उलूक टाइम्स: आकाश
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शनिवार, 1 अगस्त 2015

गिद्ध उड़ नहीं रहे हैं कहीं गिद्ध जमीन पर हो गये हैं कई

गिद्ध
कम हो गये हैं
दिखते ही नहीं
आजकल
आकाश में भी 
दूर उड़ते हुऐ
अपने डैने
फैलाये हुऐ

जंगल में पड़ी
जानवरों
की लाशें
सड़ रही हैं
सुना जा रहा है

गिद्धों
के बहुत
नजदीक
ही कहीं
आस पास में
होने का
अहसास
बढ़ रहा है

कुछ
नोचा जा रहा है

आभास हो रहा है

अब
किस को

क्या दिखाई दे
किस को
क्या
सुनाई दे

अपनी अपनी
आँखें

अपना अपना
देखना

अपने अपने
भय

अपना अपना
सोचना


किसी ने
कहा नहीं है

किसी ने
बताया नहीं है


कहीं हैं
और बहुत ही

पास में हैं
बहुत से गिद्ध


हाँ
थोड़ा सा साहस

किसी ने
जरूर बंधाया

और समझाया

बहुत लम्बे समय

तक नहीं रहेंगे
अगर हैं भी तो
चले जायेंगे
जब निपट
जायेंगी लाशें

इतना समझा

ही रहा था कोई
समझ में आ
भी रहा था
आशा भी कहीं
बंध रही थी

अचानक

कोई और बोला

गिद्धों
को देख कर

नये सीख रहे हैं
गिद्ध हो जाना

ये चले भी जायेंगे

कुछ दो चार सालों में
नये उग जायेंगे गिद्ध

नई लाशों को

नोचने के लिये

आकाश में कहीं

उड़ते हुऐ पक्षी
तब भी नजर
नहीं आयेंगे

लाशें तब भी
कहीं
नहीं दिखेंगी

सोच में दुर्गंध की

तस्वीरें आयेंगी
आज की तरह ही

वहम अहसास

आभास सब
वही रहेंगे

बस


गिद्ध तब भी

उड़ नहीं
रहे होंगे कहीं

किसी भी
आकाश में ।


चित्र साभार: www.pinstopin.com

शनिवार, 20 जून 2015

बता भी दे करेगा या नहीं अखबार में नहीं छापा जायेगा


सब करने वाले हैं
क्या तेरा भी करने का इरादा है

बहुत काम की चीज होती है
करने में फायदा ही फायदा है
नहीं करेगा नुकसान में रहेगा
पता चल गया उसे नहीं किया करके
किसी और बात में परेशान करेगा

कर क्यों नहीं लेता कर ले
सारा संसार ही करने वाला है

बाहर नहीं करने की इच्छा है कोई बात नहीं
कोई कोई तो आकाश में हवाई जहाज में तक करने वाला है
समुद्र में पानी के जहाजों में भी किया जायेगा
जमीन आसमान में तो होगा ही होगा
कोई घुस पाया जमीन के अंदर
तो पाताल में तक किया जायेगा

अभी ये करने की बात हो रही है
इसके बाद फिर वो करने के लिये भी कहा जायेगा

आज कर लेगा तभी प्रमाण पत्र भी दिया जायेगा
नहीं करेगा ‘उलूक’
पेड़ों की टहनियों पत्तियों में नाम लिख दिया जायेगा

अगली बार जब वो किया जायेगा
तब ये नहीं किया करके वो भी नहीं करने दिया जायेगा

अभी भी समय है सोच ले
सब कुछ तो करता ही है क्या नहीं करता है
इसे करने में कौन सा बदनाम हो जायेगा ।

चित्र साभार: mystiquesadvice.blogspot.com

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

किसी दिन ना सही किसी शाम को ही सही कुछ ऐसा भी कर दीजिये


अपनी ही बात अपने ही लिये 
रोज ना भी सही 
कभी तो खुल के कह ही लीजिये 

कोई नहीं सुनता इस गली में कहीं
अपनी आवाज के सिवा 
किसी और की आवाज 

खुद के सुनने के लिये ही सही 
कुछ तो कह दीजिये 

कितना भी हो रहा हो शोर उसकी बात का 
अपनी बात भी उसकी बातों के बीच 
हौले हौले ही सही कुछ कुछ ही कहीं 
कुछ तो कह दीजिये 

जो भी आये कभी मन में चाहे अभी 
निगलिये तो नहीं उगल ही दीजिये 

तारे रहते नहीं कहीं भी जमीन पर 
बनते बनते ही उनको 
आकाश की ओर हो लेने दीजिये 

मत ढूँढिये जनाब ख्वाब रोशनी के यहीं 
जमीन की तरफ नीचे यहीं कहीं 
देखना ही छोड़ दीजिये 

आग भी है यहीं दिल भी है यहीं कहीं 
दिलजले भी हैं यहीं 
कोयलों को फिर से चाहे जला ही लीजिये 

राख जली है नहीं दुबारा कहीं भी कभी 
जले हुऐ सब कुछ को जला देख कर 
ना ही कुरेदिये 

उड़ने भी दीजिये 
सब कुछ ना भी सही 
कुछ कुछ  तो कभी कह ही दीजिये 

अपनी ही बात को
किसी और के लिये नहीं 
अपने लिये ही सही 
मान जाइये कभी कह  भी दीजिये ।

चित्र साभार: galleryhip.com

शनिवार, 8 नवंबर 2014

होता ही है एक बच्चे की खींची हुई लकीरें कागज पर ढेर सारी एक दूसरे से उलझ ही जाती हैं

शायद किसी दिन
कुछ लिखने के 
काबिल हो जाऊँ 
और पा लूँ एक 
अदद पाठक भी 
ऐसा पाठक जो 
पढ़े मेरे लिखे हुऐ को 
बहुत ध्यान से 
और समझा भी दे 
मुझे ही भावार्थ 
मेरे लिखे हुऐ का 
लिखने की चाह 
होना काफी नहीं होता 
बहुत ज्यादा और 
कुछ भी लिख देना 
कागज भरना 
कलम घिस देना 
ऐसे में कई बार 
आँखों के सामने 
आ जाता है कभी 
एक बच्चा जो 
बहुत शौक से 
बहुत सारी लाईने 
बनाता चला जाता है 
कागज ही नहीं 
दीवार पर भी 
जमीन पर और 
हर उस जगह पर 
जहाँ जहाँ तक 
उसकी और उसकी 
कलम की नोक 
की पहुँच होती है 
उसके पास बस
कलम होती है
कलम पर बहुत
मजबूत पकड़ होती है
बस उसकी सोच में
शब्द ही नहीं होते हैं
जो उसने उस समय
तक सीखे ही
नहीं होते हैं
इसी तरह किसी
खुशमिजाज दिन की
उदास होने जा रही
शाम जब शब्द
ढूँढना शुरु होती है
और माँगती है
किसी आशा से
मुझ से कुछ
उसके लिये भी
कह देने के लिये
दो चार शब्द
जो समझा सकें
मेरे लिखे हुऐ में
उसको उसकी उदासी
और उस समय मैं
एक छोटा सा बच्चा
शुरु कर देता हूँ
आकाश में
लकीरें खीँचना
उस समय
महसूस होता है
काश मैं भी
एक लेखक होता
और उदास शाम
मेरी पाठक
क्या पता किसी दिन
कोई लकीर कुछ कह दे
किसी से कुछ इतना
जिसे बताया जा सके
कि कुछ लिखा है ।

चित्र साभार: www.lifespirals.com.au

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

पल्टी मार लेना कभी भी बहुत आसान होता है

इस जहाँ में
मौसम का असर
किसी भी मुद्दे पर
दिखाई देता है
किसी के बारे में
एक राय कायम
कर लेना वाकई
एक बहुत ही
टेढ़ी खीर होता है
अपने आस पास
हर शख्स के बारे में
ज्यादातर सबको ही
सब कुछ पता होता है
आदमी ही आदमी को
समझने की कोशिश में
एक नहीं कई भूल
कर ही देता है
गलतफहमियां भी
होती ही है
किसी ना किसी को
कभी ना कभी
कौन इस बात को
बहुत ज्यादा
तूल देता है
बहुत उठा पटक
करते हैं लोग बाग
यूं भी फितरत
में किसी ने
क्या पाया है
कई बार ये भी
पता नहीं होता है
जो भी होता है
जैसा भी होता है
इन सब के बावजूद
कहीं ना कहीं कोई
कुछ अजीब सा
भी तो होता है
बदलता नहीं है
कुछ भी कभी भी
एक साफ सीधी
लकीर सा होता है
किसी भी परिस्थिति
और देशकाल का
उसपर कुछ भी
असर नहीं होता है
समय के कठिन से
कठिन प्रश्नो का
जिसके पास एक
बहुत सरल सा
उत्तर होता है
कभी तो बदलेगा
किसी बात को
लेकर ऐसा आदमी
सोचने वाला सोचता है
बस नहीं कहता है
कुछ ऐसा गजब
का होता है जो भी
उसकी सोच का भी
अजब का एक
नजरिया होता है
सच में होता है
सोचने का दायरा
किसी किसी का
जिसके लिये एक
आकाश भी छोटा
और बहुत छोटा
सा होता है
हर किसी का
तो जरूरी नहीं
पर होता है
कोई खुशकिस्मत
भी कहीं ना कहीं
जो जरूर होता है
जिसके आस पास
उसका कोई एक
साथी कुछ कुछ
ऐसा जरूर होता है
राजनीति के किसी
काम का बिल्कुल
भी नहीं होता है
बस यही और यही
तो एक आम
आदमी होता है | 

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

कौन जानता है किस समय गिनती करना बबाल हो जाये

गिनती करना
जरूरी नहीं हैं
सबको ही आ जाये
कबूतर और कौऐ
गिनने को अगर
किसी से कह
ही दिया जाये
कौन सा बड़ा
गुनाह हो गया
अगर एक कौआ
कबूतर हो जाये
या एक कबूतर की
गिनती कौओं
मे हो जाये
कितने ही कबूतर
कितने ही कौऔं को
रोज ही जो देखता
रहता हो आकाश में
इधर से उधर उड़ते हुऐ
उससे कितने आये
कितने गये पूछना ही
एक गुनाह हो जाये
सबको सब कुछ
आना भी तो
जरूरी नहीं
गणित पढ़ने
पढ़ाने वाला भी
हो सकता है कभी
गिनती करना
भूल जाये
अब कोई
किसी और ज्ञान
का ज्ञानी हो
उससे गिनती
करने को कहा
ही क्यों जाये
बस सिर्फ एक बात
समझ में इस सब
में नहीं आ पाये
वेतन की तारीख
और
वेतन के नोटों की
संख्या में गलती
अंधा भी हो चाहे
भूल कर भी
ना कर पाये
ज्ञानी छोड़िये
अनपढ़ तक
का सारा
हिसाब किताब
साफ साफ
नासमझ के
समझ में
भी आ जाये !