उलूक टाइम्स

मंगलवार, 15 मई 2012

कार्टून और लंगोट

विधान सभा लोक सभा में
चर्चा अभी अगर नहीं कराओगे
लिखने लिखाने कार्टून बनाने
के कुछ नियम नहीं बनाओगे
संविधान का कार्टून अब भी
कुछ बंदरों से नहीं बनवाओगे
भारत देश की नागरिकता से
कभी भी हाथ धुला पाओगे
किसी पर भी कार्टून बनाओगे
आज नहीं फंसोगे पचास साल
बाद ही सही फंसा दिये जाओगे
जिंदा रहे तो टांक दिये जाओगे
मर खप गये तो किसी जिंदे
आदमी का जनाजा निकलवाओगे
कार्टून छोड़ो मुस्कुराने पर भी
सवाल जवाब होता देख पाओगे
सबके लिये बुरके जालीदार
सिलवाते ही रह जाओगे
अपने अपने कार्टून बनाओगे
अपने ही गले में लटकाओगे
ईश्वर को मंदिर से अगर भगाओगे
आदमी को ईश्वर मान जाओगे
शायद अपनी लंगोट बचा पाओगे
नंगे होने से पक्का बच जाओगे।

सोमवार, 14 मई 2012

दिखता है आतंकवाद

बम फोड़ना
मकान उड़ाना
निरीह लोगों की हत्या
यूँ ही करते चले जाना

आतंक फैलाना
फिर
आतंकवादी कहलाना

खबर में छा जाना
पकड़े जाना
जेल चले जाना

दिखता है
हो रहा है
दिखाता है
होगा आगे भी
अभी और कुछ

देश कर सकता है तैयार
रक्षा रणनीति और हथियार

बिना रीढ़ की हड्डी
अपने ही घर की टिड्डी
उतरी हुई है मैदान मैं
उतार के अपनी चड्डी

हल्ला खूब मचाती है
लोगों को बताती है
आतंकवादियों से देश
को बचा लो बचा लो की
डुगडुगी रोज बजाती है

खूबसूरत
रंगीन पंख फैलाती है
सुंदर नाच भी दिखाती है
ध्यान बंटाती है

अंदर ही अंदर
अपने पैरों के
नाखूनों से
देश की नींव
खुरचती जाती है

अपने जैसी
सोच के लोगों को
इकट्ठा इस तरह
करती चली जाती है

एक भी
गोली नहीं चलाती
किसी को
बम से नहीं उड़ाती
बिना रीढ़ की हड्डी के
बाकी लोग माला ले आते हैं
टिड्डी को पहनाते हैं

जयजयकार के साथ
कंधे पर बैठा के जुलूस
उसका बनाते हैं

इसी सब में देश की
नींव दरकती जा रही है
सबको नींद आ रही है

आतंकवादी तो जेल में
बाँसुरी बजा रहा है
टिड्डा अपने भाई बहनों के
साथ सबका ध्यान बटा रहा है

कुछ नहीं दिखता है
कि
कुछ कहीं हो रहा है
ना दिखाता है कुछ होगा

देश कैसे कर सकता है तैयार
रक्षा रणनीति और हथियार।

रविवार, 13 मई 2012

हैप्पी मदर्स डे

गाय भी माता कहलाती है
सूखी हरी जैसी भी मिले घास
खा ही जाती है

दूध की नदियाँ बहाती है

दूध देना बंद करती है
तुरंत कसाई को बेची जाती है

कुछ नहीं कहती है
चुपचाप चली जाती है

इसी तरह कई प्रकार की माँऎं
संसार में पायी जाती हैं

जिस में भी ममता हो कुछ
माँ का प्रतिरूप हो जाती हैं

माँ की ही तरह जानी जाती हैं

कौन सी माँ किसी के द्वारा
ज्यादा भाव पाती हैं
वो तो उसकी क्वालिटी बताती है

धरती माँ है देश भी माँ है
प्रकृति माँ है ईश्वर भी माँ है

जननी देने से कभी भी घबराती नहीं है
लेने वाले को भी दोहन करने में शरम आती नहीं है

संपन्न होती है तो आती जाती रहती है
नहीं होती है
तो सबसे नालायक पुत्र को सौंप दी जाती है

कहीं नहीं भेजी जाती है तो
वृ्द्धाश्रम पहुंचायी जाती है

माँ के भी सपने होते हैं
वो ही तो सिर्फ उसके अपने होते हैं

हमें पता होता है माँ क्या चाहती है
हमारी बड़ी मजबूरियां
उसके सपनो के आढे़ आती हैं

माँ
वाकई तेरे सहने की क्षमता
दुनियाँ का आठवां आश्चर्य हो जाती है

दुनिया तेरह मई को मदर्स डे मनाती है
तरह तरह के संदेश इधर से उधर करवाती है

एक दिन के लिये माँ
किसी किसी को याद आ ही जाती है

माँ के लिये तो हर दिन
एक खास दिन हो जाता है

जननी को कुछ तो जनना है
ये बस उसे याद रह पाता है

हर क्षण में एक नयी रचना
वो रचती ही चली जाती है

माँ आज तू नहीं है
हमें तेरी बहुत ही याद आती है ।

शनिवार, 12 मई 2012

जा एक करोड़ का होजा

बीबी बच्चों का
भविष्य बना
एक करोड़ का
तू बीमा करा

इधर अफसर
तीन सौ करोड़
घर के अन्दर
छिपा रहा है

उधर उसका
अर्दली
दस करोड़
के साथ
पकड़ा
जा रहा है

तू कभी
कुछ नहीं
खा पायेगा

बस सपने
ही देखता
रह जायेगा

अपने पास
ना सही
किसी के पास
एक करोड़
इस तरह तो ला
एक करोड़ का
सपना तू होजा

चल सोच मत
किश्त जमा
कर के आ

अभी करायेगा
कम किश्त में
हो जायेगा

बूढ़ा हो जायेगा
किश्त देने में
ही मर जायेगा

आज करा
अभी करा
एक करोड़
की पेटी होजा

दो रोटी
कम खा
बीमा
जरूर करा

बीमा
करते ही
अनमोल
हो जायेगा
किसी के
चेहरे पर
रौनक
ले आयेगा

तेरे जीने
की ना सही
मरने की
दुआ करने
कोई ना कोई
अब मंदिर की
तरफ जायेगा

किसी की
मौत पर
रोना शुरु हो
जाते हैं लोग
तू पैदा हुआ
खुश हुवे
थे लोग

मरेगा
तब भी
हर कोई
मुस्कुरायेगा
चल सोचना
बंद कर

तीन सौ
का नहीं
बस एक
करोड़ का
ही सही

करा
जल्दी करा
साठ पर करा
और सत्तर पर
पार होजा पर
बीमा एक करोड़
का जरूर करा।

शुक्रवार, 11 मई 2012

धैर्य मित्र धैर्य

आज प्रात:
उठने से ही

विचार
आ रहा था

श्रीमती जी पर
कुछ लिखने का
दिल चाह रहा था

सोच बैठा
पूरे दिन
इधर उधर
कहीं भी
नहीं देखूंगा

कुछ
अच्छा सा
उन पर लिख कर
शाम को दे दूंगा

घर से
विद्यालय तक
अच्छी बातें
सोचता रहा

कूड़ा
दिखा भी तो
उसमें बस
फूल ही
ढूंढता रहा

पर
कौए की
किस्मत मेंं
कहां
मोर का
पंख आता है

वैसे
लगा
भी ले
अगर तो
वह मोर नहीं
हो जाता है

कितना भी
सीधा देखने
की कोशिश करे

भैंगे को
किनारे में
हो रहा सब
नजर आ
ही जाता है

उधर
मेरा एक साथी
रोता हुआ सा
कहीं से
आ रहा था

एक
महिला साथी से
बुरी तरह
डांठ
उसने
अभी अभी
खायी है

सबको
आ कर के
बता रहा था

ऎसा
पता चला
कि
महिला को
महिला पर ही
गुस्सा आ रहा था

मेरे को तो
भाई जी पर
बहुत तरस
आ रहा था

इसी
उधेड़बुन में
घर वापस आया
तो श्रीमती जी 
मैने अपनी भुलायी

कलम
निकाली मगर
श्रीमती तो दूर दूर
तक कहीं भी
नजर नहीं आयी

दिमाग ने
बस एक
निरीह मित्र को
किसी से मार
खाते हुवे जैसी
छवि एक दिखाई

योजना
आज की
मैंने खटाई
में डुबायी

कोई बात नहीं
कुम्भ जो क्या है
फिर कभी मना लूंगा

अपनी ही
हैंं श्रीमती
उसपर
कविता एक
किसी और दिन
चलो बना लूंगा।