अकेला दौड़ लगा रहा है
कछुआ बहुत दिनों से गायब है
दूर दूर तक
कहीं भी नजर नहीं आ रहा है
सारे कछुओं से पूछ लिया है
कोई कुछ नहीं बता रहा है
दौड़ चल रही है
खरगोश दौड़ता ही जा रहा है
इस बार लगता है
कछुआ मौज में आ गया है
और सो गया है
या
और सो गया है
या
कहीं छाँव में बैठा बंसी बजा रहा है
दौड़ शुरु होने से पहले भी
कछुऐ की खबर
कोई अखबार नहीं दिखा रहा है
कुछ ऐसा जैसा महसूस हो पा रहा है
कछुवा कछुओं के साथ मिलकर
कछुओं को इक्ट्ठा करवा रहा है
कछुओं को इक्ट्ठा करवा रहा है
एक नया करतब ला कर दिखाने के लिये
माहौल बना रहा है
कुछ नये तरह का हथियार बन तो रहा है
सामने ला कर कोई नहीं दिखा रहा है
दौड़ करवाने वाला भी
कछुऐ को कहीं नहीं देखना चाह रहा है
खरगोश गदगद हो जा रहा है
कछुऐ और उसकी छाया को दूर दूर तक
अपने आसपास फटकता हुआ
जब नहीं पा रहा है
जब नहीं पा रहा है
‘उलूक’ हमेशा ही
गणित में मार खाता रहा है
इस बार उसको लेकिन
दिन की रोशनी में
दिन की रोशनी में
चाँदनी देखने का जैसा मजा आ रहा है
कछुओं का
शुरु से ही गायब हो जाना
सनीमा के सीन से
दौड़ के गणित को
दौड़ के गणित को
कहीं ना कहीं तो गड़बड़ा रहा है
प्रश्न कठिन है और उत्तर भी
शायद
कछुआ ही ले कर आ रहा है।
चित्र साभार: http://clipart-library.com/
बहुत सुदर " पञ्च लो k तंत्र " धन्यवाद सर ! :)
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सही कहा..ऐसा ही कुछ लगता है....बेहतरीन प्रस्तुति।।।
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (01-05-2014) को श्रमिक दिवस का सच { चर्चा - 1599 ) में अद्यतन लिंक पर भी है!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत
पंचतंत्र का सुराज एवं स्वराज्य ही हमारी संस्कृति की पहचान था। पंचतंत्र अभी भी कुछ गांवों में कायम है, जहाँ महत्वपूर्ण निर्णय पंच ही लेते हैं……… अच्छी कविता … आभार
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