उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

हे राम !

राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी

दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है

बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है

घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं

कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं

फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं

बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं

आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं

दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया

अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है

बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है

जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में

जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है

दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।

बात

सुबह से
शुरू होती
है बात

रात सोने
तक चलती
है बात

घर से
निकलते
बाजार
में चलते
आफिस
पहुंचने
तक होती
है बात

और
यहां हैं
भी तो
बात
ही बात

सबकी
अपनी बात
एक
अनोखी बात

मेरी तू
सुन बात
तेरी मैं
सुनुंगा बात

मेरे पड़ौस
में भी
आज हुवी
एक बात

बाजार में
भी सुनी
मैंने एक
रसीली बात

कालेज में
भी थी
कुछ
चटपटी बात

हाय ये
कैसी
अनोखी
अजीब सी
है बात

इन सब
बात में
एक भी
ऎसी
नहीं बात

मैं कैसे
किस
मुंह से
बताउं वो
सब बात

यहां कोई
ऎसी वैसी
नहीं करता
कभी बात

सब बनाते
हैं अपनी
अपनी
एक बात

लिखते चले
जाते हैं
आसानी से
वो बात

कोई नहीं
बताना
चाहता
सही
सही बात

ये भी क्या
हुवी बात

कह डाली
एक बात
उस बात
पर भी
सिब्बल की
करो बात
मना कर
रहा है वो

क्यों कर
रहे हो बात।

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

हैप्पी बर्थ डे अविनाश जी

ब्लागों के बाघ
शहनशाहे ब्लाग
जन्मदिन मना
रहे होंगे आज
पांच हजारवी
शुभकामना मेरी
भी कुबूल कर
लीजिये ना जनाब
केक बन कर
अब तक आ
जाना चाहिये
मोमबत्तियां ज्यादा
हो जायेंगी अब
आपको बस
एक लैम्प
जलाना चाहिये
ईश्वर करे आप
खूब लिखें
इतना लिखें
की पढ़ते पढ़ते
लोग बहक
जायें और
जब चटके
लगायें तो सब
मुस्कुरायें फिर
खिलखिलायें और
बाद उसके
लोट पोट
हो जायें ।

लोकतंत्र के घरों से

एक बड़े से
देश के
छोटे छोटे
लोकतंत्रों
में आंख बंद
और
मुह बंद
करना सीख
वरना भुगत
अरे हम अगर
कुछ खा रहे हैं
तो देश का
लोकतंत्र भी
तो बचा रहे हैं
देख नहीं रहा है
कितनी बड़ी
बीमारी है
एक बड़े
लोकतंत्र
के सफाई
अभियान
की बड़ी सी
तैयारी है
सारी आँखे
लगी हुवी है
भोर ही से
बाबाओं की ओर
बता अगर हम
ही नहीं जाते
जलूस में टोपियां
नहीं दिखाते
तो तुम्हारे
बाबा जी क्या
कुछ कर पाते
सीख कुछ
तो सीख
घर की बात
घर में रख
बाहर जा
अपने को परख
अरे बेवकूफ
खा भी ले
थोड़ी सी घूस
कुछ नहीं जायेगा
थोड़ा जमा करना
थोडा़ बाबा को देना
छोटा पाप कटा लेना
बड़े पुण्य से
एक बड़े लोकतंत्र
को बचा
छोटा लोकतंत्र
अगर डूब भी
जायेगा तेरा
क्या जायेगा
सोच बड़ा अगर
भूल से गया डूब
छोटा क्या कहीं
रह पायेगा
और
तू कल किसको
फिर मुंह दिखायेगा ?

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

इच्छा

कोई हमको
कभी क्यूं
नहीं बनाता
अपना दलाल
कब से कोशिश
कर रहे हैं
लग गये हैं
कई साल
क्या क्या
होना चाहिये
शक्ल में
कोई नहीं बताता
जिसको देखो
लाईन तोड़
हमसे आघे
निकल जाता
अटल जी के
लोगों ने
कभी नहीं दिया
हमें भाव
आदर्श दिखना
बोलना
शायद है
वहां का दांव
सोनिया के लोग
भी कन्नी
काट निकल
जाते हैं
अन्ना के जलूस
में नहीं
गये फिर भी
नहीं बुलाते हैं
हाथी मैडम के
पास जाने
के लिये
पैसे चाहिये
कालेज में
छोटे घोटाले
से इतना
कैसे बनाइये
हमारे दर्द
को जरा
अपना दर्द
कभी बनाइये
दलाली के
गुर हमें
भी कभी
सिखलाईये
बहुत इच्छा
है एक
नामी दलाल
बनने की
सफेद कुर्ता
पायजामा
सफेद टोपी
पहनने की ।