उलूक टाइम्स

शनिवार, 8 अगस्त 2015

हर कोई मरता है एक दिन मातम हो ये जरूरी नहीं होता है

हर बाजार में
हर चीज बिके
ये जरूरी भी
नहीं होता है
रोज बेचता है कुछ
रोज खरीदता है कुछ
उसके बाद भी कैसे
किसी को अंदाजा
नहीं होता है
किसी की मौत
कहाँ बिकेगी
कौन कब और
कहाँ पैदा होता है
कहीं सुंदर सी
आँखों की गहराई
ही बिकती है
कहीं खाली आवाज
गुंजाता हुआ
खंडहर हो चुके
एक कुऐं में भी
प्राइस टैग बहुत
उँचे दामों का
लगा होता है
कहीं बहुत भीड़
नजर आती है
और सामने से
बहुत कुछ उधड़ा
हुआ सा होता
ये जरूरी नहीं है
जिंदगी का फलसफा
हर किसी के लिये
हमेशा एक सा होता है
किसी को खून देखकर
गश आना शुरु होता है
किस को अगर नशा
होता है तो बस गिरे हुऐ
खून के लाल रंग को
देखने से ही होता है
बहुत मरते हैं रोज
कहीं ना कहीं दुनियाँ
के किसी कोने में
हर किसी के मरने
का मातम जरूरी नहीं है
हर किसी के यहाँ होता है ।

चित्र साभार: www.examiner.com