उलूक टाइम्स: निशाने
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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2016

कैसे नहीं हुआ जा सकता है अर्जुन बिना धनुष तीर और निशाने के

जरूरी नहीं है
अर्जुन ही होना
ना ही जरूरी है
हाथ में धनुष
और
तीर का होना
 कोई जरूरी
नहीं है किसी
द्रोपदी के लिये
कहीं कोई स्व्यंवर
का होना
आगे बढ़ने के लिये
जरूरी है बस
मछली की आँख
का सोच में होना
खड़े खड़े रह गये
एक जगह पर
शेखचिल्ली की
समझ में समय
तब आता है जब
बगल से निकल
कर चला गया
कोई धीरे धीरे
अर्जुन हो गया है
का समाचार बन
कर अखबार में
छ्पा हुआ
नजर आना
शुरु हो जाता है
समझ में आता है
कुछ हो जाने
के लिये
आँखों को खुला
रख कर कुछ
नहीं देखा जाता है
कानों को खुला
रख कर
सुने सुनाये को
एक कान से
आने और दूसरे
कान से जाने
का रास्ता
दिया जाता है
कहने के लिये
अपना खुद का
कुछ अपने पास
नहीं रखा जाता है
इस का पकाया
उस को और
उस का पकाया
किसी को खिला
दिया जाता है
नीरो की तरह
बाँसुरी कोई
नहीं बजाता है
रोम को
खुद ही
अपने ही
किसी से
थोड़ा थोड़ा
रोज जलाये
जाने के तरीके
सिखला जाता है
एक दो तीन
दिन नहीं
महीने नहीं
साल हो जाते हैं
सुलगना
जारी रहता है
अर्जुन हो गये
होने का प्रमाण
पत्र लिये हुऐ
ऐसे ही कोई
दूसरी लंका के
सोने को उचेड़ने
की सोच लिये
राम बनने के लिये
अगली पारी की
तैयारी के साथ
सीटी बजाता हुआ
निकल जाता है
‘उलूक’
देखता रह
अपने
अगल बगल
कब मिलती है
खबर
दूसरा निकल
चुका है मछली
की आँख की
सोच लेकर
अर्जुन बनने
के लिये
अर्जुन के
पद चिन्हों
के पीछे
कुछ बनने
के लिये
फिर
एक बार
रोम को
सुलगता रहने
देने का
आदेश किस
अपने को
दे जाता है ।

चित्र साभार: Clipart Kid

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

हमेशा होता है जैसा उससे कुछ अनोखा नहीं होगा


तुम को लगता होगा
कभी तुम पर लिखा हुआ होगा यहाँ पर शायद कुछ

उसे लगता होगा 
हो सकता है उसके लिये ही कहा गया हो कुछ

पर समय पर लिखा गया कुछ भी
किसी पर भी नहीं लिखा होता है

जो हो रहा होता है उसे तो होना ही होता है

और तुम पर कुछ लिख लेने का साहस होने के लिये
अंदर से बहुत मजबूत होना होता है

चौराहे पर खड़े होकर खीजने वालों के लिये
चार रास्ते होते हुऐ भी  कहीं रास्ता नहीं होता है

हर तरफ से लोग आते हैं और चले जाते हैं
सभी को अपनी मंजिलों का पता होता है

जिसे भटकना होता है
उसके लिये एक ही रास्ता बहुत होता है

ना कहीं मंजिल होती है
ना ही कोई ठिकाना होता है

आना और जाना
उसे भी आता है बहुत अच्छी तरह

जाना किस के लिये और कहाँ होता है
बस यही और यही पता नहीं होता है

परसों गुजरा था इसी चौराहे से
आज फिर जाना होगा
आने वाले कल में भी
इसी रास्ते में कहीं ना कहीं ठिकाना होगा

सब दिखायेंगे
अपने अपने रास्ते
पर जिसे खोना होगा हमेशा की तरह
उसके आने जाने का रास्ता
इस बार भी
पिछली बार की तरह ही
उनहीं गिने चुने निशानेबाजों के निशाने होगा

ऐसे में मत सोच लेना गलती से भी
 कोई तुम पर या फिर उस पर लिख रहा होगा

कुछ ही दिन हैं बचे इंतजार कर 'उलूक'
हर चौराहे पर 
सारा सब कुछ बहुत साफ साफ लिखा होगा ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

सोमवार, 3 मार्च 2014

आदमी खेलता है आदमी आदमी आदमी के साथ मिलकर

हाड़ माँस और
लाल रक्त
आदमी का जैसा
ही होता है आदमी
कोशिश करता है
घेरने की एक
आदमी को ही
मिलकर एक
आदमी के साथ
आखेट करने वाले
के निशाने पर
होता है उस
समय भी
एक आदमी
बहुत सी मौतें
स्वाभाविक
होती हैं जिनमें
आदमी की
मृत्यू होती है
मरने वाला भी
आदमी होता है
मारने वाला भी
आदमी होता है
मर जाना यानि
मुक्त हो जाना
मोक्ष पा जाना
छुटकारा मिल जाना
आदमी को एक
आदमी से ही
इतना आसान
नहीं होता है
जितना कहने
सुनने और लिखने
में लगता है
आदमी का सबसे
प्रिय खेल भी
यही होता है
जंगल के शेर
के शिकार में
वो नशा कभी
नहीं होता है
जैसा आदमी के
शिकार में आदमी
के साथ मिलकर
एक आदमी ही
आदमी को घेरेते
चले जाता है
आदमी को भी
पता होता है
घेरेने वाला भी
अपना ही होता है
धागे भी बहुत
पक्के होते हैं
जाल कसता
चला जाता है
आदमी बस
कसमसाता है
पकड़ मजबूत
होते चली जाती है
आदमी के पंजे में
एक आदमी
आ जाता है
मरता कहीं भी
कोई नहीं है
पकड़ने वाला
मारना ही
नहीं चाहता है
फाँसी देने से
बेहतर उम्र कैद
को माना जाता है
क्या क्या नहीं
करता है आदमी
आदमी के साथ
बस बचा हुआ
कुछ है तो
आदमी की नींद
का एक सपना
जो उसका अपना
कहलाता है
आदमी का मकसद
होता है जिसे
अपनी मुट्ठी
में करना
बस यहीं पर
आदमी आदमी
से मात
खा जाता है
आदमी आदमी
के साथ मिलकर
आदमी को
कभी मोक्ष
नहीं दे पाता है ।