उलूक टाइम्स

शनिवार, 10 मई 2014

आईडिया आ रहा है तो मेरे बाप का क्या जा रहा है

कहते हैं एक
अच्छा आईडिया
बदल सकता है
किसी की भी दुनिया
पर आईडिया
आये कहाँ से
प्रश्न उठ रहा हो
अगर किसी के
खाली दिमाग में
ऐसे ही समय में
तो लगता है
प्रश्न भी बेरोजगार
हो सकते है
कहीं भी मन करे
उठ खड़े भी
हो सकते हैं
इसलिये कभी कभी
पाठक के ऊपर भी
भरोसा कर ही
लेना चाहिये
कुछ बात जो
समझ में नहीं
आ रही हो
बेझिझक होकर
पूछ लेना चाहिये
अब मजाक
मत उड़ाइयेगा
अपना समझ कर
ही बताइयेगा
सोच में आ रहा है
देश भक्ति के
छोटे छोटे पैकेट
बनाकर फुटकर में
बेचने का मन
चाह रहा है
दाम बहुत ज्यादा
नहीं रखे जायेंगे
आजकल वैसे भी
एक के साथ एक
फ्री लेने देने का
जमाना छा रहा है
अब किसी एक को
तो लेनी ही
पड़ेगी सारे देश में
ऐजैंसियाँ बाटने
की जिम्मेदारी
किससे सौदा
किया जाये
बस यही समझ
में नहीं आ पा रहा है
रोज लाता है ‘उलूक’
कौड़ी बेकार की
आज भी कोई
नई चीज नहीं
उठा रहा है
आभारी रहेगा
जिंदगी भर
अगर आपके
दिमाग में भी
कोई नया आईडिया
इस मुद्दे पर
आ जा रहा है
मुफ्त में बाँटने की
बात नहीं कह रहा हूँ
सौदा देशभक्ति
का होना है
कर लेंगे कम बाकी
बाद में मिल बैठ कर
कौन किसी को
इस बात को
जनता को बताने
के लिये जा रहा है ।

शुक्रवार, 9 मई 2014

सँभाल के रखना है सपनों को मुट्ठी के अंदर फना होने तक

मुट्ठियाँ
बंद रखना
बस
कोशिश करके
कुछ ही दिन
और
बहुत कुछ है
जो
अभी हाथ में है
जिसे कब्जे में
लिया है सभी ने

अपने अपने
सपनों से
अपनी अपनी
सोच और
अपनी औकात के
हिसाब किताब से

कुछ ना कुछ
थोड़ा थोड़ा
गणित
जोड़ घटाना
नहीं आते हुऐ भी

समझ में आ
ही जाता है
अंधा भी
पहचान
लेता है
खुश्बू से
बदलते हुऐ
रंगों को

कान बंद
करने के
बाद भी
आवाजों की
थरथराहट
बता देती है
संगीत मधुर है
या कहीं
तबाही हुई
है भयानक

चैन से सोने
के दिनों में
सपनो को
आजाद कर देना
अच्छी बात नहीं है

सपने
आसानी से
मरते भी नहीं हैं

ताजमहल
पक्का बनेगा
बनना ही
उसकी नियति है

हाथों को
कटना ही है
और
खाली हाथों के
कटने से अच्छा है
बंद मुट्ठियाँ कटें

पूरे नहीं होने हों
कोई बात नहीं
कम से कम
सपने दिखें तो

बंद अंगुलियों के
पोरों के पीछे से
ही सही कहीं

जैसे
दिखता है
सलाखों
के पीछे
एक मृत्यूदंड
पाया हुआ
अपराधी
कारागार में ।

गुरुवार, 8 मई 2014

इतने में ही क्यों पगला रहा है जमूरे हिम्मत कर वो आ रहा है जमूरे

अरे जमूरे सुन
हुकुम मालिक
आ गया
बजा के ड्यूटी
बजा ली मालिक
कहाँ बजाई
बहुत बड़े मालिक की
बजाई मालिक
नहीं बजाता
तो मेरी बजा देता मालिक
खेल कैसा रहा जमूरे
बढ़िया रहा मालिक
मशीन के तो
मौज ही मौज थे मालिक
बाकी जैसे पिटी हुई
फौज के कुछ
फौजी थे मालिक
कोई किसी को
कुछ नहीं बता
रहा था मालिक
काम अपने आप
हो जा रहा था मालिक
रहने सहने की
कौन कहे मालिक
डर के मारे वैसे ही
नींद में सो
जा रहा था मालिक
कोई डंडा बंदूक से
नहीं डरा रहा था मालिक
अपने आप दिशा
जाने का मन
हो जा रहा था मालिक
मशीन भगवान जैसी
नजर आ रही थी मालिक
अपने आप ही
हनुमान चालिसा
पढ़ी जा रही थी मालिक
बस एक बेचारा
तीस साल का जमूरा
हार्ट अटैक से
मारा गया मालिक
तीन महीन पहिले ही
डोली से उतारा
गया था मालिक
कोई बात नहीं मालिक
एक नेता बनाने के लिये
एक ही शहीद हुआ मालिक
काम नहीं रुका
ऐसे में भी
जो जैसा होना था
उसी तरह से हुआ मालिक
तुरंत हैलीकाप्टर से
शरीर को उसके घर
तक पहुँचा
दिया गया मालिक
दुल्हन को भी
बीमे की रकम का
झुनझुना दिखा
दिया गया मालिक
नेता जी की वाह वाह को
अखबार में छपवा
दिया गया मालिक
बस एक बात
समझ में नहीं
कुछ आई मालिक
मजबूत सरकार
ही नहीं अभी तक
आई है मालिक
फिर सारा काम
कौन सी सरकार
निपटवाई है मालिक
जूता किसी ने
किसी को नहीं
दिखाया मालिक
भाग्य भाग्यहीनो का
गिने चुने किस्मत
वालो के लिये
डब्बे में बंद
फिर भी
करवाया मालिक
खर्चा पानी बिल सिल
कहीं भी नहीं
दिखाया मालिक
सारा काम हो गया
पता भी नहीं
किसी को चला मालिक
आप मालिक हो
थोड़ा हमें भी
समझा दिया करो मालिक
चुनाव आयोग को ही
लोकसभा विधानसभा में
बैठा लिया करो मालिक
हर पाँच साल बाद
होने वाले तमाशे से
छुटकारा दिलवा
दिया करो मालिक
जमूरे
जी मालिक
बहुत बड़बड़ा रहा है
चुनाव का असर
दिमाग में पड़ गया है
जैसा ही कुछ
समझ में आ रहा है
दो चार दिन बस
और रुक जा
परीक्षाफल आने
ही जा रहा है
उसके बाद सब
ठीक हो जायेगा
धंधा शुरु होने के
बाद कौन किसे
पूछने को आ रहा है
तू और मैं
फिर से शुरु हो जायेंगे
कटोरा भीख माँगने
का कहीं नहीं जा रहा है ।

बुधवार, 7 मई 2014

सच्चाई लिखने का ही बस कोई कायदा कानून नहीं होता है

दिल ने कहा गिन
अरे कुछ तो गिन
गिनती भूल गये
पता नहीं क्यों
इसी बार बस
दिन गिने
ही नहीं गये
बहुत देर में
पहुँचे आँखिरकार
आया बटन
दबाने का दिन
उसकी सोचो
उसे भी तो
चादर से ढके
गधों को
हाँकते हाँकते
हो गये हैं
कितने दिन
मान कर
चलना पड़ेगा
किसी ने किसी
गधे को नहीं
देखा होगा
आगे क्या
होने वाला है
पता नहीं किसी
को शायद
पता भी होगा
उसको देख कर
ही तसल्ली
कर रहा होगा
काफिला सही
जगह पर जाकर
पहुँच रहा होगा
गधे आश्वस्त होंगे
बहुत खुश होंगे
व्यस्त होंगे
मन ही मन
बेचैन होंगे
दावत के सपने
काले सफेद नहीं
सभी रंगीन होंगे
होता है होता है
ऐसा ही होता है
किसी को कहाँ
मतलब होता है
जब गधे के
आगे गधा और
गधे के पीछे भी
गधा होता है
गधे चल या
दौड़ रहे होते हैं
देखने सुनने वाले
भी गधे होते हैं
क्या करे बेचारा
उस ही के बारे में
हर कोई कुछ ना कुछ
सोच रहा होता है
मानना पड़ता है
जाँबाज होता है
गधे हैं पता
होने पर भी
खुशी खुशी
हाँक रहा होता है
अनगिनत गधों में
एक भी गधा
ऐसा नहीं होता है
जिसके गले में
कोई पट्टा या
रस्सी का फंदा
दिख रहा होता है
उसकी सोचो जरा
जो इतनो को
इतने समय से
एक साथ खींच
घसीट रहा होता है
गधों में से एक गधा
तब से अब तक
गधों की बात ही
सोच रहा होता है
गुब्बारों में हवा
भरने का भी
कोई सहूर होता है
ज्यादा भर गई
हवा को भी तो
कहीं ना कहीं से
निकलना ही होता है
आदमी का इस सब में
कोई कसूर नहीं होता है
जहाँ कुछ भी होना
मंजूरे खुदा के होने
से ही होना होता है
कुछ नहीं कर
सकता है कोई
उसके लिये
जिसकी किस्मत
में बस यही सब
लिखना लिखा
होता है
पढ़ने वाले के
लिये दुआऐं
ढेर सारी लिखने
के साथ साथ
'उलूक' हमेशा
बहुत सारी जरूर
माँग रहा होता है ।

मंगलवार, 6 मई 2014

जिसको काम आता है उसको ही दिया जाता है

अपनी
प्रकृति के
हिसाब से

हर
किसी को

अपने
लिये काम
ढूँढ लेना

बहुत
अच्छी तरह
आता है

एक
कबूतर
होने से
क्या होता है

चालाक
हो अगर

कौओं को
सिखाने
के लिये भी
भेजा जाता है

भीड़
के लिये
हो जाता है
एक बहुत
बड़ा जलसा

थोड़े से
गिद्धों को
पता होता है

मरा
हुआ घोड़ा
किस जगह
पाया जाता है

बहुत
अच्छी बात है

अगर कोई
काली स्याही
अंगुली में
अपनी
लगाता है

गर्व करता है

इतराता हुआ
फोटो भी
कई खिंचाता है

चीटिंयों की
कतार चल
रही होती है
एक तरफ को

भेड़ो
का रेहड़
अपने हिसाब से

पहाड़ पर
चढ़ना चाहता है

एक
खूबसूरत
ख्वाब

कुछ दिनों
के लिये ही सही
फिल्म की तरह
दिखाया जाता है

देवता लोग
नहीं बैठते हैं
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे में

हर कोई
भक्तों से
मिलने
बाहर को
आ जाता है

भक्तों
की हो रही
होती है पूजा

न्यूनतम
साझा कार्यक्रम
के बारे में

किसी
को भी
कुछ नहीं
बताया जाता है

चार दिन
शादी ब्याह
के बजते
ढोल नगाड़ों
के साथ

कितना भी
थिरक लो

उसके बाद

दूल्हा
अकेले दुल्हन के
साथ जाता है

तुझे
क्या करना है

इन
सब बातों से
बेवकूफ ‘उलूक’

तेरे पास
कोई
काम धाम
तो है नहीं

मुँह उठाये
कुछ भी
लिखने को
चला आता है ।