उलूक टाइम्स: चूहा
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रविवार, 5 अप्रैल 2015

शेर के लिये तो एक शेर से ही काम चल जाता है

पता चल
जाता है
और
अच्छा भी है

वो
आता जाता है
पर पढ़ने
के लिये नहीं

बस ये
देखने के लिये
कि आखिर
रोज रोज
यहाँ पर ऐसा
क्या कुछ
लिखा जाता है

अब ऐसा
भी नहीं
लिखता है कोई

पढ़ते ही
चल जाये पता
कि लिखा
क्या जाता है

लिखा जाता है
उसके लिये ही

जो भी
जैसा भी
जहाँ भी
जितना भी
लिखा जाता है

जानता है
वो भी अच्छी
तरह से ये

किसलिये
कहाँ और क्या
लिखा जाता है

परेशानी
होती है
केवल
उसको
ये देखकर

बस एक
और
केवल
एक ही

शेर जैसा
कुछ लिखा
जाता है

शेर भी
लिखा जाता है
उसके
शेर होने पर
लिखा जाता है

खुश होता है
या नहीं
ये बस
पता नहीं
किसी को
चल पाता है

‘उलूक’
शेर तो
शेर होता है
कुछ करे
या ना करे

दहाड़ने
से ही
एक बार
एक दिन में
बहुत कुछ
हो ही जाता है

बस बात
ये समझना
दिमाग से
कुछ बाहर को
चला जाता है

शेर पर
लिखे गये
शेर को
पढ़ पढ़ कर

एक चूहा
अपनी
झुँझुलाहट
दिखा कर
नाराजगी
व्यक्त
आँखिर क्यों
कर के जाता है ?

चित्र साभार: martanime.deviantart.com

शनिवार, 31 जनवरी 2015

एक को चूहा बता कर हजार बिल्लियों ने उसे मारने से पहले बहुत जोर का हल्ला करना है


बाअदब
बामुलाहिजा
होशियार

बाकी
सब कुछ
तो ठीक है
अपनी अपनी
जगह पर

तुम एक
छोटी
सी बात
हमको भी
बताओ यार

शेर के खोल
पहन कर
कब तक करोगे
असली शेरों
का शिकार

सबसे
मनवा
लिया है
सब ने मान
भी लिया है
कबूल कर
लिया है

सारे के सारे
इधर के भी
उधर के भी
हमारे और
तुम्हारे
तुम जैसे

जहाँ कहीं
पर जो भी
जैसे भी हो
शेर ही हो

उसको
भी पता है
जिसको
घिर घिरा
कर तुम
लोगों के
हाथों
बातों के
युद्ध में
मरना है

मुस्कुराते हुऐ
तुम्हारे सामने
से खड़ा है

गिरा भी लोगे
तुम सब मिल
कर उसको

क्योंकि एक के
साथ एक के युद्ध
करने की सोचना
ही बेवकूफी
से भरा है

अब बस एक
छोटा सा काम
ही रह गया है

एक चूहे को
खलास करने
के लिये ही

सैकड़ों
तुम जैसी
बिल्लियों को
कोने कोने से
उमड़ना है

लगे रहो
लगा लो जोर

कहावत भी है
वही होता है जो
राम जी को
पता होता है

जो करना
होता है
वो सब
राम जी ने ही
करना होता है

राम जी भी
तस्वीरों में तक
इन दिनों कहाँ
पाये जाते हैं

तुम्हारे
ही किसी
हनुमान जी
की जेबों
में से ही
उन्होने भी
जगह जगह
अपना झंडा
ऊँचा करना है

वो भी बस
चुनाव तक

उसके बाद
राम जी कहाँ
हनुमान जी कहाँ

दोनो को ही
मिलकर
एक दूसरे
के लिये
एक दूसरे के
हाथों में
हाथ लिये

विदेश
का दौरा
साल
दर साल
हर साल
करना है ।

चित्र साभार: www.bikesarena.com

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

बिल्ली जब जाती है दिल्ली चूहा बना दिया जाता सरदार है



नदी है नावें है बारिश है बाढ़ है
नावें पुरानी हैं छेद है पानी है
पतवार हैं हजार हैं
पार जाने को हर कोई भी तैयार है

बैठने को पूछना नहीं है कुर्सियों की भरमार है

गंजे की कंघी है
सपने के बालों को रहा संवार है

लाईन है दिखानी है
पीछे के रास्ते पूजा करवानी है
बारी का करना नहीं इंतजार है

नियम हैं कोर्ट है
कचहरी है वकील हैं
दावे हैं वादे हैं वाद हैं परिवाद हैं
फैसला करने को न्यायाधीश तैयार है

भगवान है पूजा है मंत्र हैं पंडित है 
दक्षिणा माँगने का भी एक अधिकार है

पढ़ना है पढ़ाना है स्कूल जरुरी जाना है
सीखने सिखाने का बाजार गुलजार है

धोती है कुर्ता है झोला है लाठी है
बापू की फोटो है 
मास्साब तबादले के लिये
पीने पिलाने को खुशी खुशी तैयार है

‘उलूक’ के पास काम नहीं कुछ
अड़ोस पड़ोस की चुगली का
बना लिया व्यापार है ।

मंगलवार, 29 अप्रैल 2014

अपनी अक्ल के हिसाब से ही तो कोई हिसाब किताब लगा पायेगा

सोचता हुआ
आ रहा था
शायद आज
कुछ अच्छा सा
लिखा जायेगा
क्या पता कहीं
कोई फूल सुंदर
एक दिख जायेगा
कोई तो आकर
भूली हुई एक
कोयल की याद
दिला जायेगा
मीठी कुहू कुहू से
कान में कुछ
नया सा रस
घुल के आयेगा
किसे पता था
किराये का चूहा
उसका फिर से
मकान की नींव
खोदता हुआ
सामने सामने
से दिख जायेगा
जंगली होता तो भी
समझ में आता
समझाने पर कुछ
तो समझ जायेगा
पालतू सिखाये हुऐ से
कौन क्या कुछ
कहाँ कह पायेगा
पढ़ाया लिखाया हुआ
इतनी आसानी से
कहाँ धुल पायेगा
बताया गया हो
जिसको बहुत
मजबूती से
खोदता खोदता
दुनियाँ के दूसरे
छोर पर वो
पहुँच जायेगा
उतना ही तो
सोच सकता है कोई
जितना उसकी
सोच के दायरे
में आ पायेगा
भीड़ की भेड़ को
गरडिये का कुत्ता
ही तो रास्ते पर
ले के आयेगा
‘उलूक’ नहीं तेरी
किस्मत में कहना
कुछ बहुत अच्छा
यहाँ तेरे घर को
खोदने वाला ही
तुझे तेरे घर के
गिरने के फायदे
गिनवायेगा
और अपना
खोदता हुआ
पता नहीं कहाँ से
कहाँ पहुँच जायेगा ।

शनिवार, 10 अगस्त 2013

जिन्दगी भी एक प्रतिध्वनी है

उनके मुँह से जैसे ही निकला
कि जिन्दगी
एक प्रतिध्वनी है

पूछ बैठे
क्या हुआ
इसका अर्थ
समझाओगे

मेरे
दिमाग की
खुराफात
ने कहा
अभी तो
कुछ नहीं
बताउँँगा

आज
शाम को
लिखा हुआ
इसी पर आप
कुछ ना जरुर
कुछ पाओगे

अब फलसफा
है तो बहुत ही
जानदार

कहा जा
सकता है
कि इसमें तो हैं
पूरी जिन्दगी के
सारे उतार चढ़ाव

उनके हिसाब से
जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
होता हो शायद

जो लौट के फिर
कभी ना कभी
एक बार जरूर
वापस आता है

टकरा टकरा कर
हर लम्हा जिंदगी
का फिर दुबारा
कहीं ना कहीं
खुद से खुद को
इस तरह मिलाता है

अपने को भूले हुऎ
को क्षण भर को
ही सही कुछ
अपने बारे में
कुछ कुछ याद
सा आ जाता है

नहीं तो सुबह शुरु
हुई जिंदगी को
संवारने में सारा
दिन कोई भी
गुजार ले जाता है

और
शाम होते होते
ही पता चलने
लग जाता है
कि
इस पूरी कोशिश में
फिर से कोई
कौना जिंदगी का
फटी हूई पैजामे
से निकले घुटनो
की तरह से कहीं
एक नई जगह
से मुँह अपना
निकाल ले जाता है
फिर चिढा़ता है

अब उनके जिंदगी
के इस पहलू पर
जब तक मैं
कुछ सोच भी पाता

क्या किया जाये
मजबूरी है
सोच की भी
कि कौन
सा खयाल
किस की
सोच में आता है

मुझे खुद में वो
बिलाव नजर
आता है जो
चूहे को
सामने से

कुतरते हुऎ
कतरा कतरा
जिंदगी अपने
आप को
बेबस सा
पाता है

पर कर कुछ
नहीं सकता
सिवाय अपने
पंजे के नाखूनो
को एक खम्बे
को नोच नोच
कर घायल
कर जाता है

फिर उसी
रात को
सपने में
उस चूहे
को अपने
पंजो में दबा
हुआ तड़पता
पाता है

इसी तरह कुछ
गुजर जाती
है जिन्दगी
रोज रोज
के रोज ही

जिन्दगी एक
प्रतिध्वनी है
का मतलब
शायद इन
सपनो का होना
ही हो जाता है

जो पूरे नहीं
कभी हो पाते हैं
लेकिन लौट के
आना जिन्दगी
में एक बार फिर
से उनका बहुत
जरूरी हो जाता है ।

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

"चुहिया"

गीदड़ ने
अखबार में
छपवाया है
वो शेर है

ताज्जुब है
वो अब
तो गुर्राता
भी है

शेरों को
कोई फर्क
कहाँ पड़ता है

हर शेर
हमेशा
की तरह
आफिस
आता है

बॉस को
लिखाता है
वो अभी
भी शेर है

चुहिया
हमेशा
की तरह
लिपिस्टिक
लगा कर
आती है
पूंछ
उठाती है
हर शेर के
चारों तरफ
हौले हौले
कदमताल
रोज कर के
ही जाती है

शेर कुछ
कह नहीं
पाते हैं

बस
मूँछ मूँछ
में ही कुछ
बड़बड़ाते हैं
चुहिया की
मोटापे को
सुन्दरता
की पायजामा
अपने शब्दों
में पहनाते है

चूहा
शेरों की
दुकान
चलाता है
भेजता
जाता है
चुहिया को 
गीदड़ के
घर रोज

ताकि
किसी दिन
गीदड़ भटक
ना जाये
और
कबूल ना
कर ले जाये
वो शेर नहीं है ।

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

चुनाव

चूहा कूदा फिर कूदा
कूद गया फिसल पड़ा
एक कांच के गिलास
में जाकर डूब गया
छटपटाया फड़फड़ाया
तुरंत कूद के बाहर
निकल आया
सामने देखा तो
दिखाई दे गयी
अचानक उसे
एक बिल्ली
पर ये क्या
बिल्ली तो
नांक मुंह
सिकोड़ने
लगी
चूहे से मुंह
मोड़ने लगी
चूहा कुछ फूलने
सा लगा
थोड़ा थोडा़ सा
झूमने भी लगा
बिल्ली को देख कर
पूंछ उठाने लगा
फिर बिल्ली को
धमकाने लगा
बिल्ली बोली
बदबू आ रही है
जा पहले नहा के आ
वर्ना अपनी शकल
मुझे मत दिखा
चूहा मुस्कुराया
फिर फुसफुसाया
हो गया ना कनफ्यूजन
गिलास में क्या गिरा
बदबू तुम्हें है आने लगी
पर गिलास में शराब
नहीं है दीदी
वहां तो सरकार है
चुनाव नजदीक आ रहा है
टिकट बांटे जा रहे हैं
मैंने फिसल के
अपना भाग्य है चमकाया
जीतने वाली पार्टी
का टिकट उड़ाया
और कूद के बाहर
हूँ आया।