उलूक टाइम्स: अपनी
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बुधवार, 5 अगस्त 2015

अपनी धुन में रहता हूँ मैं भी तेरे जैसा हूँ

कई
बार सुनी
हर बार
समझने की
कोशिश की
उसकी धुन को

मगर समझ
अभी तक
नहीं पाया

अब
अपनी धुन में
रहना है तो
रहे कोई

गला
पीट पीट कर
क्या बताना
रहता हूँ रहता हूँ

सभी तो
अपनी ही
धुन में रहते हैं

अपनी धुन में
रहता है तो रह

पता कहाँ चलता है
किसी को कि कौन
किसकी धुन में रहता है

अपनी धुन में रह
इसकी धुन में रह
उसकी धुन में रह
यहाँ तक फिर
भी ठीक है

इसके बाद कहना
मैं भी तेरे जैसा हूँ

अब ऐसा कैसे भाई
धुन में अपनी रहेगा
हूँ तेरा जैसा कहेगा

अपने आस पास भी
देख लिया कर कभी

देखेगा तभी
समझ पायेगा

धुन से धुन
को मिलाता हुआ
एक के साथ दूसरा
दूसरे के साथ तीसरा
भी मिल जायेगा

समय के हिसाब से
जगह के हिसाब से
काम के हिसाब से
माल के हिसाब से
हिसाब के हिसाब से

धुन का धुन के
जैसा हो जाना
समझना समझाना
आसान हो जायेगा

तब कहेगा अगर
अपनी धुन
में रहता हूँ
मैं भी तेरे जैसा हूँ

तेरे समझ में
भी आयेगा
और
कहने के
साथ साथ
धुन में रहना
दूसरे को भी
समझा पायेगा ।

चित्र साभार: pixgood.com

शनिवार, 6 जून 2015

अपनी दिखती नहीं सामने वाले की छू रहे होते हैं


एक नहीं कई कई होते हैं
अपने ही खुद के चारोंओर होते हैं

सीधे खड़े भी होते हैं
टेढ़े मेढ़े भी नहीं होते हैं

गिरते हुऐ भी नहीं दिखते हैं
उठते हुऐ भी नहीं दिखते हैं

संतुलन के उदाहरण
कहीं 
भी उनसे बेहतर नहीं होते हैं

ना कुछ सुन रहे होते हैं
ना कुछ देख रहे होते हैं
ना कुछ कह रहे होते हैं

होते भी हैं या नहीं भी
होते हैं जैसे भी हो रहे होते हैं

रोने वाले कहीं रो रहे होते हैं
हँसने वाले कहीं दूसरी ओर खो रहे होते हैं

अजब माहौल की गजब कहानी
सुनने सुनाने वाले अपनी अपनी कहानियों को
अपने अपने कंधों में खुद ही ढो रहे होते हैं

‘उलूक’ 
समझ में क्यों नहीं घुस पाती है
एक 
छोटी सी बात
कभी भी तेरे खाली दिमाग में

एक लम्बी रीढ़ की हड्डी पीठ के पीछे से 
लटकाने के बावजूद
तेरे जैसे एक नहीं
बहुत सारे आस पास के ही तेरे
बिना रीढ़ के हो रहे होते हैं ।

चित्र साभार: www.123rf.com

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

किसी दिन ना सही किसी शाम को ही सही कुछ ऐसा भी कर दीजिये


अपनी ही बात अपने ही लिये 
रोज ना भी सही 
कभी तो खुल के कह ही लीजिये 

कोई नहीं सुनता इस गली में कहीं
अपनी आवाज के सिवा 
किसी और की आवाज 

खुद के सुनने के लिये ही सही 
कुछ तो कह दीजिये 

कितना भी हो रहा हो शोर उसकी बात का 
अपनी बात भी उसकी बातों के बीच 
हौले हौले ही सही कुछ कुछ ही कहीं 
कुछ तो कह दीजिये 

जो भी आये कभी मन में चाहे अभी 
निगलिये तो नहीं उगल ही दीजिये 

तारे रहते नहीं कहीं भी जमीन पर 
बनते बनते ही उनको 
आकाश की ओर हो लेने दीजिये 

मत ढूँढिये जनाब ख्वाब रोशनी के यहीं 
जमीन की तरफ नीचे यहीं कहीं 
देखना ही छोड़ दीजिये 

आग भी है यहीं दिल भी है यहीं कहीं 
दिलजले भी हैं यहीं 
कोयलों को फिर से चाहे जला ही लीजिये 

राख जली है नहीं दुबारा कहीं भी कभी 
जले हुऐ सब कुछ को जला देख कर 
ना ही कुरेदिये 

उड़ने भी दीजिये 
सब कुछ ना भी सही 
कुछ कुछ  तो कभी कह ही दीजिये 

अपनी ही बात को
किसी और के लिये नहीं 
अपने लिये ही सही 
मान जाइये कभी कह  भी दीजिये ।

चित्र साभार: galleryhip.com

रविवार, 5 अक्टूबर 2014

अभी अपनी अपनी बातें है बहुत हैं तेरी मेरी बातें कभी मिल आ वो भी करते हैं

कभी
मिलेगी फुरसत
इन सब बातों से
तो तेरी कुछ बात भी
लिख के कहीं रख लूंंगा

अभी तो
समेटने में
लगा हूँ
अपने आस पास
के फैल चुके रेगिस्तानी
कांंटो की फसल को

जो
जाने अन्जाने में
खु
द ही बोता
चला जा रहा हूँ

देख कर उगे हुऐ
बहुत ही खूबसूरत
फूल कैक्टस के
बहुत से रेगिस्तानों में
बिना पानी और
मिट्टी के भी

कई कई तो उगते हैं
कई कई सालों में
बस एक बार ही
और हमेशा इंतजार
रहता है उनके
किसी सुबह मुँह अंधेरे
खिल उठने का

चुभने वाली चीजें
वैसे तो वास्तु
के अनुसार
घर के सामने से
नहीं रखी जाती हैं

लेकिन
बैचेनियाँ
कोई बेचे
या ना बेचे
अपने लिये
अपने आप ही
खरीदी जाती हैं

धुंंऐ और
कोहरे में
वैसे भी
दूर से कोई
फर्क नजर
नहीं आता है

एक कहीं कुछ
जलने से बनता है
और दूसरा कहीं
कुछ बुझाने के बाद ही
राख के ऊपर से मडराता है

अब
कैसे कहे कोई
कि इतना कुछ है
उलझा हुआ
आस पास
एक दूसरे से

सुलझाने की
कौन सोचे
बस लिख कर
रख देने से ही
काम चल जाता है

तुझ पर है
और
बहुत कुछ है
लिखने के लिये

लिखूंंगा भी
किसी दिन

अभी तो
अपने बही खाते
के हिसाब किताब
को ही कुछ
लिख लिखा
कर रख लूँ कहीं
किसी पन्ने पर

तब तक
तेरे पास भी
बहुत मौके हैं
अपने हिसाब किताब
निबटाने के लिये

मिलते हैं
किसी दिन
कभी बैठ कर
अपने अपने
बही खातों
के साथ

कुछ
सवालों के हल
हर किताब में
एक जैसे ही
मिला करते हैं ।

चित्र साभार: http://www.clipartillustration.com