उलूक टाइम्स

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

अंगरेजी में अनुवाद कर समझ में आ जायें फितूर ‘उलूक’ के ऐसा भी नहीं होता है

महसूस
करना
मौसम की
नजाकत
और
समय
के साथ
बदलती
उसकी
नफासत
सबके लिये
एक ही
सिक्के
का एक
पहलू हो
जरूरी
नहीं है

मिजाज
की तासीर
गर्म
और ठंडी
जगह की
गहराई
और
ऊँचाई
से भी
नहीं नापी
जाती है

आदमी की
फितरत
कभी भी
अकेली
नहीं होती है
बहुत कुछ
होता है
सामंजस्य
बिठाने
के लिये

खाँचे सोच
में लिये
हुऐ लोग
बदलना
जानते है
लम्बाई
चौड़ाई
और
गोलाई
सोच की

लचीलापन
एक गुण
होता है जिसे
सकारात्मक
माना जाता है

एक
सकारात्मक
भीड़ के लिये
जरूरत भी
यही होती है
और
पैमाना भी

भीड़ हमेशा
खाँचों में
ढली होती है

खाँचे सोच
में होते हैं
सोच का
कोई खाँचा
नहीं होता है

‘उलूक’
नाकारा सा
लगा रहता है
सोच की
पूँछ पर
प्लास्टर
लगाने
और
उखाड़ने में

हर बार
खाँचा
कुत्ते की
पूँछ सा
मुड़ा हुआ
ही
होता है

दीवारों पर
कोयले से
खींची गई
लकीरों का
अंगरेजी में
अनुवाद भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: Shutterstock

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

NAAC ‘A’ की नाक के नीचे की नाव छात्रसंघ चुनाव

किसी
बेवकूफ
ने सभी
पदों पर
नोटा पर
निशान
लगाया था

तुरन्त
होशियार
के
होशियारों
ने उसपर
प्रश्नचिन्ह
लगाया था

सोये हुऐ
प्रशासन
की नींद
जारी
रही थी
काम
निपटाये
जा रहे थे

लिंगदोह
कुछ देर
के लिये
अखबार
में दिखा था
और
प्रशासन
की फूँक
भी खबर
के साथ
हवा में
उड़ती हुई
थोड़ी देर
के लिये
चेतावनियाँ
लिये
उड़ी थी

अखबार में
खबर किसने
चलाई थी
और क्यों ये
अलग प्रश्न था
अलग बात थी

गुण्डाराज
के गुण्डों
पर किसे
कुछ
कहना था
और
किस की
औकात थी

पर पिछले
दो महीने
के ताण्डवों
से परेशान
कुछ दूर
दराज के
गावों से
शहर में
आकर पढ़
रहे इन्सान
सुखाते
जा रहे
कुछ जान
कुछ बेजान
कुछ परेशान
किसी ने
नहीं देखे थे

दिखते
भी कैसे
नशे में
चूर भीड़
बौराई
हुई थी
और
प्रशासन
शाशन के
आशीर्वादों
से
लबालब
जैसे
मिट्टी नई
किसी
खेत की
भुरभुराई
हुई थी

जो
भी था
चुनाव
होना था
हुआ
मतपत्र
गिने
जाने थे
किसी ना
किसी ने
गिनना था

एक मत पत्र
बीच में
अकेला दिखा
जिसमें हर
पद पर नोटा
था दिया गया

किसी ना
किसी
ने कुछ
तो कहना
ही था

बेवकूफ
वोट देने
ही क्यों
आया था
सारे पदों
पर
नोटा पर
मुहर लगा
अपनी
बेवकूफी
बता कर
आखिर
उसने क्या
पाया था

‘उलूक’
मन ही मन
मुस्कुराया था
हजारों में
एक ही
सही पर
था कहीं
जो अपने
गुस्से का
इजहार
कर
पाया था
असली
मतदान
कर उस
अकेले
ने सारे
निकाय
को आईना
एक
दिखाया था ।

चित्र साभार: Canstockphoto.com

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

कैसे नहीं हुआ जा सकता है अर्जुन बिना धनुष तीर और निशाने के

जरूरी नहीं है
अर्जुन ही होना
ना ही जरूरी है
हाथ में धनुष
और
तीर का होना
 कोई जरूरी
नहीं है किसी
द्रोपदी के लिये
कहीं कोई स्व्यंवर
का होना
आगे बढ़ने के लिये
जरूरी है बस
मछली की आँख
का सोच में होना
खड़े खड़े रह गये
एक जगह पर
शेखचिल्ली की
समझ में समय
तब आता है जब
बगल से निकल
कर चला गया
कोई धीरे धीरे
अर्जुन हो गया है
का समाचार बन
कर अखबार में
छ्पा हुआ
नजर आना
शुरु हो जाता है
समझ में आता है
कुछ हो जाने
के लिये
आँखों को खुला
रख कर कुछ
नहीं देखा जाता है
कानों को खुला
रख कर
सुने सुनाये को
एक कान से
आने और दूसरे
कान से जाने
का रास्ता
दिया जाता है
कहने के लिये
अपना खुद का
कुछ अपने पास
नहीं रखा जाता है
इस का पकाया
उस को और
उस का पकाया
किसी को खिला
दिया जाता है
नीरो की तरह
बाँसुरी कोई
नहीं बजाता है
रोम को
खुद ही
अपने ही
किसी से
थोड़ा थोड़ा
रोज जलाये
जाने के तरीके
सिखला जाता है
एक दो तीन
दिन नहीं
महीने नहीं
साल हो जाते हैं
सुलगना
जारी रहता है
अर्जुन हो गये
होने का प्रमाण
पत्र लिये हुऐ
ऐसे ही कोई
दूसरी लंका के
सोने को उचेड़ने
की सोच लिये
राम बनने के लिये
अगली पारी की
तैयारी के साथ
सीटी बजाता हुआ
निकल जाता है
‘उलूक’
देखता रह
अपने
अगल बगल
कब मिलती है
खबर
दूसरा निकल
चुका है मछली
की आँख की
सोच लेकर
अर्जुन बनने
के लिये
अर्जुन के
पद चिन्हों
के पीछे
कुछ बनने
के लिये
फिर
एक बार
रोम को
सुलगता रहने
देने का
आदेश किस
अपने को
दे जाता है ।

चित्र साभार: Clipart Kid

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

हत्यारे की जाति का डी एन ए निकाल कर लाने का एक चम्मच कटोरा आज तक कोई वैज्ञानिक क्यों नहीं ले कर आया

शहर के एक
नाले में मिला
एक कंकाल
बेकार हो गया
एक छोटी
सी ही बस
खबर बन पाया
किस जाति
का था खुद
बता ही
नहीं पाया
खुद मरा
या मारा गया
निकल कर
अभी कुछ
भी नहीं आया
किस जाति
के हत्यारे
के हाथों
मुक्ति पाया
हादसा था
या किसी ने
कुछ करवाया
समझ में
समझदारों के
जरा भी नहीं
आ पाया
बड़ी खबर
हो सकती थी
जाति जैसी
एक जरूरी
चीज हाथ में
लग सकती थी
हो नहीं पाया
लाश की जाति
और
हत्यारे की जाति
कितनी जरूरी है
जो आदमी है
वो अभी तक
नहीं समझ पाया
विज्ञान और
वैज्ञानिकों को
कोई क्यों नहीं
इतनी सी बात
समझा पाया
डी एन ए
एक आदमी
का निकाल कर
उसने कितना
बड़ा और बेकार
का लफ़ड़ा
है फैलाया
जाति का
डी एन ए
निकाल कर
लाने वाला
वैज्ञानिक
अभी तक
किसी भी
जाति का
लफ़ड़े को
सुलझाने
के लिये
आगे निकल
कर नहीं आया
‘उलूक’
कर कुछ नया
नोबेल तो
नहीं मिलेगा
देश भक्त
देश प्रेमी
लोग दे देंगे
जरूर
कुछ ना कुछ
हाथ में तेरे
बाद में मत
कहना
किसी से
इतनी सी
छोटी सी
बात को भी
नहीं बताया
समझाया ।

चित्र साभार: Clipart Kid

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

आदमी एकम आदमी हो और आदमी दूना भगवान हो

गीत हों
गजल हों
कविताएं हों
चाँद हो
तारे हों
संगीत हो
प्यार हो
मनुहार हो
इश्क हो
मुहब्बत हो
अच्छा है

अच्छी हो
ज्यादा
ना हो
एक हो
कोई
सूरत हो
खूबसूरत हो
फेस बुक
में हो
तस्वीर हो
बहुत ही
अच्छा है

दो हों
लिखे हों
शब्द हों
सौ हों
टिप्पणिंयां हों
कहीं कुछ
नहीं हो
उस पर
कुछ नहीं
होना हो
बहुत
अच्छा है

तर्क हों
कुतर्क हों
काले हों
सफेद हों
सबूत हों
गवाह हों
अच्छी सुबह
अच्छा दिन
और
अच्छी रात हो
अच्छा है

भीड़ हो
तालियाँ हो
नाम हो
ईनाम हो
फोटो हो
फूल हों
मालाऐं हों
अखबार हो
समाचार हो
और भी
अच्छा है

झूठ हों
बीज हों
बोने वाले हों
गिरोह हो
हवा हो
पेड़ हों
पर्यावरण हो
गीत हों
गाने वाली
भेड़ हों
हाँका हो
झबरीले
शेर हों
अच्छा है

फर्क नहीं
पड़ना हो
दिखना
कोई
और हो
दिखाना
कोई
और हो
करना
कहीं
और हो
भरना
कहीं
और हो
बोलने वाला
भगवान हो
चुप रहने
वाला
शैतान हो
सबसे
अच्छा है

‘उलूक’ हो
पहाड़ा हो
याद हो
आदमी
एकम
आदमी हो
और
आदमी
दूना
भगवान हो
बाकी
सारा
हो तो
राम हो
नहीं तो
हनुमान हो
कितना
अच्छा है।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/