वो जो सच में लिखना होता है
खुद ही सहम कर पीछे चला जाता है
कैसे लाये खयाल में किसी को कोई
कोई और सामने से आ जाता है
-----------
उस मदारी के लिये बहुत कुछ
लिख रहें है लोग अपनी समझ से
कुछ भी लिखे को उसपर लिखा समझ कर
जमूरा उसका अपनी राय दे जाता है
---------
उसे भी कहाँ आती है शर्म किसी से
हमाम में ही सबके साथ खिलखिलाता है
लड़ता नहीं है किसी से कभी भी
एक भूख से मरा बच्चा ला कर के दिखाता है
---------
शेर और शायरी अदब के लोगों के फसाने होते हैं
सुना है यारों से
किसी की आदत में बस
बकवास में बातों को उलझाना ही रह जाता है
----------
मुद्दत से इंतजार रहता है
शायद बदल जायेगी फितरत हौले हौले किसी की
तमन्ना के साथ हौले हौले उसी फितरत को अपनी
धार दिये जाता है
-------
कुछ नहीं बदलेगा
कहना ही ठीक नहीं है जमाने से इस समय
जमाना खुद अपने हिसाब से
अब चलना ही कहाँ चाहता है
---------
किसी के चेहरे के समय के लिखे निशानों पर
नजर रखता है
अपने किये सारे खून जनहित के सवालों से
दबाना चाहता है
---------
किसी के लिखने और किसी को पढ़ने के बीच में
बहुत कुछ किसी का नहीं है
कोई लिखता चलता है मीलों
किसी को ठहर कर पढ़ने में मजा आता है
----------
किसी के लिखे पर कुछ कहना चाहे कोई
सारे खाली छपने वालों को छोड़ कर
किसलिये डरता है कोई इतना
लिखे पर कह दिये को
घर ले जा कर पढ़ना चाहता है
---------
कुछ भी लिख देने की आदत रोज रोज
कभी भी ठीक नहीं होती है ‘उलूक’
किसलिये अपना लिख लिखा कर
कहीं और जा कर
फिर से दिखना चाहता है।
-----
चित्र साभार: