उलूक टाइम्स

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

ये तो होना ही था


जो हो रहा था अच्छा हो रहा था 
जो हो रहा है अच्छा हो रहा है 
जो आगे होगा वो अच्छा ही होगा 

बस तुझे
एक बात का 
ध्यान रखना होगा 

बंदर के बारे में 
कुछ भी कभी भी नहीं सोचना होगा 

बहुत पुरानी कहावत है 
मगर बड़े काम की कहावत नजर आती है 
जब मुझे
अपने 
दिमाग में घुसी भैंस नजर आती है 

अब माना कि 
अपनी ही होती है 
पर भैंस तो भैंस होती है 
उसपर
जब वो किसी के 
दिमाग में घुसी होती है 

जरा जरा सी बात पर 
खाली भड़क जाती है 
कब क्या कर बैठे 
किसी को बता कर भी नहीं जाती है 

दूसरों को देख 
कर लगता है 
उनकी भी कोई ना कोई 
भैंस 
तो 
जरूर होती होगी 

तो मुझे खाली
क्यों 
चिंता हो जाती है 
अपनी अपनी भैंस होती है
जिधर करेगा मन 
उधर को चली जाती है

अब इसमें मुझे 
चिढ़ लग भी जाती है 
तो कौन सी बड़ी बात हो जाती है 

लाईलाज हो बीमारी
तब 
हाथ से निकल जाती है 

अखबार की खबर से 
जब पता चलता है 
कोई भी ऐसा नहीं है 
मेरे सिवाय यहाँ पर 
जिसके साथ इस तरह की कोई अनहोनी होती हुई
कभी यहां 
पर देखी जाती है 

होती भी है
किसी के 
पास एक भैंस 
वो हमेशा तबेले में ही बांधी जाती है 

सुबह सुबह से
इसी 
बात को सुनकर 
दुखी हो चुकी
मेरे 
दिमाग की भैंस 
पानी में चली जाती है 

तब से भैंस के जाते ही 
सारी बात जड़ से खतम हो जाती है 

परेशान होने की 
जरूरत नहीं 
अगर आपके समझ में
'उलूक' 
की बात बिल्कुल भी नहीं आती है । 

चित्र साभार: http://wazaliart.blogspot.com/

सोमवार, 18 नवंबर 2013

तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे


ऐसा बहुत बार हुआ है 
आसमान से टूटता हुआ एक तारा 
नीचे की ओर उतरता हुआ
जब दिखा है 

गूंजे हैं कान में
किसी के कहे हुऐ कुछ शब्द 
तारे को टूटते हुऐ देखना बहुत अच्छा होता है 
सोच लो मन ही मन कुछ 
कभी ना कभी जरूर पूरा होता है 

बहुत याद आती है उसकी और पड़ जाते हैं सोच 
क्यों और किसलिये उसने ऐसा
हमेशा कहा होता है 

तब दुनिया का एक सब से खूबसूरत चेहरा
सामने होता है 

पुराने दिनों की बात आ जाती है
अचानक याद 
बहुत से तारे टूटते हुऐ एक साथ 
आसमान से गिरते हुऐ
फुलझड़ी की तरह 
देखे थे किसी एक रात
उसने और मैंने साथ साथ 

इतने सारे टूटते हुऐ तारे
जैसे बरसात हो गई हो 
जाहिर करनी है
मन ही मन कोई इच्छा भी इस समय 
जैसे याद ही नहीं रह गई हो 

कब इतना समय आगे निकल गया
पता ही नहीं चला 

कल रात देख रहा था
आसमान की ओर 
एक टूटता हुआ तारा आ रहा था
जैसे जैसे नीचे की ओर 

मुझे याद आ रही थी
उसकी इच्छायें 
पता नहीं कितनी पूरी हुई होंगी 
आज जब वो पास में नहीं है 
जरूर कहीं ना कहीं से 
तारे को टूटते हुऐ
जरूर देख रही होंगी 

क्योंकि मेरी इच्छायें
उस समय भी पूरी हो जाती थी 
जब तारे के टूटते समय तुम पास खड़ी होती थी 

आज भी पूरी होती है 
तब भी
जब तुमको गये हुऐ भी बरसों हो गये 

पता नहीं
कितनों की इच्छायें पूरी हो जाती हैं
एक माँ
जब भी तारे को टूटते देखती है

आज भी माँ
जब भी कोई तारा टूटता है
मुझे कोई इच्छा नहीं याद आती है 
उस समय बस और बस 
मुझे तुम्हारी
बहुत याद आती है ।

चित्र साभार: 
https://sciencing.com/

रविवार, 17 नवंबर 2013

कंंधा नहीं लगायेगा तो ऊपर क्या है कैसे देख पायेगा

पता ही
नहीं चलता
कब कहाँ
किसी को
क्या नजर
आ जाये

किस
हाल में
किसी को
किसी
के लिये
क्या कुछ
करना ही
पड़ जाये

समझाता भी
कौन है यहां
किताबों से
बाहर की बातें

जो समझ में
आसानी से
किसी के
यूं ही आ जाये
कंंधा लगाये हुऐ

कुछ लोगों के
कंंधे पर चढ़ा
हुआ कोई
उँचाई पर
कुछ ढूंंढने
के लिये
जब चला जाये

क्या दिखा
क्या मिला
नीचे उतरने
पर भी
कंंधे दिये
हुओं को
तक भी
ना बताये

कंंधे
 लगाये
हुओं को
इस बात से
कोई मतलब
ही ना रह जाये

एक उतरा
नहीं नीचे
दूसरा कंंधों
पर चढ़ कर
ऊपर देखना
शुरु हो जाये

चढ़ना उतरना
चल रहा हो
ऊपर जाता
हुआ मगर
कोई नजर
कभी कहीं
भी नहीं आये

शायद हो
दही की मटकी
ऊपर कहीं
हुई लटकी
हिम्मत फोड़ने
की ऐसे में
कोई क्यों और
कैसे कर पाये

इंतजार में हो
सब कन्हैया के
सभी 
कंंधे
पै लगे हो

इसीलिये
अपना भी 
कंंधा लगाये
'उलूक'
देखे खुद
समझे खुद
और खुद को
खुद ही
ये समझाये

किसी की
समझ में इसमें
कुछ और
अगर आ जाये
तो बहुत
मेहरबानी होगी
पक्का बताये
जरूर बताये ।

शनिवार, 16 नवंबर 2013

बहुत कुछ बहुत जगह पर लिखा पाता है पढ़ा लेकिन किसी से सब कहाँ जाता है !


कुछ
ना कहते
हुऐ 
भी

बहुत कुछ 
बोलती
आँखोंं से 
कभी

आँखे
अचानक 
ना चाहते सोचते 
मिल जाती हैं 

और
एक सूनापन 

बहुत
गहराई से 
निकलता हुआ 

आँखों से आँखो 
तक
होता हुआ 
दिल में
समा जाता है 

एक नहीं 
कई बार होता है 

एक नहीं 
कई लोग होते हैं 

ना
दोस्त होते हैं 
ना
दुश्मन होते हैं 

पता नहीं
फिर भी 
ना जाने क्यों 
महसूस होता है 

अपनी
खुद की 
खुद से
नजदीकियों 
से भी
बहुत 
नजदीक होते हैं 

बहुत कुछ 
लिखा होता है 

दिखता है 
बहुत कुछ
साफ

आँखों में ही 
लिखा होता है

महसूस होता है 
पानी में
लिखना भी 
किसी को आता है 

ऐसा
कुछ लिखा 

जैसा
पहले कहीं भी 
किसी
किताब में 

लिखा हुआ
नजर 
नहीं आता है 

इतना सब 
जहाँ
किसी को 
एक मुहूरत में ही 
पढ़ने को मिल जाता है 

कितना कुछ 
कहाँ कहाँ 
सिमटा हुआ है 
इस जहाँ में 

कौन
जान पाता है 

ना लिख 
सकता है कोई कहीं 

ना ही कहीं
वैसा 
लिखा सा 
नजर आता है 

बाहर से 
ढोना जिंदगी
तो 
हर किसी को आना 

जीने के लिये
फिर भी 
जरूरी हो जाता है 

अंदर से
इतना भी 
ढो सकता है कोई 

ना
सोचा जाता है 

ना ही
कोई इतना 
सोचना
ही
चाहता है 

पढ़ ही लेना
शायद 
बहुत हो जाता है 

लिखना
चाह कर भी 
वैसा

कौन कहाँ
कभी 
लिख ही पाता है ।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

जिसके लिये लिखा हो उस तक संदेश जरूर पहुँच जाता है !

पता नहीं
क्या क्या

और
कितना कितना
बदला है

कितना
और बदलेगा
और क्या
फिर हो जायेगा

सुना था
कभी राम थे
सीता जी थी
और
रावण भी था

बंदर तब भी
हुआ करते थे
आज भी हैं

ऐसी बहुत से
वाकयों से
वाकिफ होते होते
कहां से कहां आ गये

बस कुछ ही
दिन हुऐ हों जैसे

छोटे शहर में
छोटी सी बाजार
चाय की
दुकानों में जुटना
और
बांट लेना बहुत कुछ
यूं ही बातों ही बातों में

आज जैसे
वही सब कुछ
एक पर्दे पर
आ गया हो

बहुत कुछ है

कहीं किसी के
पास आग है
किसी के
पास पानी है

कोई
आँसुओं के
सैलाब में
भी मुस्कुरा
रहा है

कोई जादू
दिखा रहा है

कहीं
झगड़ा है
कहीं
समझौता है

दर्द खुशी
प्यार इजहार
क्या नहीं है

दिखाना बहुत
आसान होता है
इच्छा होनी चाहिये
कुछ ना कुछ
लिखा ही जाता है

अब चाय की
वो दुकान
शायद यहाँ
आ गयी है

हर एक पात्र
किसी ना किसी में
कहीं ना कहीं
नजर आता है

हर पात्र के
पास है
कुछ ना कुछ
कहीं कम
कहीं कहीं
तो बहुत कुछ

चाय तो अब
कभी नहीं दिखती

पर सूत्रधार
जरूर दिख जाता है

कहानी कविता
यात्रा घटना दुर्घटना
और
पता नहीं क्या क्या

सब कुछ
ऐसे बटोर के
ले आता है

जैसे महीन
झाड़ू से एक सुनार
अपने छटके हुऐ
सोने के चूरे को
जमा कर ले जाता है

एक बात
को लिखना जहां
बहुत मुश्किल
हो जाता है

धन्य हैं आप
कैसे इतना कुछ
आपसे इतनी
आसानी से
हो जाता है

आप ही के
लिये हैं ये उदगार

मुझे पता है
आप को सब कुछ
यहां पता चल जाता है ।