उलूक टाइम्स: हथियार
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गुरुवार, 4 जनवरी 2024

हथियार किसी के हाथ में ना कभी थे ना अभी हैं


हथियार
किसी के हाथ में
ना कभी थे ना अभी हैं
पर कुछ तो
डाल चुकें है लोग
क्या ?
बस इसी का आभास नहीं है

बहुत कुछ
उबल रहा है पर भाप नहीं है
ना कोई
हंस रहा है ना कोई रो रहा है
सबके पास
काम है कुछ महत्वपूर्ण
जो दिया गया है
उन्हें
अपने होने का ही आभास नहीं है

रास लीला के समय
सुना है कुछ ऐसा ही हुआ था
गोपियां
थी तो सही कहीं
पर उन्हें पता ही नहीं था

क्या वही समय
अपने को दोहरा रहा है ?

आँखे
देख नहीं रही है कुछ भी
कानों से
सुना नहीं जा रहा है
जिह्वा
चिपक चुकी है तालुओं के साथ

शायद कहीं
समुंदर से भी बड़ा कुछ मथा जा रहा है
उसी में से
निकला अमृत हर एक के हिस्से का
उसके गले से
जैसे नीचे की और खिसकाया जा रहा है

अब
इससे बड़ा और क्या चाहिए ?

आदमी सम्मोहन में है
आदमी ध्यान में है
आदमी समाधिस्थ है

‘उलूक’
कितना अजीब है तू
ऐसे में भी
बकवास करने से
बाज नहीं आ रहा है ?

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

सोमवार, 22 अक्तूबर 2018

बकवास करना भी कभी एक नशा हो जाता है अपने लिखे को खुद ही पढ़ कर अन्दाज कहाँ आता है



कहावतें भी समय के साथ बह जाती हैं 
चिंता चिता के समान होती होंगी कभी 
अब मगर चितायें भी बहा ले जायी जाती हैं 

लकड़ियाँ रह भी गयी अगर जलाती नहीं है 
बस थोड़ा थोड़ा सा सुलगाती हैं 

इसलिये लगा रह चिंता कर 
लेकिन कभी कभी बकवास भी पढ़ लिया कर 

अंगरेजी में कहते हैं फॉर ए चेंज 

बकवास लिखने के कई फायदे जरूर हैं 
फिर भी बकवास लिखने के कायदे भी
कुछ हजूर हैं 

कभी कोशिश कर के देख ले लिखने की 
कोई भी बकवास 
देख कर समझ कर कुछ भी 
अपने ही अगल बगल अपने ही आसपास

बकवास कभी इतिहास नहीं हो पाती है 
ध्यान रहे एक दिन के बाद 
दूसरे दिन साँस भी नहीं ले पाती है 

कोई देखने नहीं आता है 
कोई नहीं 
हाँ तो मतलब देखना पड़ता है जो किया जाता है 
उसको कितनों के द्वारा नजर के दायरे में लिया जाता है 

सोचो जरा 
कूड़े के ढेर में कौन कौन सा 
किस प्रकार का कैसा कैसा कूड़ा गेरा गया है 
कौन इतना ध्यान लगाता है 

सारा मिलमिला कर सब एक जैसा 
सार्वभौमिक हो जाता है 
एक तरह से ईश्वरीय हो जाता है 
सर्वव्यापी क्या होता है महसूस करा जाता है 

अब सब लोग कूड़ा क्यों देखेंगे भला 
अच्छा भी तो बहुत सारा होता है 
जिस पर सबका हिस्सा माना जाता है 

और जो मिलजुल कर साथ साथ 
कूड़े को पाँव के नीचे दबाकर 
उँचे स्वर में गाया जाता है 

दुर्गंध क्या होती है 
जब सड़ाँध है को होने के बावजूद 
सर्वसम्मति से नकार दिया जाता है 
मतलब इस सब के बीच कोई लिखने में लग जाता है 

ऊल जलूल लिखा हुआ किसी को 
कविता कहानी जैसा नजर आना शुरु हो जाता है 

क्या किया जाये 
अंधा लूला लंगड़ा काना 
किस दिशा में किस चीज में रंगत देख ले जाये 
कौन बता पाता है 

अब ‘उलूक’ इस सब के बीच 
बकवास करने के धंधें में कब पारंगत हो जाता है 

उसे भी तब अन्दाज आता है 
जब कोई कहना शुरु कर देता है 

अबे तू किसलिये फटे में टाँग अड़ा कर 
इतना खिलखिलाता है 

सार ये है कि 
ठंड रखना सबसे अच्छा हथियार माना जाता है 

कुछ दिन चला कर देख ले 
कितना मजा आता है ।

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कुरेदना राख को उसका
देखिये जनाब बबाल कर गया 
आग बैठी देखती रह गयी बहुत दूर से
कमाल कर गया ।
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चित्र साभार: http://www.i2clipart.com

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

सबसे बड़ा सच तो झूठ होता है

सच को बस छोड़कर
सब कुछ चलता हुआ दिखाई देता है

सच सबके पास होता है 
जेब में कमीज और पेंट की
हाथ में कापी और किताब में

एक के सच से दूसरे को
कोई मतलब नहीं होता है

अपने अपने सच होते हैं
सब का आकार अलग होता है
सच किसी के पैर की चप्पल या जूता होता है

एक का सच 
दूसरे के काम का नहीं होता है 
कोई किसी के सच के बारे में
किसी से कुछ नहीं कहता है

हाँ झूठ बहुत ही मजेदार होता है
सब बात करते हैं झूठ की
झूठ का आकार नहीं होता है
एक का झूठ दूसरे के भी
बहुत काम का होता है

पर किसी को पता नहीं होता है
झूठ कहाँ होता है

सूचना का अधिकार
झूठ को ढूंढने का ही हथियार होता है 
सबसे ज्यादा चलता हुआ
वही दिख रहा होता है

सच
बेवकूफ
मैं सच हूं सोच सोच कर
एक जगह ही बैठा होता है

जहाँ पहुचने की कोई सोच भी नहीं सकता है
झूठ वहाँ जरूर पहले से ही पहुंचा होता है
झूठ के पैर नहीं होते है
'उलूक'
बहकाने के लिये ही
शायद यूँ ही कह दिया होता है । 

चित्र साभार: https://www.megapixl.com/

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पूछ रहा है पता जो खुद है लापता

बहुत दिनों से
कई कई बार
सुन रहा था
नया आया है
एक हथियार
कह रहे थे लोग
बहुत ही काम
की चीज है
कहा जा रहा था
उसको सूचना
का अधिकार
एक आदमी
अपना दिमाग
लगाता है और
एक हथियार
अच्छा बना
ले जाता है
दूसरा आदमी
उसी हथियार
को सही जगह
पर फिट करना
सीख जाता है
कमाल दिखाता है
धमाल दिखाता है
ऎल्फ्रेड नोबल का
डायनामाईट कब
का ये हो जाता है
जिसने बनाया
होता है उसे
भी ये पता
नहीं चल
पाता है
उसके घर का
एक लापता
दस रुपिये
के पोस्टल
आर्डर से
उसको ढूँढने
के लिये उसको
ही आवेदन
थमा जाता है
उस बेचारे को
समझ में ही
नहीं आ पाता है
किस से पूछे
कैसे जवाब
इसका बनाया
जाता है कि वो
रहता है आता है
और कहीं भी
नहीं जाता है
तीस दिन तक
बस ये ही काम
बस हो पाता है
जवाब देने की
सीमा समाप्त
भी हो जाती है
जवाब भी तैयार
किसी तरह
कर लिया जाता है
किसी को भी
ये खबर नहीं
होती है कि
लापता इस
बीच फिर
लापता हो
जाता है
सूचना उसकी
कोई भी नहीं
दे पाता है ।

बुधवार, 27 जून 2012

विदाई

आज मैडम जी को
विदा कर के आया
उनके अवकाश ग्रहंण
के उपलक्ष्य में था
विभाग ने एक
समारोह करवाया
विदाई समारोह में
ऎसा महसूस होने
लग जाता है
मजबूत से मजबूत
आदमी भी थोड़ा
भावुक अपने को
जरूर दिखाता है
कौऎ मुर्गी कबूतर
भी होते हैं कहीं
आस पास में मौजूद
माहौल उन सबको भी
बगुला भगत बनाता है
एक के बाद एक
मँच पर बोलने
को बुलाया जाता है
कभी कुछ नहीं
कहने वाला भी
लम्बा एक भाषण
फोड़ ले जाता है
कोई शेर लाता है
शायर हो जाता है
कोई गाना सुनाता है
किशोर कुमार की
टाँग तोड़ने में जरा
भी नहीं घबराता है
कविता ले के आने वाला
अपने को सुमित्रा नन्दन पँत
हूँ कहने में नहीं शरमाता है
सेवा काल में सबसे ज्यादा
गाली खाने वाला जो होता है
सबसे बड़ी माला
वो ही तो पहनाता है
सारे गिले शिकवे भूल कर
नम आँखों से मुस्कुराता है
आँसू बनाने के लिये
कोई भी ग्लीसरीन
तक नहीं लगाता है
शब्दों का चयन देखने
लग जाये अगर कोई
अपने को अर्थ ढूढने में
असमर्थ पाता है
भावार्थ ढूँढने के लिये
घर वापस लौट कर
शब्दकोष ढूँढने
लग जाता है
इससे सिद्ध ये जरूर
लेकिन हो जाता है
कि अवकाश ग्रहण
करना माहौल को
ऊर्जावान जरूर ही
बना ले जाता है
फिर ये समझ में
नहीँ आ पाता है
कि विभागों में
शाँति व्यवस्था
कायम करने के लिये
अवकाश लेने देने को
हथियार क्यों नहीं
सरकार द्वारा एक
बना लिया जाता है ।

सोमवार, 14 मई 2012

दिखता है आतंकवाद

बम फोड़ना
मकान उड़ाना
निरीह लोगों की हत्या
यूँ ही करते चले जाना

आतंक फैलाना
फिर
आतंकवादी कहलाना

खबर में छा जाना
पकड़े जाना
जेल चले जाना

दिखता है
हो रहा है
दिखाता है
होगा आगे भी
अभी और कुछ

देश कर सकता है तैयार
रक्षा रणनीति और हथियार

बिना रीढ़ की हड्डी
अपने ही घर की टिड्डी
उतरी हुई है मैदान मैं
उतार के अपनी चड्डी

हल्ला खूब मचाती है
लोगों को बताती है
आतंकवादियों से देश
को बचा लो बचा लो की
डुगडुगी रोज बजाती है

खूबसूरत
रंगीन पंख फैलाती है
सुंदर नाच भी दिखाती है
ध्यान बंटाती है

अंदर ही अंदर
अपने पैरों के
नाखूनों से
देश की नींव
खुरचती जाती है

अपने जैसी
सोच के लोगों को
इकट्ठा इस तरह
करती चली जाती है

एक भी
गोली नहीं चलाती
किसी को
बम से नहीं उड़ाती
बिना रीढ़ की हड्डी के
बाकी लोग माला ले आते हैं
टिड्डी को पहनाते हैं

जयजयकार के साथ
कंधे पर बैठा के जुलूस
उसका बनाते हैं

इसी सब में देश की
नींव दरकती जा रही है
सबको नींद आ रही है

आतंकवादी तो जेल में
बाँसुरी बजा रहा है
टिड्डा अपने भाई बहनों के
साथ सबका ध्यान बटा रहा है

कुछ नहीं दिखता है
कि
कुछ कहीं हो रहा है
ना दिखाता है कुछ होगा

देश कैसे कर सकता है तैयार
रक्षा रणनीति और हथियार।