उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

अलबर्ट पिंटो को गुस्सा आज भी आता है


अल्बर्ट पिंटो और उसका गुस्सा 
बहुत पुराना है किस्सा 

क्या है क्यों है किसको पता है 
किसको नहीं पता है 

लेकिन गुस्सा आता है 
सबको आता है 
किसी को कम किसी को ज्यादा 
कोई बताता है कोई नहीं बताता है 

कोई खुश होता है 
गुस्सा खाता है और पचाता है 

अलग अलग तरह के गुस्से 
दिखते भी हैं 

चलने के तरीके में टहलने के तरीके में 
बोलने के तरीके में तोलने के तरीके में 

कम उम्र में हो सकता है 
नहीं आ पाता है 

पर देखते समझते 
घर से लेकर बाजार तक परखते 
सीख लिया जाता है 

गुस्सा नजर आना 
शुरु हो जाता है 

लिखे हुऐ में नहीं लिखे हुऐ में 
कहे हुऐ में चुप रहे हुऐ में 

अच्छा होता है अगर दिखता रहे 
कहीं भी सही 

पकता रहे उबलता रहे 
खौलता रहे चूल्हे में चढ़े 
एक प्रेशर कूकर की तरह बोलता रहे 

नहीं तो कहीं किसी गली में 
समझ ले अच्छी तरह उलूक
अपने ही सिर के बाल नोचता हुआ 
खींसें निपोरता हुआ
एक अलबर्ट पिंटो हो जाता है 

और किसी को पता नहीं होता है 
उसको गुस्सा क्यों आता है ।

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

समय अच्छा या बुरा समय की समझ में खुद नहीं आ रहा होता है


समय को लिखने
वाले लोगों को
ना तो फुरसत होती है
ना ही कुछ लिखने
लिखाने का समय
उनके पास होता है
अवकाश के दिन भी
उनका समय समय
को ही ठिकाने
लगा रहा होता है
कोई चिंता कोई
शिकन नहीं होती है कहीं
कुछ ऐसे लोगों के लिये
जिनकी नजर में
लिखना लिखाना
एक अपराध होता है
और दूसरी ओर
कुछ लोग समय
के लिये लिख
रहे होते हैं
उन को आभास
भी नहीं होता है
और समय ही
उनको ठिकाने
लगा रहा होता है
समय समय की बातें
समय ही समझ
पा रहा होता है
एक ओर कोई
लिखने में समय
गंवा रहा होता है
तो दूसरी ओर
कुछ नहीं लिखने वाला
समय बना रहा होता है
किसका समय बर्बाद
हो रहा होता है
किसका समय
आबाद हो रहा होता है
‘उलूक’ को इन सब से
कुछ नहीं करना होता है
उस की समझ में
पहले भी कुछ
नहीं आया होता है
आज भी नहीं
आ रहा होता है ।

बुधवार, 9 जुलाई 2014

बात अगर समझ में ही आ जाये तो बात में दम नहीं रह जाता है

एक
छोटी सी
बात को 

थोड़े से
ऐसे शब्दों
में कहना
क्यों नहीं
सीखता है

जिसका अर्थ
निकालने में
समझने में
ताजिंदगी
एक आदमी
शब्दकोषों
के पन्नों को
आगे पीछे
पलटता हुआ
एक नहीं
कई कई बार
खीजता है

बात समझ में
आई या नहीं
यही नहीं
समझ पाता है

जब बात का
एक सिरा
एक हाथ में
और
दूसरा सिरा
दूसरे हाथ में
उलझा हुआ
रह जाता है

छोटी छोटी
बातों को
लम्बा खींच कर
लिख देने से
कुछ भी
नहीं होता है

समझ में
आ ही गई
अगर एक बात
बात में दम ही
नहीं रहता है

कवि की
सोच की तुलना
सूरज से
करते रहने
से क्या होता है

सरकारी
आदेशों की
भाषा लिखने वाले
होते हैं
असली महारथी

जिनके
लिखे हुऐ को

ना
समझ लिया है
कह दिया जाता है

ना ही
नहीं समझ में
आया है कहा जाता है

और
‘उलूक’
तू अगर
रोज एक
छोटी बात को
लम्बी खींच कर
यहाँ ले आता है

तो कौन सा
कद्दू में
तीर मार
ले जाता है ।

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

मुक्ति के मार्ग चाहने वाले के हिसाब से नहीं होते हैं

एक दिन के
पूरे होने से
जिंदगी बढ़ी
या कम हुई

ऊपर वाले के
यहाँ आवेदन
करने के
हिसाब से तो
अनुभव में
इजाफा
हुआ ही कहेंगे

नीचे वालों के
हिसाब से
देखा जाये
तो जगह
खाली होने के
चाँस बढ़ने
से दिन
कम ही होंगे

गणित जोड़
घटाने का
गणित के
नियमों के
हिसाब से
नहीं होगा

अपनी सुविधा
के हिसाब
से होगा
जो कुछ
भी होगा
या होना होगा

वैसे भी दिन
गिनने वाले
कम ही होते हैं

बाकी सारे
हिसाब किताब
के ऊपर
टाट रखकर
बैठे होते हैं

फर्क किसे
पड़ता है
थोड़ा भी

उनके हिसाब
किताब में
दिन आधे या
पूरे होते हैं

बाकी सभी
के लिये
मुक्ति के
कहीं भी
कोई भी
मार्ग
कहीं भी
नहीं होते हैं

सब मिलकर
काँव काँव
कर लेते हैं
एक ही
आवाज में

मजे की बात
है ना ‘उलूक’
जो कौए भी
नहीं होते हैं ।

सोमवार, 7 जुलाई 2014

आता रहे कोई अगर बस प्रश्न पूछने के लिये आता है

बेशरम
भिखारी को
भी शरम
आती जाती है
जब कोई
पूछना शुरु
हो जाता है
उन सब
चीजों के
बारे में
जो नहीं
होती हैं
पास में
पूछने
वाले के

पास होते हैं
हकीकत
से लेकर
सपने सभी

जो भी मिल
जाता है
आज
बाजार में
नकद की
जरूरत
होती ही नहीं
सब कुछ
उपलब्ध
है जब
उधार में

उधारी का रहना
उधारी का गहना
उधारी की सवारी
उधारी की खुमारी
उधारी के ख्वाब
उधारी का रुआब

और
एक बेचारा
सपनों का मारा
जाती है उसकी
मति भी मारी
नहीं ले
पाता है जब
कुछ भी उधारी

झेलता है
प्रश्नो की
तीखी बौछार
पूछ्ने वाला
पूछना कुछ
नहीं चाहता है
बैचैनी उधारी
के साथ
मुफ्त में नकद
खरीद लाता है
चैन उधार में
मिलता नहीं कहीं

उस भिखारी
से पूछने
चला आता है
जो उधारी
नहीं ले पाता है
चैन से पीता है
चैन से खाता है

‘उलूक’
अपनी नजर
से ही
देखा कर
खुद को

किसी की
नजर में
किसी के
भिखारी
हो भी
जाने से
कौन
भीख में
चैन दे
पाता है
उधारी की
बैचेनी
खरीद कर
क्यों
अपनी नींद
उड़ाना
चाहता है
पूछ्ने से
क्या डरना
अगर कोई
पूछ्ने भी
चला
आता है ।