उलूक टाइम्स: शेखचिल्ली
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शनिवार, 26 अप्रैल 2014

अच्छी तरह से समझ लेना अच्छा होता है जब कोई समझा रहा होता है

समझा कर
जब कोई
बहुत प्यार से
कुछ समझा
रहा होता है
बस अच्छे दिन
आने ही वाले हैं
तुझे और बस
तुझे ही केवल
बता रहा होता है
किसके आयेंगे
कब तक आयेंगे
कैसे आयेंगे
नहीं सोचनी
होती हैं ऐसे में
ऐसी बातें जिनको
सुलझाने में
समझने वाला
खुद ही उलझा
जा रहा होता है
देश सबका होता है
हर कोई देश की
खातिर ही अपने
को दाँव पर
लगा रहा होता है
किसको गलत
कहा जा सकता है
ऐसे में अगर
ये इसके साथ
और वो उसके साथ
जा रहा होता है
मतदाता होने का
फख्र तुझे भी
होना ही है कुछ दिन
तक ही सही
बेकार का कुछ सामान
सबके लिये ही बहुत
काम की चीज जब
हो जा रहा होता है
होना वही होता है
कहते हैं जो
राम के द्वारा
उपर कहीं आसमान में
रचा जा रहा होता है
क्या बुरा है
देख लेना ऐसे में
शेखचिल्ली का
एक सपना जिसमें
बहुमत मत देने
वाले का ही
आ रहा होता है
वो एक अलग
पहलू रहा होता है
बात का हमेशा से ही
समझाने वाला
समझाते समझाते
अपने आने वाले
अच्छे दिनों का
सपना समझा
रहा होता है
समझा कर
कहाँ मिलता है
एक समझाने वाला
ये वाला भी
कई सालों बाद
फिर उसी बात को
समझाने के लिये
ही तो आ जा
रहा होता है ।

गुरुवार, 8 मार्च 2012

सबक

मायूस क्यों
होता है भाई
कुर्सी तेरे
आदमी तक
अगर नहीं
पहुंच पायी

तू लगा था
सपने देखने मे
तेरे हाथ भी
कभी एक
स्टूल आ
ही जायेगा
शेखचिल्ली
बनेगा तो
आगे भी जमीन
पर ही आयेगा
आसमान
से गिरेगा
खजूर में
अटक जायेगा

इधर तू दूल्हा
सजा रहा था
उधर तेरा
ही रिश्तेदार
कुर्सी
खिसका रहा था

कहा गया है
कई बार
जिसका काम
उसी को साजे
और करे
तो ठेंगा बाजे

अब भी
सम्भल जा
उस्तरा उठा
और
सम्भाल अपनी
दुकान को
नाई था
नाई हो जा
नेता जी
की दुकान
सजाने अब
तो नहीं जा

कुर्सी सबके
नसीब में होती
तो मैने भी
पैदा होते ही
एक मेज
खरीद ली होती

नाई
दुकानदार
हलवाई
सब अपनी
अपनी जगह
ठीक लगते
हैं भाई

इतिहास
गवाह है
जिस दिन
मास्टर बंदूक
उठाता है
शेर के
शिकार
पर जाना
चाहता है
गोली पेड़
की जड़ मे
लगी हुवी
पाता है
और
मुंह की
खाता है

नेता को
नेतागिरी
अब तो
मत सिखा
लौट के
दुकान पर आ
उस्तरा उठा
शुरू हो जा।