पुराना
खोद कर
धो पोछ कर
नया बना
गा गा
कर लोरियाँ बनायेंगे
चेहरे
सामने के
चेहरे
आईने के
दिखते रहेंगे
देखते चले जायेंगे
चेहरे
असली
पीछे के
कोशिश करेंगे
जितना
हो सके
छुपायेंगे
कविता लिखेंगे
चेहरे बुनेंगे
साम्य
कुछ
जरूर बैठायेंगे
कर्म
किसने
देखने सुनने हैं
कभी
खुल भी गये
तो
थोड़ा सा
होंठों में
मुस्कुरायेंगे
कुछ को
ईनाम देंगे
कुछ को
शाबाशी मिलेगी
थोड़े कुछ
लिखने वाले रोड़े
गालियाँ
भी खायेंगे
गिरोह
शराफत के
दिखेंगे
जगह जगह
कुछ
हरों में
कुछ
पीलों में
गिने जायेंगे
कुछ
अलग होगा
कहीं किसी जगह
की सोच
बनाये रखेंगे
देखेंगे
हर जगह
राष्ट्रीय चरित्र
एक जैसा
‘उलूक’
जापान
के लोगों
के उदाहरण
जरूर
पेश किये जायेंगे
लिखना
जरूरी है
जो
जरूरी है
लोग
खूबसूरत हैं
गजब का
लिखते हैं
नाम है
पर
क्या
सच के साथ
खड़े हो पायेंगे?
चित्र साभार: www.istockphoto.com
खड़े हो पायेंगे?
चित्र साभार: www.istockphoto.com