राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी
दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है
बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है
घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं
कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं
फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं
बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं
आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं
दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया
अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है
बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है
जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में
जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है
दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी
दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है
बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है
घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं
कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं
फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं
बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं
आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं
दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया
अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है
बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है
जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में
जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है
दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।