रजिस्टर में
जैसे करने हों
उपस्थिति
के हस्ताक्षर
और डालना हो
समय और दिँनाक भी
लिखने का
मतलब
बस इतना ही
नहीं होता है
हाँ
कभी कभी
अवकाश
सरकारी
भी होता है
सरकारी
ना सही
गैर सरकारी
भी होता है
बहुत से
कारण
भी होते हैं
बहुत से लोग
कभी भी कुछ भी
नहीं लिखते हैं
किसने कह दिया
लिखना बहुत ही
जरूरी होता है
दवाईयाँ भी होती हैं
मरीज भी होता है
मर्ज भी होता है
मौत भी होती है
जिंदा
दिखता भी है
और मरा हुआ
भी होता है
सोच में
रोक टोक
नहीं होती है
सोचने वाला ही
घोड़ा होता है
उसके
हाथ में ही
चाबुक होता है
लगाम भी वही
लगाता है
किसी और को
कुछ भी पता
नहीं होता है
किसी के
सोच का
यही सरपट
दौड़ने वाला घोड़ा
किसी के लिये
बस एक धोबी का
लद्दू गधा होता है
और
गधे को कैसे
पाला जाता है
उस पर
बहुत कुछ
बताने के लिये
उसके पास
बहुत कुछ होता है
ऐसे सभी
घुड़सवारों का
अपना एक
गिरोह होता है
जिनके पास
ना तो घोड़ा होता है
ना कोई गधा होता है
इन सब का काम
सोच के घोड़े
दौड़ाने वालों के
घोड़ों को
उनकी
सोच में ही
दौड़ा दौड़ा कर
बेदम कर
गिरा देना होता है
और इस
सब के लिये
उनके पास
सोच में
दौड़ते घोड़ों
को गिराने का
हथौड़ा होता है
‘उलूक’ तू जाने
तेरी सोच जाने
पता नहीं
किस डाक्टर ने
कह दिया
है तुझसे
कि
ऊल जलूल
भी हो सोच में
कुछ भी
तब भी
लिखना
जरूरी होता है ।
चित्र साभार: http://www.briskpost.com/
जैसे करने हों
उपस्थिति
के हस्ताक्षर
और डालना हो
समय और दिँनाक भी
लिखने का
मतलब
बस इतना ही
नहीं होता है
हाँ
कभी कभी
अवकाश
सरकारी
भी होता है
सरकारी
ना सही
गैर सरकारी
भी होता है
बहुत से
कारण
भी होते हैं
बहुत से लोग
कभी भी कुछ भी
नहीं लिखते हैं
किसने कह दिया
लिखना बहुत ही
जरूरी होता है
दवाईयाँ भी होती हैं
मरीज भी होता है
मर्ज भी होता है
मौत भी होती है
जिंदा
दिखता भी है
और मरा हुआ
भी होता है
सोच में
रोक टोक
नहीं होती है
सोचने वाला ही
घोड़ा होता है
उसके
हाथ में ही
चाबुक होता है
लगाम भी वही
लगाता है
किसी और को
कुछ भी पता
नहीं होता है
किसी के
सोच का
यही सरपट
दौड़ने वाला घोड़ा
किसी के लिये
बस एक धोबी का
लद्दू गधा होता है
और
गधे को कैसे
पाला जाता है
उस पर
बहुत कुछ
बताने के लिये
उसके पास
बहुत कुछ होता है
ऐसे सभी
घुड़सवारों का
अपना एक
गिरोह होता है
जिनके पास
ना तो घोड़ा होता है
ना कोई गधा होता है
इन सब का काम
सोच के घोड़े
दौड़ाने वालों के
घोड़ों को
उनकी
सोच में ही
दौड़ा दौड़ा कर
बेदम कर
गिरा देना होता है
और इस
सब के लिये
उनके पास
सोच में
दौड़ते घोड़ों
को गिराने का
हथौड़ा होता है
‘उलूक’ तू जाने
तेरी सोच जाने
पता नहीं
किस डाक्टर ने
कह दिया
है तुझसे
कि
ऊल जलूल
भी हो सोच में
कुछ भी
तब भी
लिखना
जरूरी होता है ।
चित्र साभार: http://www.briskpost.com/