उलूक टाइम्स: आक्टोपस
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बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

कलाबाजी कलाकारी लफ्फाजों की लफ्फाजी जय जय बेवकूफों की उछलकूद और मारामारी

कब किस को
देख कर क्या
और
कैसी पल्टी
खाना शुरु कर दे
दिमाग के अन्दर
भरा हुआ भूसा

भरे दिमाग वालों
से पूछने की हिम्मत
ही नहीं पड़ी कभी
बस
इसलिये पूछना
चाह कर भी
नहीं पूछा

उलझता रहा
उलटते पलटते
आक्टोपस से
यूँ ही खयालों में
बेखयाली से

यहाँ से वहाँ
इधर से उधर
कहीं भी
किधर भी
घुसे हुऐ को
देखकर

फिर कुछ भी
कहने लिखने
के लिये नहीं सूझा

बेवकूफ
आक्टोपस
आठ हाथ पैरों
को लेकर तैरता
रहा जिंदगी
भर अपनी

क्या फायदा
जब बिना
कुछ लपेटे
इधर से उधर
और
उधर से इधर
कूदता रहा

कौन पूछे
कहाँ कूदा
किसलिये
और
क्यों कूदा

गधे से लेकर
स्वान तक
कबूतर से
लेकर
कौए तक

मिलाता चल
आदमी की
कलाबाजियों
को देखकर
‘उलूक’
आठ जगह
एक साथ
घुस लेने की
कारीगरी
छोड़ कर
हर जगह
एक हाथ
या एक पैर
छोड़ कर
आना सीख

और
कुछ मत कर
कहीं भी

कहीं और
बैठ कर
कर बस
मौज कर

आक्टोपस बन
मगर मत चल
आठों लेकर
एक साथ हाथ

बस रख
आया कर
हर जगह कुछ
बताने के लिये
अपने आने
का निशान

किस ने
देखना है
कौन
कह रहा है
आ बता
अपनी
पहचान

आक्टोपस
होते हैं
कोई बात
है क्या
आक्टोपस
हो जाना
सीख ना
आदमी से।

चित्र साभार: cz.depositphotos.com

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

पञ्चतन्त्र में सुधार: कूदना छोड़ उड़ना सीख मेंढक

समुद्री जीव 
आक्टोपस
बना दिया गया एक कुऎं का राजा

मिलने जा पहुँचा 
मेंढकों से
जब सबने उससे बोला 
एक बार तो यहां आजा

कतार में खडे़ मेंढक
एक एक 
कर
अपना 
परिचय उसे देते ही जा रहे थे

कुछ
कुऎं ही में 
रहे हुऎ थे हमेशा
कुछ
अंदर बाहर 
भी
कभी कभी 
आ जा रहे थे

अपनी अपनी 
जीभों की लम्बाई
बता बता कर इतरा रहे थे
किस किस तरह के 
कीडे़ मकौडे़ मच्छर
वो कैसे कैसे खा रहे थे

महाराज लेकिन 
ये सब
कहाँ 
सुनने जा रहे थे

व्हेल एक 
पाल क्यों नहीं लेते
सब मेंढक मिल बाट कर
अच्छी तरह समझाये जा रहे थे

साथ में बता रहे थे
जिस समुद्र को
वो 
यहाँ के राज पाट के लिये
छोड़ 
के आ रहे थे

वहाँ
एक हजार 
समुद्री व्हेलों को 
खुद पाल के आ रहे थे

सारे समुद्र के 
समुद्री जन
व्हेल का तेल ही तेल बना रहे थे

कीडे़ मकौडे़ नहीं 
बड़ी मछली का मांस भी
साथ में खा रहे थे

वहाँ की
तरक्की का 
ये उपक्रम
वो मेंढकों 
से कुऎं में भी 
करवाना चाह रहे थे

मेंढक
शर्मा शर्मी 
हाँ में हाँ मिला रहे थे

मन ही मन
अपने 
कूदने की लम्बाई भी
भूलते जा रहे थे

बेचारों को
याद भी 
नहीं रह पा रहा था
कि
नम्बर एक और 
नम्बर दो करने भी 
अभी तक वो लोग
खेतों की ओर ही तो जा रहे थे

कितने कुऎं से 
बना होता होगा 
वो समुद्र
जहाँ 
से उनके राजा जी यहाँ आ रहे थे

कुंद हो रही थी 
बुद्धि अब 

सोच रहे थे
कुछ सोच भी क्योंं नहींं
 पा रहे थे ।

चित्र साभार: 
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