अब होली
तो होली ठैरी
सालों साल
से होरी ठैरी
होली पर
ध्यान लगाओ
ठैरा क्या ठैरा
ठैरी क्या ठैरी
से दिमाग हटाओ
हर साल आने
वाली ठैरी
हर बार
चली जाने
वाली ठैरी
रंग उड़ाने
रंग मिलाने
वाली ठैरी
कबूतर कौए
हो जाने
वाले ठैरे
रंग मिलाओ
मिलाकर
इंद्रधनुष बनाओ
ये क्या ठैरा
सब हरा पीला
लाल गुलाबी
काला कर जाओ
ठंड रखो
ठंडाई चढ़ाओ
चढ़ी गरमी
उतार भगाओ
जो हो गया
सो हो गया
आकाश से उतरो
जमीन पर आओ
होली खेलो
गोजे खाओ
रंग लगवाओ
रंग लगाओ
होली ठैरी
शुभ ही होने
वाली ठैरी
शुभकामनाएं
ले जाओ
मंगल होये
शहर होये
जंगल होये
मंगलकामनायें
कुछ दे ही जाओ
जैसी भी ठैरी
होने वाली ठैरी
होने दो रंग
बहने दो
रहने दो
कपड़ों की चिंता
धोबी तो
धोबी ही ठैरा
गधा कभी
इस धोबी का
गधा कभी
उस धोबी का ठैरा
ये सब तो
होने वाला ठैरा
गधा कपड़े
बस ले जाने
वाला ठैरा
गधे का मत
हिसाब लगाओ
धोबी देखो
कपड़े देखो
रंग चढ़ा
उतरवाना ठैरा
गधों से
अब तो
ध्यान हटाओ
होली तो
होली ठैरी
होली होने
वाली ठैरी
रंग चढ़ाओ
भंग चढ़ाओ
ठैरा तो
ठैरा ठैरा
ठैरा ठैरी
पीछे छोड़ो
कहाँ बटा
कहाँ बट रहा
जर्रे में कुछ
पकड़ा ठैरा
जर्रे जर्रे में
बटा ठैरा
उत्सव के
माहौल में
बीती ताही
बिसार दे
कहना ठैरा
बस उस ठर्रे
की कुछ
खबर सुनाओ
बाकि सब
क्या कहना ठैरा
नमन करो
शीश नवाओ
ठैरा ठैरी की
होली ठैरी
आने जाने
वाली ठैरी
मौज मनाओ
ही कहना ठैरा।
चित्र साभार: India Today
सीधी बोतल
उल्टी कर
खाली करना
फिर खाली
बोतल में
फूँक मार कर
कुछ भरना
रोज की
आदत हो
गयी है
देखो तो
खाली बोतलें
ही बोतलें
चारों ओर
हो गयी हैं
कुछ बोतलें
सीधी पड़ी
हुई हैं
कुछ उल्टी
सीधी हो
गयी हैं
बहुत कुछ
उल्टा सीधा
हुआ जा
रहा है
बहुत कुछ
सीधा उल्टा
किया जा
रहा है
पूछना
मना है
इस लिये
पूछा ही नहीं
जा रहा है
जो कुछ भी
हो रहा है
स्वत: हो
रहा है
होता चला
जा रहा है
जरूरत ही
नहीं है
किसी को
कुछ
पूछने की
कोई पूछने भी
नहीं आ रहा है
वो उसके लिये
लगा है उधर
गाने बजाने में
इसको इसके
लिये इधर
खुजलाने में
मजा आ रहा है
गधों की दौड़
हो गयी है
सुनाई दे रही है
खबर बहुत
दिनों से
हवा हवा
में है
और
होली भी
आ रही है
गधों में सबसे
अच्छा गधा भी
जल्दी ही
गधों के लिये
भेजा जा रहा है
‘उलूक’
तूने पेड़
पर ही
रहना है
रात गये ही
सुबह की
बात को
कहना है
तुझे
किस बात
का मजा
आ रहा है
खेलता रह
खाली
बोतलों से
गधे
का आना
फिर गधे
का जाना
कृष्ण जी
तक बता
गये हैं
गीता में
गधों के
बीच में
चल रही
उनकी
अपनी
बातें हैं
बोतलों में
फूँकने वाला
क्या फूँक
रहा है
जल्दी ही
होली
से पहले
सबके
सामने से
आ रहा है
किसलिये
छटपटा
रहा है ?
चित्र साभार: Dreamstime.com
चल
बटोरें रंग
बिखरे हुऐ
इधर उधर
यहाँ वहाँ
छोड़ कर
आ रहा है
आदमी
आज
ना जाने सब
कहाँ कहाँ
सुना है
फिर से
आ गयी है
होली
बदलना
शुरु हो गया
है मौसम
चल
करें कोशिश
बदलने
की व्यवहार
को अपने
ओढ़
कर हंसी
चेहरे पर
दिखाकर
झूठी ही सही
थोड़ी सी खुशी
मिलने की
मिलाने की
सुना है
फिर से
आ गयी
है होली
चल
दिखायें रास्ते
शब्दों को
भटके हुऐ
बदलें
मतलब
वक्तव्य के
दिये हुए
अपनों के
परायों के
करें काबू
जबानें
लोगों की
सभी
जो आते हैं नजर
इधर और उधर
सटके हुऐ
सुना है
फिर से
आ गयी
है होली
चल
चढ़ाये भंग
उड़ायें रंग
जगायें ख्वाब
सिमटे हुऐ
सोते हुऐ
यहाँ से
वहाँ तक के
सभी के
जितने
भी दिखें
समय के
साथ लटके हुऐ
सुना है
फिर से
आ गयी
है होली
चल
करें दंगा
करें पंगा
लेकिन
निकल बाहर
हम्माम से
कुछ ही
दिन सही
सभी नंगों के
साथ हो नंगा
सुना है
फिर से
आ गयी
है होली
चल
उतारें रंग
चेहरे के
मुखौटों के
दिखायें
रंग
अपने ही
खुद के होठों के
कहें
उसकी नहीं
बस अपनी ही
कहें
अपनों से
कहें
किसलिये
लुढ़कना
हर समय
है जरूरी
साथ लोटों के
सुना है
फिर से
आ गयी
है होली
सुना है
फिर से
आ गयी
है होली ।
चित्र साभार: Happy Holi 2017
बड़े दिनों के
बाद आज
अचानक फिर
याद आ पड़े
सियार
कि बहुत
अच्छे
उदाहरण
के रूप में
प्रयोग किये
जा सकते हैं
समझाने
के लिये
बेतार के तार
रात के
किसी भी प्रहर
शहर के शहर
हर जगह मिलते
हैं मिलाते हुऐ
सुर में सुर
एक दूसरे के
जैसे हों बहुत
हिले मिले हुऐ
एक दूसरे में
यारों के हो यार
और
आदमी इस
सब की रख
रहा है खबर
हो रहा है
याँत्रिक
यंत्रों के जखीरे
से दबा हुआ
ढूँढता
फिर रहा है
बिना बताये
सब कुछ छुपाये
तारों में
बिजली के
संकेतों में
दौड़ता हुआ
अपने खुद के
लिये प्रेम प्यार
और मनुहार
सियार दिख
नहीं रहे हैं
कई दिन
हो गये हैं
सुनाई नहीं
दे रही हैं आवाजें
नजर नहीं
आ रहे हैं
कहीं भी
सुर में सुर
मिलाते हुऐ
सियारों के सियार
सारे लंगोटिया यार
जरूरत
नहीं है
जरा सा भी
मायूस होने
की सरकार
बन्द कर
रहे हैं लोग
दिमाग
अपने अपने
दिख रहा है
भेजते हुऐ संदेश
बैठा कोई
बहुत दूर
कहीं उस पार
खड़ी हो रही
हैं गर्दने
पंक्तिबद्ध
होकर
उठाये मुँह
आकाश की ओर
मिलाते हुऐ
आवाज से आवाज
याद आ रहा
है एक शहर
भरे हुऐ हर तरफ
सियार ही सियार
जुड़े हुऐ सियार से
और
बेतार का एक तार
बहुत लम्बा मजबूत
जैसे गा रहे हों
हर तरफ
हूँकते हुऐ सियारों
के साथ
मिल कर सियार।
चित्र साभार: http://www.poptechjam.com
कब किस को
देख कर क्या
और
कैसी पल्टी
खाना शुरु कर दे
दिमाग के अन्दर
भरा हुआ भूसा
भरे दिमाग वालों
से पूछने की हिम्मत
ही नहीं पड़ी कभी
बस
इसलिये पूछना
चाह कर भी
नहीं पूछा
उलझता रहा
उलटते पलटते
आक्टोपस से
यूँ ही खयालों में
बेखयाली से
यहाँ से वहाँ
इधर से उधर
कहीं भी
किधर भी
घुसे हुऐ को
देखकर
फिर कुछ भी
कहने लिखने
के लिये नहीं सूझा
बेवकूफ
आक्टोपस
आठ हाथ पैरों
को लेकर तैरता
रहा जिंदगी
भर अपनी
क्या फायदा
जब बिना
कुछ लपेटे
इधर से उधर
और
उधर से इधर
कूदता रहा
कौन पूछे
कहाँ कूदा
किसलिये
और
क्यों कूदा
गधे से लेकर
स्वान तक
कबूतर से
लेकर
कौए तक
मिलाता चल
आदमी की
कलाबाजियों
को देखकर
‘उलूक’
आठ जगह
एक साथ
घुस लेने की
कारीगरी
छोड़ कर
हर जगह
एक हाथ
या एक पैर
छोड़ कर
आना सीख
और
कुछ मत कर
कहीं भी
कहीं और
बैठ कर
कर बस
मौज कर
आक्टोपस बन
मगर मत चल
आठों लेकर
एक साथ हाथ
बस रख
आया कर
हर जगह कुछ
बताने के लिये
अपने आने
का निशान
किस ने
देखना है
कौन
कह रहा है
आ बता
अपनी
पहचान
आक्टोपस
होते हैं
कोई बात
है क्या
आक्टोपस
हो जाना
सीख ना
आदमी से।
चित्र साभार: cz.depositphotos.com