उलूक टाइम्स

शनिवार, 6 जून 2015

अपनी दिखती नहीं सामने वाले की छू रहे होते हैं


एक नहीं कई कई होते हैं
अपने ही खुद के चारोंओर होते हैं

सीधे खड़े भी होते हैं
टेढ़े मेढ़े भी नहीं होते हैं

गिरते हुऐ भी नहीं दिखते हैं
उठते हुऐ भी नहीं दिखते हैं

संतुलन के उदाहरण
कहीं 
भी उनसे बेहतर नहीं होते हैं

ना कुछ सुन रहे होते हैं
ना कुछ देख रहे होते हैं
ना कुछ कह रहे होते हैं

होते भी हैं या नहीं भी
होते हैं जैसे भी हो रहे होते हैं

रोने वाले कहीं रो रहे होते हैं
हँसने वाले कहीं दूसरी ओर खो रहे होते हैं

अजब माहौल की गजब कहानी
सुनने सुनाने वाले अपनी अपनी कहानियों को
अपने अपने कंधों में खुद ही ढो रहे होते हैं

‘उलूक’ 
समझ में क्यों नहीं घुस पाती है
एक 
छोटी सी बात
कभी भी तेरे खाली दिमाग में

एक लम्बी रीढ़ की हड्डी पीठ के पीछे से 
लटकाने के बावजूद
तेरे जैसे एक नहीं
बहुत सारे आस पास के ही तेरे
बिना रीढ़ के हो रहे होते हैं ।

चित्र साभार: www.123rf.com