उलूक टाइम्स: मदारी
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गुरुवार, 18 जून 2020

अन्दाज बकवास-ए-उलूक का कुछ बदलना चाहता है


वो जो सच में लिखना होता है 
खुद ही सहम कर पीछे चला जाता है 
कैसे लाये खयाल में किसी को कोई 
कोई और सामने से आ जाता है 
-----------
उस मदारी के लिये बहुत कुछ 
लिख रहें है लोग अपनी समझ से 
कुछ भी लिखे को उसपर लिखा समझ कर 
जमूरा उसका अपनी राय दे जाता है
---------
उसे भी कहाँ आती है शर्म किसी से 
हमाम में ही सबके साथ खिलखिलाता है 
लड़ता नहीं है किसी से कभी भी 
एक भूख से मरा बच्चा ला कर के दिखाता है
---------
शेर और शायरी अदब के लोगों के फसाने होते हैं 
सुना है यारों से 
किसी की आदत में बस 
बकवास में बातों को उलझाना ही रह जाता है
----------
मुद्दत से इंतजार रहता है 
शायद बदल जायेगी फितरत हौले हौले किसी की 
तमन्ना के साथ हौले हौले उसी फितरत को अपनी
धार दिये जाता है
‌‌‌‌‌-------
कुछ नहीं बदलेगा 
कहना ही ठीक नहीं है जमाने से इस समय
जमाना खुद अपने हिसाब से 
अब चलना ही कहाँ चाहता है
--------- 
किसी के चेहरे के समय के लिखे निशानों पर 
नजर रखता है 
अपने किये सारे खून जनहित के सवालों से 
दबाना चाहता है
--------- 

किसी के लिखने और किसी को पढ़ने के बीच में 
बहुत कुछ किसी का नहीं है 
कोई लिखता चलता है मीलों 
किसी को ठहर कर पढ़ने में मजा आता है
---------- 
किसी के लिखे पर कुछ कहना चाहे कोई 
सारे खाली छपने वालों को छोड़ कर 
किसलिये डरता है कोई इतना 
लिखे पर कह दिये को 
घर ले जा कर पढ़ना चाहता है
‌‌‌‌--------- 
कुछ भी लिख देने की आदत रोज रोज 
कभी भी ठीक नहीं होती है ‘उलूक’ 
किसलिये अपना लिख लिखा कर 
कहीं और जा कर 
फिर से दिखना चाहता है।
----- 

चित्र साभार: 

रविवार, 31 मई 2020

मदारी मान लिया हमने तू ही भगवान है बाकी कहानियों के किरदार हैं और हम तेरे बस तेरे ही जमूरे हैं


बहुत से हैं
पूरे हैं

दिख रहे हैं
साफ साफ
कि हैं

फिर
किसलिये
ढूँढ रहा है
जो
अधूरे हैं

क्षय होना
और
सड़ जाने में
धरती आसमान
का अन्तर है

उसे
क्या सोचना

जिसने
जमीन
खोद कर
ढूँढने ही बस

मिट चुकी
हवेलियों के
कँगूरे हैं 

समझ में
आता है
घरेलू
जानवर का
मिट्टी में लोटना
मालिक की रोटी
के लिये

उसके
दिल में भी हैं
कई सारे बुलबुले
बनते फूटते
चाहे आधे अधूरे हैं

 सम्मोहित होना
किसने कह दिया
बुरा होता है

अजब गजब है
नखलिस्तान है
टूट जाने के
बाद भी
सपने

उस्ताद
के लिये
तैयार
मर मिटने के लिये
जमूरे हैं

मर जायेंगे
मिट जायेंगे
हो सकेगा तो
कई कई को
साथ भी
ले कर के जायेंगे

जमीर
अपना
कुछ हो
क्या जरूरी है

जोकर पे
दिलो जाँ
निछावर
करने के बाद

किस ने देखना
और
सोचना है

मुखौटे के पीछे

किस बन्दर
और
किस लंगूर के

लाल काले
चेहरे
कुछ सुनहरे हैं

‘उलूक’
किसलिये
लिखना
लिखने वालों
के बीच
कुछ ऐसा

जब
पहनाने  वाले

उतारने 
वालों से
बहुत ही कम है

सब 

हमाम में हैं
भूल जाते हैं

उनके चेहरे
उनके नकाब
और
उनके
आईने तक

हर किसी के पास हैं

नये हैं
अभी खरीदें हैं

और
जानते हैं

कुछ छोले हैं
और
कुछ भटूरे हैं।

https://steemit.com/

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

स्टेज बहुत बड़ा है आग देखने वालों की भीड़ है ‘उलूक’ तमाशा देख मदारी का


किस लिये
ध्यान देना

कई
दिशाओं में

कई कई
कोसों तक
बिखरे हुऐ

सुलगते
छोटे छोटे
कोयलों
की तरफ

ना
आग ही
नजर आती है

ना ही
नजर आता है
कहीं
धुआँ भी
जरा सा

बेशरम
कोयले
समय भी
नहीं लेते हैं

कब
राख हो जाते हैं

कब
उड़ा ले जाती है
हवा

निशान भी
इतिहास
हो जाते हैं

इतिहास
लिखे जाने से
पहले ही

अपने
घर से
कहीं
 बहुत दूर
लगी

बहुत
बड़ी
लपट की
बड़ी आग

होती है
काम की आग

आकर्षित
करते हैं
उसके रंग

चित्र भी
अच्छे आते हैं
कैमरे से

कलाकार
की
तूलिका भी
दिखा सकती है
कमाल

आग को
रंगों में उतार कर
कागज पर

लगता तो है

कहीं
कुछ जला है

धुँआ
भी हुआ है

और
सोच भी
हो पाती है
कुछ
पानी पानी सी

कौन सा
गीला
करना होता है
समय को
शब्दों से

और
कहाँ
लिखा होता है

किसी की भी
मोटी
पूज्यनीय
किताब में

कि
जरूरी होता है
उड़ा देना
राख को
गरमी
रहते रहते

इत्मीनान
भी कोई
चीज होती है

इतिहास
के लिये
ना सही

बही खाते में
लिख कर
जमा कर लेने
से भी
फायदा होता है

साठ सत्तर
दशक बाद
कोई भी
 किसी पर भी
लगा देगा
इल्जाम

चकमक पत्थर
घिस घिसा कर
आग लगाने का

‘उलूक’
तमाशा देख
मदारी का

स्टेज
बहुत बड़ा है

आग
देखने वालों की
भीड़ है

वैसे भी

आग
किसी को
सोचनी जो
क्या है

सोच लेने
से भी
कुछ
जलता
नहीं है 

ठंड रख।

चित्र साभार: https://pngtree.com

रविवार, 31 मार्च 2019

‘उलूक’ हर दिन अपने आईने में देखता है चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है

 
बकवास करने का अपना मजा
अपना एक नशा होता है
किसी की दो चार लोग सुन देते हैं
किसी के लिये मजमा लगा होता है

नशा करके बकवास करने वाले को
उसके हर फायदे का पता होता है
नशा करता है एक शराबी
पीना पिलाना उसके लिये जरूरी होता है

कहीं कुछ नहीं से निकाल कर
बातों बातों में सारा कुछ यूँ ही चुटकी में दे देता है
बातों के नशे में रहता है एक नशेड़ी ऐसा होता है
ये माजरा करोड़ों में एक होता है

बातें होनी हैं होती हैं अप्रैल की
मार्च के बाद का एक महीना हर साल में एक होता है
विदेशी  कैलेण्डर विदेशी सोच विदेशी बातों को
विदेशों में सोचना होता है

देशी बातों में बातें देश की होती हैं
एक दिन में बात का नशा नहीं होता है
सबकी बात सबके लिये बात होने के लिये
उसके पास बातों का जखीरा होता है

सालों साल से जिसके लिये
हर दिन हर महीना साल का एक अप्रैल होता है
फूल लेकर हाथ में बातों में उसको बाँध कर
वो फिर से हाजिर होता है

जोकर कहें जमूरा कहें मदारी कहें सपेरा कहें
‘उलूक’ हर दिन अपने आईने में देखता है
चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है ।

चित्र साभार: https://furniture.digitalassetmanagement.site

मंगलवार, 15 मार्च 2016

जमूरे सारे कुछ जमूरों को छोड़ कर मदारी के इशारे पर मदारी मदारी खेलने निकल कर चले

कुछ जमूरे मिलें
शागिर्दी के लिये

तमन्ना है जिंदगी
में एक बार
बस
एक ही बार

मदारी होने का
ज्यादा नहीं
एक ही मिले
मौका तो मिले

जमूरा बना रह
जाये कोई
ताजिंदगी
निकलते चलें
इधर से भी
और
उधर से भी

कब कौन
बन जाये
मदारी
सामने सामने
कैसे किस
तरीके से
कभी तो
ये राज
थोड़ा सा
ही सही
कुछ तो खुले

नहीं दिखा
एक भी
मदारी
सोचता
हुआ सा
भी कभी

उसका
कोई जमूरा
उसके बराबर
आ कर
खड़ा हो कर
उसके जैसा
ही नहीं
कभी भी कुछ
छोटा मोटा
सा भी
मदारी की
तरह का कहीं
गलती से भी
कभी कहीं
जा कर बने

मदारी हों
जमूरे हों
जमूरे मदारी
के ही हो
मदारी जमूरों
के ही हो
दोनो ही रहें

एक दूजे
के लिये
ही बने
होते हैं
दोनो ही रहें
दोनों ही बनें
एक दूसरे
के साथ
रह कर
चलायें
सरकस
कहीं का
भी हो

सरकस चलें
चलते रहें
बिना मदारी का
हो जाये ‘उलूक’
जैसा जमूरा
ना बन पाये
मदारी भी कभी

खबर
जब मिले

जमूरे कुछ
जमूरों को
छोड़ सारे
जमूरों के
साथ मिल
मदारी के लिये

एक बार
फिर
मिल जुल
कर सभी
कुछ सुना है
बहुत कुछ
करने को
हाथ में
लेकर हाथ
ये चले
और
वो चले ।

चित्र साभार: www.garylellis.org

सोमवार, 8 जून 2015

परेशानी तब होती है जब बंदर मदारी मदारी खेलना शुरु हो जाता है

मदारी को इतना
मजा आता है
जैसे एक पूरी
बोतल का नशा
हो जाता है
जब वो अपने
बंदर को सामने
वाले के सिर पर
चढ़ कर
जनता के बीच में
उसकी टोपी
उतरवाना सिखाता है
बालों पर लटक
कर नीचे उतरना
कंधे पर चढ़ कर
कानों में खों खों करना
देखते ही मदारी के
चेहरे की रंगत में
रंग आ जाता है
जब पाला पोसा हुआ
बंदर खीसें निपोरते हुऐ
गंजे के सिर में
तबला बजाता है
मदारी खुद सीखता
भी है सिखाना
अपने ही आसपास से
सब कुछ देख देख कर
बड़े मदारी की हरकतों को
कैसे बंदरों के कंधों में
हाथ रख रख कर
अपने लिये बड़ा मदारी
बंदरों से अपने सारे
काम निकलवाता है
काम निकलते ही
बंदरों को भगाने के लिये
दूसरे पाले हुऐ बंदरों से
हाँका लगवाता है
सब से ज्यादा मजा तो
आइंस्टाइन को आता है
सामने के चौखट पर
खड़े होकर जब वो खुद
एक प्रेक्षक बन जाता है
'जय हो सापेक्षता के
सिद्धाँत की' उस समय
अनायास ही जबान से
निकल जाता है जब
एक मदारी के सर पर ही
उसका सिखाया पाल पोसा
चढ़ाया हुआ बंदर
उसके ही बाल नोचता
नजर आता है ।



चित्र साभार: jebrail.blogfa.com

शुक्रवार, 23 मई 2014

मदारी जमूरे और बंदर अभी भी साथ निभाते हैं



मदारी जमूरा और बंदर
बहुत कम नजर आते हैं

अब घर घर नहीं जाते हैं

मैदान में स्कूल में
या चौराहे के आस पास
तमाशा अब भी दिखाते हैं

बहुत हैं पर हाँ पुराने भेष में नहीं
कुछ नया करने के लिये
नया सा कुछ पहन कर आते हैं

सब नहीं जानते हैं
सब नहीं पहचानते हैं
मगर रिश्तेदारी वाले
रिश्ता कहीं ना कहीं से
ढूँढ ही निकालते हैं

तमाशा शुरु भी होता है
तमाशा पूरा भी होता है
बंदर फिर हाथ में लकड़ी ले लेता है

चक्कर लगता है भीड़ होती है
साथ साथ मदारी का जमूरा भी होता है

भीड़ बंदर से बहुत कुछ सीख ले जाती है
बंदर के हाथ में चिल्लर दे जाती है

भीड़ छंंटती जरूर है
लेकिन खुद उसके बाद बंदर हो जाती है

बंदर शहर से होते होते
गाँव तक पहुँच जाते हैं
परेशान गाँव वाले
अपनी सारी समस्यायें भूल जाते हैं

दो रोटी की फसल बचाने की खातिर

बंदर बाड़े बनवाने की अर्जी
जमूरे के हाथ मदारी को भिजवाते हैं

बंदर बाड़े बनते हैंं
बंदर अंदर हो जाते हैं

कुछ बंदर दुभाषिये बना लिये जाते हैं
आदमी और बंदरों के बीच संवाद करवाते हैं
ऐसे कुछ बंदर बाड़े से बाहर रख लिये जाते हैं

पहचान के लिये 
कुछ झंडे और डंडे
उनको मुफ्त में दे दिये जाते हैं ।

चित्र सभार: https://www.shutterstock.com/

गुरुवार, 8 मई 2014

इतने में ही क्यों पगला रहा है जमूरे हिम्मत कर वो आ रहा है जमूरे

अरे जमूरे सुन
हुकुम मालिक
आ गया
बजा के ड्यूटी
बजा ली मालिक
कहाँ बजाई
बहुत बड़े मालिक की
बजाई मालिक
नहीं बजाता
तो मेरी बजा देता मालिक
खेल कैसा रहा जमूरे
बढ़िया रहा मालिक
मशीन के तो
मौज ही मौज थे मालिक
बाकी जैसे पिटी हुई
फौज के कुछ
फौजी थे मालिक
कोई किसी को
कुछ नहीं बता
रहा था मालिक
काम अपने आप
हो जा रहा था मालिक
रहने सहने की
कौन कहे मालिक
डर के मारे वैसे ही
नींद में सो
जा रहा था मालिक
कोई डंडा बंदूक से
नहीं डरा रहा था मालिक
अपने आप दिशा
जाने का मन
हो जा रहा था मालिक
मशीन भगवान जैसी
नजर आ रही थी मालिक
अपने आप ही
हनुमान चालिसा
पढ़ी जा रही थी मालिक
बस एक बेचारा
तीस साल का जमूरा
हार्ट अटैक से
मारा गया मालिक
तीन महीन पहिले ही
डोली से उतारा
गया था मालिक
कोई बात नहीं मालिक
एक नेता बनाने के लिये
एक ही शहीद हुआ मालिक
काम नहीं रुका
ऐसे में भी
जो जैसा होना था
उसी तरह से हुआ मालिक
तुरंत हैलीकाप्टर से
शरीर को उसके घर
तक पहुँचा
दिया गया मालिक
दुल्हन को भी
बीमे की रकम का
झुनझुना दिखा
दिया गया मालिक
नेता जी की वाह वाह को
अखबार में छपवा
दिया गया मालिक
बस एक बात
समझ में नहीं
कुछ आई मालिक
मजबूत सरकार
ही नहीं अभी तक
आई है मालिक
फिर सारा काम
कौन सी सरकार
निपटवाई है मालिक
जूता किसी ने
किसी को नहीं
दिखाया मालिक
भाग्य भाग्यहीनो का
गिने चुने किस्मत
वालो के लिये
डब्बे में बंद
फिर भी
करवाया मालिक
खर्चा पानी बिल सिल
कहीं भी नहीं
दिखाया मालिक
सारा काम हो गया
पता भी नहीं
किसी को चला मालिक
आप मालिक हो
थोड़ा हमें भी
समझा दिया करो मालिक
चुनाव आयोग को ही
लोकसभा विधानसभा में
बैठा लिया करो मालिक
हर पाँच साल बाद
होने वाले तमाशे से
छुटकारा दिलवा
दिया करो मालिक
जमूरे
जी मालिक
बहुत बड़बड़ा रहा है
चुनाव का असर
दिमाग में पड़ गया है
जैसा ही कुछ
समझ में आ रहा है
दो चार दिन बस
और रुक जा
परीक्षाफल आने
ही जा रहा है
उसके बाद सब
ठीक हो जायेगा
धंधा शुरु होने के
बाद कौन किसे
पूछने को आ रहा है
तू और मैं
फिर से शुरु हो जायेंगे
कटोरा भीख माँगने
का कहीं नहीं जा रहा है ।

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

सोचता हूं कुछ अलग सा लिखूं पर जब ऐसा देखता हूं तो कैसे लिखूं


बंदर को नहीं पता होता है 
उसका एक एक करतब 
मदारी के कितने काम का होता है 

बंदर को बंदर से जब लड़ाया जा रहा होता है 
मदारी भी मदारी की
टांग खींचने 
का गणित लगा रहा होता है 

मदारी भी क्या करे 
उसके ऊपर भी एक मदारी होता है 
बंदर तो पूरी श्रंखला का एक छोटा सा 
बस खिलाड़ी होता है 

बंदर की हार या बंदर की जीत तय करती है 
मदारी उसके अपने मदारी के कितने काम होता है 

जरुरी नहीं होता है कि हरेक मदारी 
अपने अपने बंदर के साथ होता है 
मौका पड़ता है तो 
दूसरे मदारी के बंदर का हाथ भी उसके हाथ होता है 

बंदर और बंदरों की लड़ाईयां 
मौके बे मौके प्रायोजित करवाई जाती हैं 

बंदर इस काम के लिये 
बहुत से बंदरों को अपने साथ लेता है 

बंदर कभी नहीं सोचता है 
वो क्यों और किसके लिये मैदान में होता है 

मदारी का काम भी अपने मदारी के लिये होता है 

हर मदारी के ऊपर भी एक मदारी होता है 
बंदर बस मैदान का एक खिलाड़ी होता है 
बंदर का बंदर भी उसका अपना नहीं होता है 
एक बंदर एक मदारी के लिये कुर्बान होता है 

ये सब कुछ तो हर समय हर जगह पर हो रहा होता है 

मेरे देश की एक खासियत है ये 
मजमा जरूर होता है हर समय होता है 
हर जगह हो रहा होता है 

'उलूक' खुद भी कभी एक मूक दर्शक होता है 
और कभी 
एक बंदर भी किसी का हो रहा होता है । 

चित्र साभार: 
http://kolkataphotoframes.blogspot.com/

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

मदारी छोड़ रहा है का राग क्यों गा रहा है नया सीख कर क्यों नहीं आ जा रहा है


बहुत से मदारी
ताजिंदगी
एक 
ही बंदर से काम चलाते हैं

इसीलिये
जमाने की दौड़ में बस
यूँ ही पिछड़ते चले जाते हैं

मेरा मदारी 
भी सुना है
अब समझदारी 
कहीं से सीख के आ रहा है

कहते सुना 
मैने उसे
अब 
मेरे नाच में मजा नहीं आ रहा है
वो एक नये बंदर को ट्रेनिंग देने
चुपचाप 
कहीं कहीं कभी कभी आ जा रहा है

जंजीर और 
रस्सियों को
करने वाला वो दरकिनार है
जमाना कब से 
वाई फाई का हुआ जा रहा है
उसकी अक्ल में
अब ये बहुत अच्छी तरह से घुस पा रहा है

रस्सी से तो 
एक समय में 
एक ही बंदर को नचाया जा रहा है
बंदर भी दिख जा रहा है
रस्सी को भी वो छुपा नहीं पा रहा है

 ई-दुनियाँ में 
देखिये
कितना 
मजा आ रहा है
सब कुछ पर्दे के पीछे से ही चलाया जा रहा है

बंदर और मदारी
दोनो का एक साथ दीदार हुआ जा रहा है

लेकिन
किसने 
मदारी बदल दिया
और
किसके पास 
नया बंदर आ रहा है
इसका अंदाज कोई भी नहीं लगा पा रहा है

इन
सब के बीच
गौर करियेगा जरा

मेरा
सीखा 
सिखाया हुआ नाच
कितनी बेदर्दी से डुबोया जा रहा है

दिमाग वालों को कम
देखने वालों को ज्यादा
बारीकी से 
ये सब
समझ में 
आ जा रहा है ।

चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/

रविवार, 8 अप्रैल 2012

मदारी और बंदर

हर
मदारी
अपने बंदर
नचा रहा है

बंदर बनूं
या मदारी

समझ में
ही नहीं
आ रहा है

हर कोई
ज्यादा से
ज्यादा बंदर
चाह रहा है

ज्यादा
बंदर वाला

बड़ा
हैड मदारी
कहलाया
जा रहा है

बंदर
बना
हुवा भी

बहुत खुश
नजर आ
रहा है

मदारी
मरेगा तो

डमरू
मेरे ही हाथ
में तो पड़ेगा
के सपने
सजा रहा है

बंदर
बना कर
नचाना

और
मदारी
हो जाना

अब
सरकारी
प्रोग्राम होता
जा रहा है


सुनाई दे
रहा है

जल्दी ही
बीस सूत्रीय
कार्यक्रम में
भी शामिल
किया जा
रहा है

काश !

मुझे भी
एक बंदर
मिल जाता

या फिर  

कोई
मदारी
ही मुझको
नचा ले जाता

पर
कोई भी
मेरे को 
जरा सा भी
मुंह नहीं
लगा रहा है

क्या
आपकी
समझ में कुछ
आ रहा है?

चित्र साभार: 1080.plus