फिर से
हो गया
एक शतक
और
वो भी पुराने
किसी का नहीं
इसी का
और इसी
साल का
जनाब
क्रिकेट नहीं
खेल रहा है
यहाँ कोई
ये सब
हिसाब है
लिखने
लिखाने के
फितूर के
बबाल का
करते नहीं
अब शेर कुछ
करने दिया
जाता भी नहीं
कुछ कहीं
जो भी
होता है
लोमड़ियों
का होता है
हर इंतजाम
दिखता
भी है
बाहर ही
बाहर से
बहुत ही
और
बहुत ही
कमाल का
हाथियों
की होती
है लाईन
लगी हुई
चीटिंयों
के इशारे पर
देखने
लायक
होता है
सुबह से लेकर
शाम तक
माहौल उनके
भारी भरकम
कदमताल का
मन ही मन
नचाता है
मोर भी ‘उलूक’
सोच सोच कर
मुस्कुराते हुऐ
जब मिलता
नहीं जवाब
कहीं भी
देखकर
अपने
आस पास
सभी के
पिटे पिटाये से
चेहरों के साथ
बंद आँख और
कान करके
चुप हो जाने
के सवाल का ।
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सुबह कुछ
लिखना चाहो
मजा नहीं
आता है
रात को वैसे
भी कुछ नहीं
होता है कहीं
सपना भी कभी कभी
कोई भूला भटका
सा आ जाता है
शाम होते होते
पूरा दिन ही
लिखने को
मिल जाता है
कुछ तो करता
ही है कोई कहीं
उसी पर खींच
तान कर कुछ
कह लिया जाता है
इस सब से इतर
अखबार कभी कुछ
मन माफिक
चीज ले आता है
संपादकीय पन्ने
पर अपना सब से
प्रिय विषय कुत्ता
सुबह सुबह नजर
जब आ जाता है
आदमी और कुत्ते
की दोस्ती पुरानी
से भी पुरानी होना
बताया जाता है
तीस से चालीस
हजार साल का
इतिहास है बताता है
आदमी ने क्या सीखा
कुत्ते से दिखता है
उस समय जब
आदमी ही आदमी
को काट खाता है
विशेषज्ञों का मानना
मानने में भलाई है
जिसमें किसी का
कुछ नहीं जाता है
आदमी के सीखने
के दिन बहुत हैं अभी
कई कई सालों तक
खुश होता है
बहुत ही ‘उलूक’
चलो आदमी नहीं
कुत्ता ही सही
जिसे कुछ सीखना
भी आता है
दिखता है घर से
लेकर शहर की
गलियों के कुत्तों
को भी देखकर
कुत्ता सच में
आदमी से बहुत कुछ
सीखा हुआ सच में
नजर आता है ।
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दवा पर लिख
कुछ कभी
दारू पर लिख
दर्द पर लिख
रही है
सारी दुनियाँ
तू भी लिख
कोई नहीं
रोक रहा है
पर कहीं
कुछ कभी
कँगारू पर लिख
चाँद पर लिख
कुछ सितारों
पर लिख
लिखने पर
रोक लगे
तब तक कुछ
बेसहारों पर लिख
लिखने लिखाने
पर पूछना शुरु
करती है जनता
कभी कुछ
समाधान
पर लिख
कभी आसमान
पर लिख
करने वाले
मिल जुल
कर निपटाते हैं
काम अपने
हिसाब से
सिर के बाल
नोच ले अपने
उसके बाद चाहे
बाल उगाने की
कलाकारी
पर लिख
हर कोई बेच
कर आता है
सड़क पर
खुले आम
सब कुछ
तू भी तो बेच
कुछ कभी
और फिर
बेचने वालों
की मक्कारी
पर भी लिख
लिखना
लिखाना ही
एक दवा है
मरीजों की
तेरी तरह के
डर मत
पूछने वालों से
कभी पूछने
वालों की
रिश्तेदारी
पर लिख
हरामखोरों
की जमात
के साथ रहने
का मतलब
ये नहीं होता
है जानम
लिखते लिखते
कभी कुछ
अपनी भी
हरामखोरी
पर लिख ।
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दुविधाऐं
अपनी अपनी
देखना सुनना
अपना अपना
लिखना लिखाना
अपना अपना
पर होनी भी
उतनी ही जरूरी
जितनी अनहोनी
दुख: सुख: अहसास
खुद के आस पास
बताना भी उतना
ही जरूरी जितना
जरूरी छिपाना
खुद से ही खुद
को कभी कभी
खुद के लिये ही
समझाना भी
बहुत जरूरी
समझ में आ जाने
के बाद की मजबूरी
परेशानी का आना
स्वागत करना भी
उतना ही जरूरी
जितना करना
उसके नहीं आने
की कल्पना के साथ
कुछ कुछ कहीं
कभी जी हजूरी
भावनाऐं अच्छी भी
उतनी ही जरूरी
जितनी बुरी कुछ
बुरे को समझने
बूझने के लिये
निभाने के लिये
अच्छाई के
साथ बुराई
बुराई के
साथ अच्छाई
बनाते हुऐ कुछ
नजदीकियाँ
साथ लिये हुऐ
बहुत ज्यादा नहीं
बस थोड़ी सी दूरी
सौ बातों की एक बात
समय के मलहम
से भर पायें घाव
समय के साथ
समय की आरी से
कहीं कुछ कटना
कुछ फटना भी
उतना ही जरूरी ।
चित्र साभार: chronicyouth.com
गुरु
लोगों ने
कोशिश की
और
सिखाया भी
किताबों
में लिखा
हुआ काला
चौक से काले
श्यामपट पर
श्वेत चमकते
अक्षरों को
उकेरते हुऐ
धैर्य के साथ
कच्चा
दिमाग भी
उतारता चला गया
समय
के साथ
शब्द दर शब्द
चलचित्र की भांति
मन के
कोमल परदे पर
सभी कुछ
कुछ भरा
कुछ छलका
जैसे अमृत
क्षीरसागर में
लेता हुआ हिलोरें
देखता हुआ
विष्णु की
नागशैय्या पर
होले होले
डोलती काया
ये
शुरुआत थी
कालचक्र घूमा
और
सीखने वाला
खुद
गुरु हो चला
श्यामपट
बदल कर
श्वेत हो चले
अक्षर रंगीन
इंद्रधनुषी सतरंगी
हवा में तरंगों में
जैसे तैरते उतराते
तस्वीरों में बैठ
उड़ उड़ कर आते
समझाने
सिखाने का
सामान बदल गया
विष्णु
क्षीरसागर
अमृत
सब अपनी
जगह पर
सब
उसी तरह से रहा
कुछ कहीं नहीं गया
सीखने
वाला भी
पता नहीं
कितना कुछ
सीखता चला गया
उम्र गुजरी
समझ में
जो आना
शुरु हुआ
वो कहीं भी
कभी भी
किसी ने
नहीं कहा
‘उलूक’
खून चूसने
वाले कीड़े
की दोस्ती
दूध देने वाली
एक गाय के बीच
साथ रहते रहते
एक ही बर्तन में
हरी घास खाने
खिलाने का सपना
सोच में पता नहीं
कब कहाँ
और
कैसे घुस गया
लफड़ा हो गया
सुलझने के बजाय
उलझता ही रहा
प्रात: स्कूल भी
उसी प्रकार खुला
स्कूल की घंटी
सुबह बजी
और
शाम को
छुट्टी के बाद
स्कूल बंद भी
रोज की भांति
उसी तरह से ही
आज के दिन
भी होता रहा ।
चित्र साभार: www.pinterest.com