अकेला दौड़ लगा रहा है
कछुआ बहुत दिनों से गायब है
दूर दूर तक
कहीं भी नजर नहीं आ रहा है
सारे कछुओं से पूछ लिया है
कोई कुछ नहीं बता रहा है
दौड़ चल रही है
खरगोश दौड़ता ही जा रहा है
इस बार लगता है
कछुआ मौज में आ गया है
और सो गया है
या
और सो गया है
या
कहीं छाँव में बैठा बंसी बजा रहा है
दौड़ शुरु होने से पहले भी
कछुऐ की खबर
कोई अखबार नहीं दिखा रहा है
कुछ ऐसा जैसा महसूस हो पा रहा है
कछुवा कछुओं के साथ मिलकर
कछुओं को इक्ट्ठा करवा रहा है
कछुओं को इक्ट्ठा करवा रहा है
एक नया करतब ला कर दिखाने के लिये
माहौल बना रहा है
कुछ नये तरह का हथियार बन तो रहा है
सामने ला कर कोई नहीं दिखा रहा है
दौड़ करवाने वाला भी
कछुऐ को कहीं नहीं देखना चाह रहा है
खरगोश गदगद हो जा रहा है
कछुऐ और उसकी छाया को दूर दूर तक
अपने आसपास फटकता हुआ
जब नहीं पा रहा है
जब नहीं पा रहा है
‘उलूक’ हमेशा ही
गणित में मार खाता रहा है
इस बार उसको लेकिन
दिन की रोशनी में
दिन की रोशनी में
चाँदनी देखने का जैसा मजा आ रहा है
कछुओं का
शुरु से ही गायब हो जाना
सनीमा के सीन से
दौड़ के गणित को
दौड़ के गणित को
कहीं ना कहीं तो गड़बड़ा रहा है
प्रश्न कठिन है और उत्तर भी
शायद
कछुआ ही ले कर आ रहा है।
चित्र साभार: http://clipart-library.com/