उलूक टाइम्स

रविवार, 8 जनवरी 2012

ठंड और विचार

ठंड से
जम 
गये
विचार आज

मौन हो गये

आकाश
में बादल

सामने
पहाडियों

पर बर्फबारी

कम तापमान

रजाई के अंदर
दिन भर
उछल कूद


फिर भी
गरमी की

हो रही है आज
विचारों को जरुरत

बेचारे
विचार भी

जानते हैं
कुछ 
अचार
की तरह

सब लोग छांट
लेते हैं उन्हें
अपनी सुविधा
अनुसार हमेशा

ज्यादातर होता

आया है यहां
बना के पेश
कर दी जाये
व्यंग रूपी
अगर खीर

लोग उसका

भी रूपांतरण
कर फेंकते हैं
तीखा तीर

ठंड में

रहने दिये
जाये विचार
कुछ देर

अचार भी

बनता है पक्का

कुछ 
समय छोड़
दिया जाये
अगर यूं ही
मर्तबान में ।

शनिवार, 7 जनवरी 2012

जुल्म

दैनिक
हिन्दुस्तान 
भी

देखिये
कैसा
जुल्म
ढा रहा है


ना
पचने वाली

एक खबर
आज

सुना रहा है

गढ़वाल में

प्रोफेसर लोगों
की नेतागिरी
पर संकट
मंडरा रहा है

हाय हाय
मेरे 
तो
सीने में

जोर का दर्द
उठा जा रहा है

कुलपति जी

वहाँ के ऎसा
कैसे कर पा
रहे होंगे

या खाली में

हमारे लिये
एक खबर
बना रहे होंगे

भगवान करे

मेरे कुलपति
के कान में
ये खबर ना
जा पाये

वर्ना

कहीं

उनको भी
वैसा 
ही
बुखार
ना 
चढ़ जाये

प्रोफेसरी
से
क्या
हो पाता है


नेतागिरी
से ही 
तो देश
पढ़ 
पाता है

स्कूल
में पढ़ायेंगे

तो खाली बच्चे
पास हो जायेंगे

नेताओं को
पढ़ा 
लिये
अगर

तो 
सात पीढि़यों
का भला
कर
ले जायेंगे

नेताओं को
वैसे 
भी
पढ़ाने की

जरूरत है

स्कूल में

पढा़ भी दिया
तो कौन सा
कद्दू में तीर
मार जायेंगे।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

बिल्ली युद्ध

आइये शुरू
किया जाये
एक खेल

वही पुराना

बिल्लियों को
एक दूसरे से
आपस मे
लड़वाना

जरूरी नहीं

की बिल्ली
मजबूत हो

बस एक अदद

बिल्ली का होना
है बेहद जरूरी

चूहे कुत्ते सियार

भी रहें तैयार

कूद पड़ें

मैदान में
अगर होने
लगे कहीं
मारा मार

शर्त है

बिल्ली बिल्ली
को छू नहीं
पायेगी

गुस्सा दिखा

सकती है
केवल मूंछ
हिलायेगी

मूंछ का

हिलना बता
पायेगा बिल्ली
की सेना को
रास्ता

सारी लड़ाई

बस दिखाई
जायेगी

अखबार टी वी

में भी आयेगी

कोई बिल्ली

कहीं भी नहीं
मारी जायेगी

सियार कुत्ते

चूहे सिर्फ
हल्ला मचायेंगे

बिल्ली के लिये

झंडा हिलायेंगे

जो बिल्ली

अंत में
जीत पायेगी

वो कुछ

सालों के लिये
फ्रीज कर दी
जायेगी

उसमें फिर

अगर कुछ
ताकत बची
पायी जायेगी

तो फिर से

मरने मरने
तक कुछ
कुछ साल में
आजमाई जायेगी

जो हार जायेगी

उसे भी चिंता
करने की
जरूरत नहीं

उसके लिये

दूध में अलग
से मलाई
लगाई जायेगी।

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

चिढ़

लगती है चिढ़

हो जाती है चिढ़

हंसी में भी
साफ साफ नजर
आती जाती
दिख जाती है चिढ़

बहुत सारे गुल
खिलाती है चिढ़

कोई क्या करे
लग रही है
समझ में भी
आती है चिढ़

बहुत लगती है
खुद को भी
चिढ़ाती है

बहुत चिढ़ाती
है चिढ़

फेवीकौल
नहीं होती है
फिर भी चिपक
जाती है चिढ़

कई कई बार
लग जाती है चिढ़

बहुत जोर की
लगती है
बता कर नहीं
आती है चिढ़

घरवालों से
हो जाती है चिढ़
घरवाली भी
दिखलाती है चिढ़
रिश्तेदारों से
हो जाती है चिढ़

पड़ोसी को
पड़ोसन से
करवाती है चिढ़

दोस्तों के बीच में भी
घुस आती है चिढ़

नौकरी में
सतरंगी रंग
दिखाती है चिढ़

कहाँ नहीं जाती है चिढ़

यहां तक की
फोटो में भी
आ जाती है चिढ़

पेंट का रंग
बन जाती है चिढ़
जीन्स की लम्बाई
कराती है चिढ़
साड़ी की कीमत
सुनाती है चिढ़

किस किस से
नहीं हो जाती है चिढ़

कई तरीकों से
घुस जाती है चिढ़

हर एक की
एक अलग
हो जाती है चिढ़

सबको ही
कभी तो
लग ही
जाती है चिढ़

कब कैसे किस को
कहाँ लग जाती चिढ़

छोटी सी बात पर
उठ जाती है चिढ़

पहले से नहीं
रहती है कहीं
बता कर भी
नहीं आती जाती है चिढ़

क्या आप को
अपना कुछ पता
बताती है चिढ़

चिढ़ थी चिढ़ है
और रहेगी भी चिढ़

समझते समझते
आग में डाले
घीं की तरह से
और भी भड़क
जाती है चिढ़ ।

बुधवार, 4 जनवरी 2012

दिल बहलाने

मधुमक्खी हर रोज
की तरह है भिनभिनाती
फूलों पर है मडराती
एक रास्ता है बनाती
बता के है रोज जाती
मौसम बहुत है सुहाना
इसी तरह उसको है गाना
भंवरा भी है आता
थोड़ा है डराता
उस डर में भी तो
आनन्द ही है आता
चिड़िया भी कुछ
नया नहीं करती
दाना चोंच में है भरती
खाती बहुत है कम
बच्चों को है खिलाती
रोज यही करने ही
वो सुबह से शाम
आंगन में चली है आती
सबको पता है रहता
इन सब के दिल में
पल पल में जो है बहता
हजारों रोज है यहाँ आते
कुछ बातें हैं बनाते
कुछ बनी बनाई
है चिपकाते
सफेद कागज पर
बना के कुछ
आड़ी तिरछी रेखाऎं
अपने अपने दिल
के मौसम का
हाल हैं दिखाते
किसी को किसी
के अन्दर का फिर भी
पता नहीं है चलता
मधुमक्खी भंवरे
चिड़िया की तरह
कोई नहीं यहां
है निकलता
रोज हर रोज है
मौसम बदलता
कब दिखें बादल और
सूखा पड़ जाये
कब चले बयार
और तूफाँ आ जाये
किसी को भी कोई
आभास नहीं होता
चले आते हैं फिर भी
मौसम का पता
कुछ यूँ ही लगाने
अपना अपना दिल
कुछ यूँ ही बहलाने ।