अपनी ही बात अपने ही लिये
रोज ना भी सही
कभी तो खुल के कह ही लीजिये
कोई नहीं सुनता इस गली में कहीं
अपनी आवाज के सिवा
किसी और की आवाज
खुद के सुनने के लिये ही सही
कुछ तो कह दीजिये
कितना भी हो रहा हो शोर उसकी बात का
अपनी बात भी उसकी बातों के बीच
हौले हौले ही सही कुछ कुछ ही कहीं
कुछ तो कह दीजिये
जो भी आये कभी मन में चाहे अभी
निगलिये तो नहीं उगल ही दीजिये
तारे रहते नहीं कहीं भी जमीन पर
बनते बनते ही उनको
आकाश की ओर हो लेने दीजिये
मत ढूँढिये जनाब ख्वाब रोशनी के यहीं
जमीन की तरफ नीचे यहीं कहीं
देखना ही छोड़ दीजिये
आग भी है यहीं दिल भी है यहीं कहीं
दिलजले भी हैं यहीं
कोयलों को फिर से चाहे जला ही लीजिये
राख जली है नहीं दुबारा कहीं भी कभी
जले हुऐ सब कुछ को जला देख कर
ना ही कुरेदिये
उड़ने भी दीजिये
सब कुछ ना भी सही
कुछ कुछ तो कभी कह ही दीजिये
अपनी ही बात को
किसी और के लिये नहीं
अपने लिये ही सही
मान जाइये कभी कह भी दीजिये ।
चित्र साभार: galleryhip.com