उलूक टाइम्स: दवा
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शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

सामने ‘उलूक’ को देख कर खुजली से भर जाता है लेकिन बाद में कही और जा कर खुजलाता है


होती है खुजली कोई अनोखी बात नहीं होती है
किसको किससे होती है किसको कब होती है और
किसको कहां होती है में जरूर कुछ बात होती है

सामने से दिखे आता हुआ कोई  
खुजली हो और खुजला ना सके कोई
गलत बात होती है
रास्ता संकरा होने से इधर उधर कहीं जा ना सके कोई
चहरे पर नजर आना शुरू हो जाए खुजली
आ रही है देख कर भी मुस्कुरा ना सके कोई
कैसे कहे कोई ये बाते बस इत्तेफाक होती हैं

बहुत ही खतरनाक होती है कुछ खुजली
अचानक शुरू हो लेती है कहीं पर भी कभी भी
गजब की खुजली होती है और बेबात होती है

कोई किसी को नहीं बताता है कि खुजलाता है
कोई किसी को नहीं दिखाता है कि खुजलाता है
खुजली को महसूस भर कर लेता है थोड़ा सा
दिमाग में अपने ही कुछ दही जमाता है
मौके का इंतज़ार करता है खुजलाने वाला
लोहा गरम देख कर हमेशा हथौड़ा चलाता है

खुजली हुई थी बहुत जोर से हुई थी
खुजला लिया गया है साफ़ साफ़ पता चल जाता है
एक नोटिस छोटा झंडा फहराने का
और एक नोटिस झंडे पर ज़रा  सा टेड़ा डंडा लगाने का
एक डंडे वाला हाथ में जब थमा जाता है

‘उलूक’ कुछ दवा क्यों नहीं खाता है
कुछ ईलाज अपना क्यों नहीं करवाता है
बहुत से लोगों को किसलिए होने लगती है खुजली
जब भी कभी उन्हें तू
सामने से मुस्कुराता हुआ आता नजर आ जाता है ?

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

शनिवार, 18 जुलाई 2015

खिंचते नहीं भी हों इशारे खींचने के लिये खींचने जरूरी होते हैं

थोड़े कुछ
गिने चुने
रोज के वही
उसी तरह के
जैसे होते हैं
खाने पीने
के शौकीन
जैसे कहीं किसी
खाने पीने की
जगह ही होते हैं
यहाँ ना ढाबा
ना रोटियों पराठों
का ना दाल मखानी
ना मिली जुली सब्जी
कुछ कच्ची कुछ
पकी पकाई बातें
सोच की अपनी
अपनी किसी की
किताबें कापियाँ
कलम पेंसिल
दवात स्याही
काली हरी लाल
में से कुछ कुछ
थोड़े बहुत
मिलते जुलते
जरूर होते हैं
उम्र के हर पड़ाव
के रंग उनके
इंद्रधनुष में
सात ही नहीं
हमेशा किसी के
कम किसी के
ज्यादा भी होते हैं
दर्द सहते भी हैं
मीठे कभी कभी
नमकीन कभी तीखे
दवा लिखने वाले
सभी तो नहीं होते हैं
बहुत कुछ टपकता है
दिमाग से दिल से
छलकते भी हैं
सबके हिसाब से
सभी के शराब के
जाम हों जरूरी
नहीं होते हैं
कहना अलग
लिखना अलग
पढ़ना अलग
सब कुछ छोड़ कर
कुछ के लिये
किसी के कुछ
इशारे बहुत होते हैं
कुछ आदतन
खींचते हैं फिर
सींचते हैं बातों को
‘उलूक’ की तरह
बेबात के पता
होते हुऐ भी
बातों के पेड़ और
पौंधे नहीं होत हैं ।

चित्र साभार: all-free-download.com

रविवार, 24 मई 2015

लिखते लिखते लिखने वाले की बीमारी पर भी लिख

दवा पर लिख
कुछ कभी
दारू पर लिख

दर्द पर लिख
रही है
सारी दुनियाँ
तू भी लिख

कोई नहीं
रोक रहा है
पर कहीं
कुछ कभी
कँगारू पर लिख

चाँद पर लिख
कुछ सितारों
पर लिख
लिखने पर
रोक लगे
तब तक कुछ
बेसहारों पर लिख

लिखने लिखाने
पर पूछना शुरु
करती है जनता
कभी कुछ
समाधान
पर लिख
कभी आसमान
पर लिख

करने वाले
मिल जुल
कर निपटाते हैं
काम अपने
हिसाब से
सिर के बाल
नोच ले अपने
उसके बाद चाहे
बाल उगाने की
कलाकारी
पर लिख

हर कोई बेच
कर आता है
सड़क पर
खुले आम
सब कुछ
तू भी तो बेच
कुछ कभी
और फिर
बेचने वालों
की मक्कारी
पर भी लिख

लिखना
लिखाना ही
एक दवा है
मरीजों की
तेरी तरह के

डर मत
पूछने वालों से
कभी पूछने
वालों की
रिश्तेदारी
पर लिख

हरामखोरों
की जमात
के साथ रहने
का मतलब
ये नहीं होता
है जानम

लिखते लिखते
कभी कुछ
अपनी भी
हरामखोरी
पर लिख ।

चित्र साभार: www.colinsclipart.com

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

फिर किसी की किसी को याद आती है और हम भी कुछ गीले गीले हो लेते हैं

कदम
रोक लेते हैं
आँसू भी
पोछ लेते हैं

तेरे पीछे नहीं
आ सकते हैं
पता होता है

आना चाहते हैं
मगर कहते कहते
कुछ अपने ही
रोक लेते हैं

जाना तो हमें भी है
किसी एक दिन के
किसी एक क्षण में

बस इसी सच को
झूठ समझ समझ कर
कुछ कुछ जी लेते हैं

यादें होती हैं कहीं
किसी कोने में
मन और दिल के

जानते बूझते
बिना कुछ ढकाये
पूरा का पूरा
ढका हुआ जैसा ही
सब समझ लेते हैं

कुछ दर्द होते है
बहुत बेरहम
बिछुड़ने के
अपनों से
हमेशा हमेशा
के लिये

बस इन्हीं
दर्दों के लिये
कभी भी कोई
दवा नहीं लेते हैं

सहने में
ही होते हैं
आभास उनके

बहुत पास होने के
दर्द होने की बात
कहते कहते भी
नहीं कहते हैं

कुछ आँसू इस
तरह के ठहरे हुऐ
हमेशा के लिये
कहीं रख लेते हैं

डबडबाते से
महसूस कर कर के
किसी भी कीमत पर
आँख से बाहर
बहने नहीं देते हैं

क्या करें
ऐ गमे दिल
कुछ गम
ना जीने
और
ना कहीं
मरने ही देते हैं

बहुत से परदे
कई नाटकों के
जिंदगी भर
के लिये ही
बस गिरे रहते हैं

जिनको उठाने
वाले ही हमारे
बीच से
पता नहीं कब
नाटक पूरा होने से
बस कुछ पहले ही
रुखसती ले लेते हैं ।

"750वाँ उलूक चिंतन:  आज के 'ब्लाग बुलेटिन' पर"

बुधवार, 16 मई 2012

सफेद बाल

मेरे सफेद बाल
हो गये हैं अब
खुद मेरे लिये
आज एक बवाल

हर कोई इनसे
दिखता है परेशान

जैसे
उड़ रहे हों
मेरे सर के
चारों ओर
कुछ अजीब
से विमान

एक मित्र जो रोज
बाल काले करता है

उसकी बीबी
का डायलाग
हमेशा ऎसा
ही रहता है

अरे आपके
कुछ बाल
अभी काले
नजर आते हैं
आप
अपने बाल
डाई क्यों
नहीं कराते हैं

हर दूसरा भी राय
देने की कोशिश
करता है एक नेक
भाईसाहब आपके
बाल इतनी जल्दी
कैसे हो गये सफेद

एक सटीक दवाई
हम आपको बताते हैं

एक ही रात में
उसको खा के सारे
बाल काले हो जाते हैं

कल जब मैं सड़क पर
बेखबर जा रहा था
देखा एक आदमी
सड़क किनारे रेहड़ी
अपनी सजा रहा था

कुछ जड़ी बूटियां
बेचने वाला जैसा
नजर आ रहा था

मुझे देखते ही दौड़
कर मेरी ओर आया
हाथ पकड़ मेरा
मुझे अपनी रेहड़ी
की तरफ उसने बुलाया

अंकल अंकल ये वाली
बूटी आप मुझ से ले जाओ
एक हफ्ते में अपने
सारे बाल काले करवाओ

सौ रुपये में इतना
आप और कहाँ पाओ
असर ना करे तो
दो सौ मुझसे ले जाओ

उसको इतना उतावला देख
कर मैं धीरे से मुस्कुराया
उसकी तरफ जाकर
उसके कान में फुसफुसाया

पचास साल लगे हैं
इन बालों को
सफेद करवाने में
तुझे क्या मजा
आ रहा है
इनको एक हफ्ते में
काले करवाने में
मेरी की गई मेहनत
पर पानी फिरवाने में

कोई दिल काला
करने की दवा है
तो अभी दे जा
सौ की जगह
पाँच सौ तू ले जा

काले दिल वालों का
जमाना आ रहा है
उन सब को जेल से
बाहर निकाला जा रहा है

उनके खुद किये गये
घोटालों पर ब्याज भी
सरकार की तरफ से
दिया जा रहा है।